छत्तीसगढ़ के दस साल: राजनैतिक स्थिरता और सांस्कृतिक पहचान उपलब्धि

-तपेश जैन

अपनी भाषा, अपना राज, यही तो है प्रगति का राज। इस भावना के अनुरुप छत्तीसगढ़ राज्‍य का सपना खूबचंद बघेल ने मध्यप्रदेश के पुनर्गठन से पहले देखा और उन्‍हें छत्तीसगढ़ राज्‍य के स्वप्न दृष्टा कहलाने का गौरव प्राप्‍त हुआ। पचास साल के अनवरत संघर्ष के बाद एक नवंबर सन् दो हजार को ये सपना सच हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस ने अलग राज्‍य गठन की जो सौगात दी जिसकी वजह से वे सदैव याद किए जाएंगे। अटल जी को छत्तीसगढ़ का निर्माता कहा जाता है तो श्री बैस को सह निर्माता। किसी भी राज्‍य के भाग्य का लेखा उसके प्रारंभ के दस वर्षों में ही लिखा जाता है। इस लिहाज से बीते दस वर्ष निर्णायक सिद्ध हुए है। राजनीति और कार्य संस्कृति का स्वरुप निर्धारित होने अलावा विकास के लिए अधोसंरचना का निर्माण यह तय कर देता है कि राज्‍य किस दिशा में अग्रसर होगा। संतोष का विषय है कि छत्तीसगढ़ के दस साल में न केवल राजनैतिक स्थायित्व रहा बल्कि समांजस्य की कार्य संस्कृति बनी और अधोसंरचना के क्षेत्र में मापदंड स्थापित हुए। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पूरे देश में कल्याणकारी योजनाओं की सफलता से अव्वल स्थान हासिल किया।

तिनमें दक्षिण कोसल देसा, जहां हरि औतु केसरि वेसा,

तासु मध्य छत्तीसगढ़ पावन, पुण्य भूमि-सुर-मुनि मनभावन

सन् 1838 में रचित ‘विक्रम विलास’ ग्रंथ के रचियता बाबू रेवाराम की यह पंक्तियां स्पष्ट करती है कि छत्तीसगढ़ की पुण्य धारा में ईश्वर का वास है। विभिन्न शोधों से यह प्रमाणित हो गया है कि रामायण और महाभारत काल में छत्तीसगढ़ की भूमि जिसे दक्षिण कोसल और दण्डकारण्य कहा गया है, कई ऋषि मुनियों के आश्रम थे। प्रभु रामचंद्र जी ने वनवास के 14 में से 10 साल इस पावन धरती पर व्यतीत किया है। महासमुंद जिले के तुरतुरिया में ऋषि बाल्मिकि का आश्रम और सीता कुटीर इस बात की साक्षी है कि लवकुश का जन्म यहीं हुआ था। श्रृंगी ऋषि, अगस्त्य ऋषि, शरभंग ऋषि, लोमश ऋषि के साथ ही परशुराम की साधना स्थली भी यहीं थी। महाभारत काल में पाण्डव के अज्ञातवास का क्षेत्र भी छत्तीसगढ़ ही था। भगवान बुध्द और जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी के ज्ञान से आलोकित इस पावन धरा में महाप्रभु वल्लभाचार्य, संत गुरुघासीदास, संत गहिरा गुरु ने जन्म लिया।

इस अद्भुत भूमि के भूगोल ने भारत के नक्शे में एक नवंबर दो हजार को अपनी अस्मिता कायम की। नैसर्गिक जंगल, खनिज के भंडार और धान के कटोरे से लबालब छत्तीसगढ़ ने पिछले दस सालों में जो प्रगति की है उसे पूरा देश विस्मित है कि कितनी तेजी से छत्तीसगढ़ ने हर क्षेत्र में विकास किया! विकसित राज्‍यों की दौड़ में पहले स्थान के लिए विकास का पहिया लगातार घूम रहा है।

सब जानते है कि छत्तीसगढ़ कृषि पर आधारित राज्‍य है। धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में किसानों की सबसे बड़ी समस्या पूंजी की रही है। साहूकारों के कर्ज में फंसकर किसान हमेशा ही दुर्दशा का शिकार रहा है। महंगी ब्याजदर से किसान कंगाल हो गए थे। मुख्यमंत्री ने देश में सबसे पहले ब्याज दर को 16 प्रतिशत से घटाकर नौ प्रतिशत किया। नौ के बाद सात और अब मात्र तीन प्रतिशत की दर से कर्ज मिलता है जो देश में सबसे कम है। खेती किसानी के लिए धन की व्यवस्था के बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या उचित दर पर फसल की बिक्री थी। भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किसानों का संपूर्ण धान समर्थन मूल्य पर खरीदकर यह निश्चिंतता प्रदान की है कि फसल का वाजिब दाम मिलेगा। पिछले साल रिकार्ड 44 लाख टन धान की खरीदी से ये साबित हो गया कि सरकार किसानों के सुख-दुख में सहभागी है। किसानों को प्रमाणित बीज, समय पर खाद-पानी और छह हजार यूनिट तक मुफ्त बिजली की सुविधा मुहैय्या करवाने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्‍य है।

छत्तीसगढ़ के 44 प्रतिशत क्षेत्रफल में जंगल है। इस जंगल में आदिम जाति की परपंराओं को संयोजे हुए वनवासियों की आबादी कुल जनसंख्या का 32 प्रतिशत हिस्सा है। अद्भुत धरोहर के साथ आदिवासियों के उत्तान के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने कई योजनांए बनाई। सरगुजा और बस्तर विकास प्राधिकरण का गठन किया गया। वनवासियों को वनभूमि का पट्टा दिए जाने के साथ ही वनोपज की खरीदी सीधे सरकार ने की। तेंदूपत्ता की तुड़ाई दर में वृद्धि, बोनस के साथ ही नि:शुल्क चरण पादुका प्रदान किया गया।

मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि गरीब के पेट की चिंता रही है। गरीबों को दो और एक रुपए किलों की दर से हर महीने 35 किलो चावल देने की क्रांतिकारी योजना ने छत्तीसगढ़ के गरीब मजदूर-किसान की न केवल माली हालत बदल गई बल्कि वो तरक्की के रास्ते पर चल पड़ा। देश के लिए आदर्श बनी खाद्यान्न सुरक्षा योजना ने छत्तीसगढ़ को एक नयीं पहचान दी है। इस योजना की सफलता के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्यापक फेरबदल किया गया है। व्यवस्थित और कंयूटराइड खाद्य वितरण के साथ ही सहकारी समितियों के अलावा महिला स्व-सहायता समूहों को राशन दुकान संचालन की जिम्मेदारी दी गई है। सस्ती दरों में निम्न आय वर्ग के लोगों को पेट की चिंता से मुक्त कर डॉ. रमन सिंह की सरकार ने छत्तीसगढ़ राज्‍य का जो सपना देखा गया था उसे साकार कर दिखाया।

सदियों से छत्तीसगढ़ के लोगों में पिछड़ेपन का जो अवसाद था उसे दूर करने के साथ ही नयीं पीढ़ी को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने पहली से लेकर आठवीं तक के बच्चों को नि:शुल्क किताबें वितरित की। बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए सरस्वती सायकिल प्रदाय योजना के तहत नि:शुल्क साईकिल प्रदान करने के साथ ही कंप्यूटर की भी ट्रैनिंग दी जा रही है ताकि वे नयी टैक्नोलॉजी के साथ आगे बढ़ सके। राज्‍य गठन के बाद वोकेशनल ट्रैनिंग के लिए 88 आई.टी.आई. में रोजगार परक शिक्षा दी जा रही है तो पचास से भी यादा इंजीनियरिंग कालेज खुल गए है।

देश की प्रतिष्ठित समाचार पत्रिका इंडिया टूडे ने छत्तीसगढ़ को सन् 2004 में औद्यौगिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण और बुनियादी ढांचे में लगातार हो रहे विकास को पहला स्थान प्रदान किया तो रिजर्व बैंक ने सन् 2005 में वास्तविक निवेश के लिए राज्‍य को अव्वल माना। खनिज की दृष्टि से संपन्न छत्तीसगढ़ में लोहा, कोयला, लाईम स्टोन, बाक्साईड, टिन का अकूत भंडार है। छत्तीसगढ़ में देश का 38 प्रतिशत स्टील का उत्पादन हो रहा है। सन् 2020 तक देश के पचास फीसदी स्टील का उत्पादन छत्तीसगढ़ करने लगेगा। अभी राज्‍य में देश के कुल सीमेंट उत्पादन में 11 प्रतिशत का हिस्सा है जो भविष्य में तीस प्रतिशत होगा तो एल्युमीनियम के उत्पादन में भी प्रदेश की भागीदारी 20 प्रतिशत की है। करीब 16 प्रतिशत कोयले के भंडार से दो हजार मेगावाट बिजली राज्‍य उत्पन्न करता है जो कि सरप्लस है। छत्तीसगढ़ देश का प्रथम पहला ऐसा राज्‍य है जहां बिजली कटौती नहीं होती।

कई क्षेत्रों में कीर्तिमान रचने वाले छत्तीसगढ़ ने महिला सशक्तिकरण और पंचायती राज में भी देश के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया है। छत्तीसगढ़ देश का ऐसा पहला राज्‍य है जिसने पंचायतों में पचास प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए सुनिश्चित किया है। सन् 2008 में विधानसभा में आरक्षण प्रस्ताव पारित होते ही यह मापदंड स्थापित हो गया। महिला उत्पीड़न रोकने के लिए टोनही प्रताड़ना अधिनियम लागू कर छत्तीसगढ़ ने मिसाल कायम की है।

छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में नृत्य, गीत, और नाटक आदि महत्वपूर्ण स्थान रखते है। अपने दुख-दारिद्रय, हास-परिहास, उमंग-उल्लास, आस्था विश्वास को यहां के भोले-भोले लोग अपनी मीठी छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति के माध्यम से व्यक्त करते है। आदिम जाति की परंपरा को संजोए हुए बस्तर की संस्कृति अद्भुत है। वनवासियों के गंवर नृत्य को संसार का सबसे सुंदर नृत्य माना जाता है तो सतनाम पंथ का पंथी सबसे तेज नृत्य। महाभारत की पंडवानी गायन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है। नाचा -गम्मत में समाज की कुरीतियों के खिलाफ संदेश होता है तो ददरिया सुआ गीत की मिठास मन-मोह लेती है। बीते दस सालों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति को नया आयाम मिला है।

छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़िया संस्कृति को पृथक राज्‍य ने यकीनन गौरव प्रदान किया है। छत्तीसगढ़ी भाषा को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद इस भाषा को न केवल सम्मान मिला बल्कि इसके साहित्य को भी वैश्विक होने का अवसर मिला है। राज्‍य गठन के साथ ही छत्तीसगढ़ी फिल्म के माध्यम ने भी छत्तीसगढ़िया भोलेपन से देश-दुनिया को परिचित करवाया। इसका परिणाम यह निकला कि पहली बार छत्तीसगढ़ी गीत ‘सास गारी देबे, ननद चुटकी लेवें ससुरार गेंदा फूल’ हिन्दी फिल्म दिल्ली-6 में शामिल किया गया जो कि पूरे विश्व में लोकप्रिय हुआ। दूसरा गीत बहुचर्चित पीपली लाइव में चोला माटी के हे राम ने भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया। छत्तीसगढ़ी लोककला और कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर अवसर मिलने का मंच छत्तीसगढ़ी फिल्मों ने प्रदान किया है।

छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों का विकास भी पिछले दस सालों में हुआ है। सिरपुर के बौध्द विहारों को विश्व धरोहर में शामिल करने के प्रयास किए जा रहे है जो प्रसिद्ध बम्लेश्वरी, दंतेश्वरी, महामाया मंदिर में यात्रियों की सुविधा के लिए आवास – सहित कई व्यवस्ताएं की गई है। राजिम पर प्रतिवर्ष होने वाले कुंभ मेले ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है। साधु-संतों के समागम और उनके प्रवचनों से धर्म की गंगा प्रवाहित होती है।

छत्तीसगढ़ के बीते दस साल को सफलताओं का दशक कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। पिछले दस सालों में आवागमन के लिए सड़कों का जाल बिछ गया तो नागरिक सुविधाओं का भी विस्तार हुआ। इंफारमेशन तकनालॉजी ने कई समस्याओं से छुटकारा दिलाया। सड़क-पानी-बिजली की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर छत्तीसगढ़ अब तरक्की की राह में है। पढ़ने के लिए कई इंस्टयूट है तो खेलने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर का स्टेडियम। हर क्षेत्र में विकास कर छत्तीसगढ़ सबले बढ़िया की परिभाषा को सार्थकता प्रदान कर रहा है।

(तपेश जैन रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्मकार हैं। छत्तीसगढ़ पर दो किताबें लिखी हैं और कई डाक्यूमेंट्री फिल्में बना चुके हैं।)

5 COMMENTS

  1. तपेश जी इस उत्तम लेख हेतु साधुवाद ! नैक्स्लाईटर समस्या और छत्तीसगढ़ पर भी कुछ लिखे तो ..? प्रतीक्षा रहेगी. सही स्थिति शायद आपके माध्यम से सामने आये. अधिकाँश पक्ष या विपक्ष में पूर्वाग्रह से अतिरंजित लिखा होता है.

  2. तपेश जी आपने छत्तीसगढ़ की माटी की खुशबू चारों तरफ बिखेर दी है. मुझे आप पर नाज़ है. मैं खुद छातिस्गढ़िया हूँ और इस धरती से जुडी हुई हर गतिविधि पर नजदीक से नजर रखता हूँ.

  3. बहुत अच्छा तपेश जी….शानदार लिखा है आपने…आपको शुभकामना….सादर.

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