लाचार, बेबस था वो
उसकी आँखों मे
स्पष्ट झलक रहा था
उस दिन सड़क किनारे वो दिखा
देखकर आदिमानव सी
छवि उभर आई
बढ़ी हुई दाढ़ी उलझे बाल
मुह से लार टपकती थी
हाथ मे कुछ पैसे पकड़े हुए और
कुछ दुकानों से गिरी सब्जियां
ये सब तो प्रति दिन होता है
पर… उस दिन वो रो रहा था
न जाने क्यों वो इतना भावुक था
उसकी वो स्थिति मन को कचोटती है।
तेजू जांगिड़