समाज बोला तू तो शिक्षक है,भविष्य निर्माता है,
देश के कर्णधार का, तू ही तो भाग्य विधाता है।
नव निर्माण का लिए संकल्प, निकल पड़ा वह निर्विकल्प,
राह में टकराई संचार क्रांति, बलखाती- इठलाती
बोली, “मैं हूं ज्ञान का भंडार, खोल दिए हैं मैंने सफलता के सभी द्वार,
तू तो है बालक नादान, पा न सकेगा अब सम्मान।
मुझे बना ले अपना मित्र, खुल जाएगा तेरा तीसरा नेत्र”
‘मुझे बना ले अपना मित्र खुल जाएगा तेरा तीसरा नेत्र’
शिक्षक ने शिक्षा पा ली,संचार क्रांति की सलाह अपना ली।
‘पीटीएम का दिन भी आया’
अभिभावक ने बतलाया “मेरा बेटा है भोला-भाला,
इसे हमने है नाजो से पाला,
बे शक करता होगा तुम्हें थोड़ा तंग,
नंबर देखकर मैं भी हूं दंग,
पर बनाना है इसे हमें दबंग।
शिक्षक का माथा भरमाया,
खुद को बड़ा असहाय पाया।
अनुशासन का दिया हवाला,
अभिभावक की भावनाओं को संभाला।
शिक्षक ने शिक्षा पा ली, शिक्षा अपनी जेब में डाली।
कई दिनों से था कानून भी आंखें गड़ाए,
कब यह शिक्षक गिरफ्त में आए,
कानून ने कहा,”मुंह बंद कर लो,
” शिक्षक बोला “कैसे बंद कर लूं ?
बोलना ही तो मेरा पेशा है”
उसने कहा ,”मुझे देखो मेरी आंखें बंद है,
जबकि तोलना ही तो मेरा पेशा है ”
शिक्षक ने शिक्षा पा ली, कानून की सीख अपना ली।
फिर आया ‘शिक्षक दिवस’
सब ने कहा,”जा बेटा तू आज जी ले,
तू भी अपने जी की सुन ले,”
उससे झट एक युक्ति अपनाई,
विद्यार्थियों से कक्षा पढ़वाई।
विद्यार्थियों की अक्ल ठिकाने आई,
शिष्यों ने लोहा माना शिक्षक का,
सम्मान करना है मन में ठाना शिक्षक का।
शिक्षक ने शिक्षा पा ली डूबती नैया की डोर संभाली।
शिक्षक ने शिक्षा पा ली डूबती नैया की डोर संभाली।