कविता साहित्य बेबसी July 31, 2017 by तेजू जांगिड़ | Leave a Comment लाचार, बेबस था वो उसकी आँखों मे स्पष्ट झलक रहा था उस दिन सड़क किनारे वो दिखा देखकर आदिमानव सी छवि उभर आई बढ़ी हुई दाढ़ी उलझे बाल मुह से लार टपकती थी हाथ मे कुछ पैसे पकड़े हुए और कुछ दुकानों से गिरी सब्जियां ये सब तो प्रति दिन होता है पर… उस दिन […] Read more » बेबसी
कविता बेबसी May 23, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- योगेन्द्र और प्रशांत को हटा मानो बाधायें हो गईं दूर, साथ में रह गये बस, कहने वाले जी हुज़ूर। फ़र्जी डिग्री के किस्से को, जैसे तैसे रफ़ा दफ़ा किया, एक सिक्किम से ले आया, नकली डिग्री और सपूत। मैंने जनता को स्टिंग सिखाया, पर वो भी मुझ पर ही आज़माया, मियां की जूती […] Read more » Featured कविता बेबसी