विविधा

तमिल छात्र, आज, हिन्दी चाहता है।

hindiडॉ. मधुसूदन

सारांश:
*****तमिलनाडु के विश्वविद्यालयीन छात्र हिन्दी के पक्ष में।
*****आज का तमिल छात्र हिंदी सीखने में उदासीन नहीं हैं।
*****जानिए, आज तमिल छात्र क्या सोचता है?
****९५ % प्रतिशत छात्र हिन्दी के पक्ष में।
****किसी प्रादेशिक भाषा की अपेक्षा हिन्दी सर्वाधिक बोली जानेवाली भाषा है।
**** पर सुझाव है, कि, तमिलों पर, पर हिन्दी लादी ना जाए।”
****हिन्दी को तमिल भाषा की शत्रु मानना सही नहीं है।
****तमिलनाडु शासन, अधिकृत शालाओं में हिन्दी नहीं पढाता, और, तमिल छात्रों का घाटा होता है।
****(परदेशी) अंग्रेज़ी स्वीकार, पर, (भारतीय) हिन्दी से द्वेष? यह कैसा तर्क है?

दो एक वर्ष-पूर्व मेरे विश्व विद्यालय के तमिल छात्रों ने जब बताया कि, तमिल छात्र हिन्दी सीखना चाहता है। तब, मुझे लगा, कि मेरे हिन्दी प्रेम को जानकर वे मुझे निराश करना नहीं चाहते होंगे; पर आज विश्वास हो रहा है; इसकी पुष्टि,**नन्दिनी ह्वॉइस** नामक स्वयंसेवी संस्था द्वारा हुयी है।
(एक) हिन्दी विरोध का इतिहास:

कुछ दशकों पूर्व तमिल छात्र तमिलनाडु में, हिन्दी विरोधक आंदोलनों की अगुवाई कर रहे थे।
पर, आज परिस्थिति बदली है। आज की नई पीढी हिन्दी सीखना चाहती है। साम्प्रत, एक बहुत बडे बदलाव का समाचार है। छात्रों की हिन्दी की ओर देखने की दृष्टि में समुद्र-आयामी (Sea Change) बदलाव आया है।
विशेष रूपसे इसके दो कारण दिखाई देते हैं।
(१) हिन्दी भाषा की जानकारी के कारण अच्छी नियुक्ति के अवसर उपलब्ध होते हैं।
(२) और दूसरा कारण है, भारत के राज्यों में परस्पर संबंध और आपसी व्यवहार।
इन तथ्यों की पुष्टि जो विश्वविद्यालयीन छात्र-छात्राओं की निबंध स्पर्धा **नन्दिनी ह्वॉइस** द्वारा आयोजित की गयी थी, उसके विवरण से जानी जा सकती है।
(दो) निबंध स्पर्धा का आयोजन:

नन्दिनी ह्वॉइस (www.nandiniVoice.com)-इस चेन्नै स्थित स्वयंसेवी संस्था, द्वारा एक निबंध स्पर्धा आयोजित की गई थी। इस निबंध स्पर्धा में सारे तमिलनाडु-राज्य भर के विश्वविद्यालयीन छात्रों को भाग लेने का अवसर प्रदान किया गया। विषय था
**क्या तमिल छात्र हिन्दी सीखने में उदासीन रह सकते हैं?**
भारी संख्या में सारे तमिलनाडु के विश्वविद्यालयीन छात्रों ने अपने निबंध इस स्पर्धा के लिए भेजे; और अचरज की बात उभर कर आयी।
९५ % प्रतिशत छात्रों ने हिन्दी के पक्ष में अपना मत व्यक्त किया। बोले, कि हिन्दी सीखना आवश्यक है; और तमिलनाडु में हिन्दी विरोधी आंदोलन अनावश्यक और घाटे की नीति है।

(तीन) प्रतियोगिता के विजेता:

पाँच छात्र इस निबंध प्रतियोगिता में विजयी घोषित हुए। इन पाँच विजेताओं में, चार छात्राएँ और एक छात्र है।
विजेताओं के नाम:
कुमारी ए. दिव्या दर्शिनी —श्री साइ राम इन्जिनियरिंग कॉलेज, चेन्नई।
कुमारी अन्न-लक्ष्मी, तमिल भाषा की शोध छात्र। अय्या नाडार जानकी अम्माल कॉलेज, शिव काशी।
कुमारी के. अभिरामी, द्वितीय वर्ष, बी. एस. सी. (गणित), फातिमा कॉलेज, मदुराई।
कुमारी शेन्भागवल्ली व्यंकटेशन, द्वितीय वर्ष, बी. टेक. केमिकल इन्जिनियरिंग, अमृता स्कूल ऑफ इन्जिनियरिंग, कॉइम्बतूर
श्री. एम. ए. रिफायत अली शोध छात्र. पोस्ट ग्रेजुएट शोध छात्र, गणित विभाग। जमाल मोहम्मद कॉलेज। तिरुचिरापल्ली।

(चार) राष्ट्र भाषा की आवश्यकता:

आगे समाचार कहता है; कि, भारत बहुभाषी देश है; पर तुरन्त आगे जोडता भी है, —**पर देश को एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता है।** और आगे कहता है, किसी भी अन्य प्रादेशिक भाषा की अपेक्षा हिन्दी ही सर्वाधिक प्रजाजनों द्वारा बोली जानेवाली भाषा है।
और हिन्दी का ही तर्कसंगत अधिकार है; उसे राष्ट्रभाषा घोषित किया जाए।
और आगे हिन्दी का पक्ष रखते हुए कहता है; कि, ==>**अहिन्दी भाषी प्रजाजनों द्वारा हिन्दी को विभिन्न प्रदेशों को जोडनेवाली कडी के रूप में देखा जाए।** <==

(पाँच) समाचार के अनुसार आज की छवि:

आज समय बदला हुआ है। पहले लोग अपने अपने नगरों में ही काम ढूंढते थे।आज बहुत सारे तमिल भाषी अन्य नगरों में, और अन्य राज्यों में भी काम करते हैं। आप (तमिलनाडु के बाहर) कहीं भी जाइए, चाहे उत्तर भारत में, पूर्वी भारत में, या पश्चिमी भारत में, बिना हिन्दी आप अपना काम चला नहीं सकते।

(छः)भाषा एक साधन मानें:

जैसे आप रसायन, भौतिकी, अभियान्त्रिकी, अर्थशास्त्र इत्यादि विषयों का अध्ययन वैयक्तिक रूचि और नियुक्ति के अवसरों को देखकर करते हैं; उसी प्रकार तमिल छात्रों से निवेदन है, कि, ऐसी उपयोगिता को लक्ष्य कर हिन्दी का भी चयन करें। साथ साथ भारत की एकता को भी लक्ष्यित करना ना भूलें। पर, हिन्दी को तमिल की शत्रु समझकर उससे लडाई के रूपमें सोचना सही नहीं है।
(सात) हिन्दी से – तमिलनाडु का कोई घाटा नहीं होगा।
दक्षिण के अन्य राज्य, जैसे केरल, आन्ध्रप्रदेश, और कर्नाटक की (State Board Schools) राज्य अधिकृत शालाओं में, हिन्दी पढाई जाती है। पर, वहाँ की प्रादेशिक भाषाएँ, जैसे, कि, मलयालम, तेलुगु और कन्नड इस हिन्दी की शिक्षा के कारण पिछड नहीं गयी हैं।

पर, तमिलनाडु में शासन, राज्य की अधिकृत शालाओं में हिन्दी नहीं पढाता। इसके कारण तमिल छात्रों का घाटा होता है।
इन अन्य दक्षिण के, राज्यों की भाँति, तमिलनाडु शासन भी राज्य की अधिकृत शालाओं में, हिन्दी शिक्षा का प्रबंध करे। शासकीय शालाओं में पढनेवाले छात्र निम्न आर्थिक वर्ग से होते हैं। वें निजी संस्थाओं में, भारी शुल्क देकर हिन्दी सीखने में असमर्थ हैं।

(आठ) अंग्रेज़ी से प्रेम और हिन्दी से द्वेष?

विश्लेषण कहता है, कि, अचरज है, कि, तमिलनाडु में (परदेशी) अंग्रेज़ी का स्वीकार है पर, (भारतीय) हिन्दी से द्वेष? यह किस प्रकार का तर्क है?
(नौ) पर,अहिन्दी भाषियों पर हिन्दी कभी लादी ना जाए।

ऐसी हिन्दी के प्रति, सकारात्मक जानकारी समाचार में पाने के पश्चात अंतमें समाचार बहुत महत्त्व का सुझाव भी देता है। कहता है, कि, हिन्दी का महत्त्व सारे भारत को पता चल रहा है। और हिन्दी अपनी स्वयं की क्षमता और उपयोगिता की शक्ति से आगे बढ पाएगी। पर, हिन्दी को अहिन्दी भाषी प्रजापर बल प्रयोग द्वारा ठूंसा ना जाए।

(दस) लेखक का मन्तव्य:
जब मुझे मेरे विश्वविद्यालयों में तमिलनाडु से आये, छात्र और छात्राओं ने दो एक वर्षॊं पूर्व ऐसी ही, जानकारी दी थी, तो, उस समय, मुझे, तुरन्त विश्वास नहीं होता था।

पर, अब चारों ओर, आज का भारत का शासन हिन्दी को अप्रत्यक्षतः प्रोत्साहित कर रहा है। यह बिना विवश किए, चारों ओर से प्रभावित करने की विधि है। लगता है; नरेंद्र मोदी जी इस विधि का दबे पाँव अनुसरण कर रहे हैं।

हिन्दी के वर्चस्ववादियों को दो बार कहना चाहूंगा। **अहिन्दी भाषी तमिल जनों पर, पर हिन्दी लादने का प्रयास ना किया जाए।** (ये नन्दिनी ह्वॉइस भी यही कह रहा है; पर साथ हिन्दी के पक्ष में भी बोल रहा है।)
तमिलनाडु क्या और दक्षिण के अन्य राज्य क्या, एक हठी बालक जैसे हैं। बालक को यदि आप कहो, कि, बेटा ये करना तुम्हारे लिए अच्छा है; तो हठी बालक कभी नहीं करेगा।

पर, चारों ओर हिन्दी का पुरस्कार करो, युनो में, परदेशों में, हर परदेशी वार्तालापो में, प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय लेन देन में, जब तमिल-जन भी देखेंगे; कि, हिन्दी का महत्त्व संसार भर में बढ रहा है। तो वे भी मान जाएंगे।
पर शासन को औरंगज़ेबी तानाशाही से बचना चाहिए।

जय हिन्द। जय हिन्दी।