अरुण कुमार सिंह
भारत में ‘सेकुलरवाद’ नाम का रोग इतनी तेजी से पफैल रहा है कि कुछ लोग यहां की सदियों पुरानी सभ्यता और संस्कृति, परम्पराओं, मान्यताओं और मूल्यों के नाम पर ही चिढ़ने लगे हैं। कभी बच्चों को ‘ग’ से गणेश, ‘म’ से मंदिर पढ़ाया जाता था। किन्तु सेकुलरों को यह पसंद नहीं आया और अब ‘ग’ से गध पढ़ाया जा रहा है। एक सेकुलर नेता ने कुछ वर्ष पहले कहा था इस देश का केवल ‘इण्डिया’ नाम होना चाहिए, न कि ‘भारत’ या ‘हिन्दुस्तान’, क्योंकि इन नामों से हमारी सेकुलर छवि खराब हो रही है।
श्रीनगर के पास एक पहाड़ी है, जिसे तीन दशक पहले भी शंकराचार्य पहाड़ी कहा जाता था। मान्यता है कि यहां आद्य शंकराचार्य ने कभी निवास किया था। किन्तु अब इस पहाड़ी को ‘कोह सुलेमान’ के नाम से जाना जाता है। हरि पर्वत को ‘कोह महरान’ कहा जा रहा है। श्रीनगर का नाम भी बदलने की तैयारी चल रही है। उसे ‘शहर-ए-खास’ नाम देने की चर्चा है। अनंतनाग का नामकरण इस्लामाबाद कर दिया गया है। अमरीकी कांग्रेस का सत्रा वैदिक मंत्रोच्चारण से प्रारंभ हो सकता है, मारीशस की संसद में ‘रामायण सेंटर’ के लिए विधेयक पारित हो सकता है। किन्तु भारतीय संसद में यदि कोई ऐसी बात करे तो उसे घोर साम्प्रदायिक करार दिया जा सकता है। यह सेकुलर रोग कितना बढ़ चुका है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में पं. दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर कोई तथाकथित सेकुलर राजनीतिक दल अपना कार्यालय नहीं बनाना चाहता है। यदि मजबूरीवश बनाना ही पड़ता है, तो मुख्य द्वार पीछे की तरफ पतली गली में होता है। इन दलों को बाबर रोड, अकबर रोड, औरंगजेब रोड पसंद हैं, पर दीनदयाल उपाध्याय मार्ग नहीं।
किन्तु इंडोनेशिया, जो अभी दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है, अपनी प्राचीन हिन्दू संस्कृति को संरक्षित करने में गर्व का अनुभव करता है। उसकी राजधनी जकार्ता हवाई अड्डे के बाहर अर्जुन को उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण का चित्रा बना हुआ है। बाली, जो इंडोनेशिया का एक द्वीप है और वहां की अध्किांश आबादी हिन्दू है, हवाई अड्डे पर भगवान गरुड़ का चित्रा अंकित है। यही नहीं इंडोनेशिया की एयरलाइन्स का नाम ‘गरुड़ा इन्टरनेशनल’ है। थाईलैंड, जो एक बौद्ध देश है, की राजधनी बैंकाक में सुवर्णभूमि अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। उसके बाहर समुद्र-मंथन के बड़े ही मनोहारी चित्रा बने हुए हैं। उन्हें देखकर मन बड़ा प्रपुफल्लित होता है। आप भी उन चित्रों को देख सकें, इसलिए उन्हें यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
बिलकुल सही कह रहे है श्री अरुण जी.