एक क़दम तुम बढ़ाओ,
दो हम बढ़ायेंगे।
फ़ासले जो दरमियां हैं,
दूर होते जायेंगे।
दूरियाँ मन की नहीं थीं,
विचारों के द्वन्द थे,
आओ बैठो,
बातें करो,मसले सब सुलझ जायेंगे।
वक़्त मिलता ही नहीं…,……
कहने से उलझने बढ़ जायेंगी।
वक़्त को वक़्त से चुराकर,
कुछ वक़्त तो देना पड़ेगा।
एक छोर तुम पकड़ना,
मैं हर गाँठ हर उलझन को सुलझाऊंगी
ऊन के गोले की तरह लपेट कर….
एक बार ज्यादा उलझने पड़ जायें तो,
कैंची लगाये बिना सुलझती नहीं,
गाँठ फिर पड़ जाती है,
ऊन को जोड़ने के लियें,
ये गाँठे कभी कभी उभर आती हैं……
इसलिये ,
एक क़दम तुम बढ़ाओ..