
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में ‘चौकीदार चोर है’ वाले बयान पर बिना शर्त माफी मांग ली है। यह सुनकर बहुतों को लगा होगा कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी गलतियों पर झुकना सीख गए हैं। किंतु क्या यह सच है। गंभीरतापूर्वक सोचने पर लगता है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। राहुल अभी भी एक के बाद एक गलतियां कर रहे हैं लेकिन जब उनसे मीडिया या अन्य कोई इनके जवाब मांगता है तो वे चुप्पी साध लेते हैं।
वस्तुत: यह सर्वविदित है कि राहुल की ओर से न्यायालय में तीन पृष्ठीय हलफनामे में इस बात को स्वीकार्य किया गया है कि उनसे गलती हो गई। दूसरी ओर वे अपनी सभाओं में इस झूठ को बोलने से भी परहेज नहीं कर रहे कि प्रधानमंत्री मोदी ने सेना में काम करने वाले लोगों के पैसे खुद चोरी करके उद्योपति अनिल अंबानी के खाते में 30 हजार करोड़ रुपए डाल दिए। वे अपने झूठ को यहीं नहीं रोक रहे अपनी सुविधानुसार इस रकम को घटाते-बढ़ाते हुए 45 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच जाते हैं। यहां हद तो यह है कि राहुल इतने पर भी रुकते नहीं। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसते हुए इतना आगे चले जाते हैं कि अनिल अंबानी को चोर कहते हुए यह दावा करने लगते हैं कि मोदी ने जनता का पैसा चोरी करके नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के खातों में भी डाला है। वे मोदी के जरिए विजय माल्या को दस हजार करोड़ रुपए दिने की बात कहते हैं, लेकिन यह नहीं बताते कि विजय माल्या को बैंकों से जो कर्ज दिया गया था, वह कांग्रेसी की संप्रग सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वक्त मिला था। नीरव मोदी और मेहुल चोकसी की अमीरी के पीछे भी पिछला मनमोहन सरकार का कार्यकाल जिम्मेदार रहा है। वास्तव में उनके इस दो तरह के चरित्र से निश्चित ही आज यह साफ नजर आ रहा है कि वे कहीं से भी उच्चतम न्यायालय के प्रति गंभीर नहीं हैं।
दूसरी ओर राहुल से जुड़ी इस हकीकत पर उनकी चुप्पी ने सभी को हैरान और आश्चर्यचकित करके रखा है। जिसमें अहम उनकी ब्रिटिश नागरिकता से जुड़ा सवाल है। वे नागरिकता के प्रश्न पर वे जैसे मौन साध लेते हैं और इस सवाल का जवाब देने के लिए उनकी बहन आगे आती हैं और कहती हैं कि दुनिया जानती है कि राहुल गांधी कहां पैदा हुए। आज यह बताने की जरूरत नहीं कि इंडिया में पैदा हुए। पर इस पर जब प्रियंका गांधी से भी यह पूछा जाता है कि क्या राहुल ने कारोबारी मंशा से ब्रिटेन की नागरिकता ली थी? तो वे भी इसे लेकर चुप नजर आती हैं और मोदी एवं भाजपा को कोसने लगती हैं। । इसी तरह से जब राहुल गांधी से पूछा जा रहा है कि क्या उनसे जुड़ी एक पूर्व कंपनी के साझेदार ने रक्षा सौदे के अंतर्गत ऑफसेट अनुबंध प्राप्त किया था ? तो इस पर भी कोई सही उत्तर राहुल नहीं देते हैं।
हालांकि यह सच है कि सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के ब्रिटिश नागरिक होने का हवाला देकर चुनाव लड़ने से अयोग्य करार देने वाली याचिका खारिज कर दी है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि सिर्फ किसी विदेशी कम्पनी के दस्तावेजों के आधार पर राहुल गांधी को ब्रिटिश नागरिक नहीं बताया जा सकता। किंतु इतने पर भी याचिका कर्ता यूनाइटेड हिंदू फ्रंट के जयभगवान गोयल और हिंदू महासभा के चंद्रप्रकाश कौशिक का साफ कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को आगे होकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी, क्योंकि वे एक जनप्रतिनिधि हैं और देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष हैं। फिलहाल जो तथ्य इंग्लैंड और वेल्स के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के सामने बैकॉप्स लिमिटेड द्वारा दायर दस्तावेज आए और किसी तरह से हमें मिले वे तो यही बताते हैं कि उन्होंने ब्रिटिश नागरिकता ली है।
वस्तुत: यदि यह पूरी घटना सच नहीं है कि राहुल गांधी ने प्रियंका एवं अन्य के साथ साझेदारी करते हुए पहले भारत में बैकप्स नामक एक कंपनी स्थापित की। फिर इसी नाम की कंपनी ब्रिटेन में स्थापित की। आगे राहुल से जुड़ी कंपनी को कुछ समय बाद फ्रांस के साथ हुए रक्षा सौदे में ऑफसेट अनुबंध मिला था तो फिर उन्हें डर किस बात का है? वास्तव में यहां कहना यही हैकि जो व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखता हो और सार्वजनिक जीवन को लेकर अपनी पीढि़यों तक के कार्य की दुहाई अपने भाषणों में देता आया हो, आखिर क्यों वह इन पूछे जा रहे प्रश्नों के उत्तर देने से बचते नजर आते हैं।
देखा जाए तो एकबारगी यही लगता है कि राहुल गांधी इस बार के लोकसभा चुनाव को झूठ की दीवार पर चढ़कर पार कर लेना चाहते हैं, फिर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि हकीकत क्या है। प्रधानमंत्री मोदी को जैसे भी कठघरे में खड़ा कर सकते हो करो और भाजपा को पुन: किसी भी तरह से सत्ता में आने से रोका जाए, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि सार्वजनिक जीवन में जनता सब देख रही है, इसलिए सत्य के साथ ही आगे बढ़ते रहने पर ही मिली सफलता स्थायी तौर पर पास रहती है, फिर वह राजनीति हो या अन्य कुछ ओर । फार्मुला यह सभी पर एक जैसा ही लागू होता है। वस्तुत: झूठ की दीवार पर चढ़ यदि सुख मिल भी जाए तो वह कम से कम स्थायी तो कभी नहीं रहता है। अत: उन्हें अपने से जुड़े यह दो विषय जनता के बीच जाकर अवश्य ही स्पष्ट कर देना चाहिए और प्रधानमंत्री को संकेत में ही सही चोर कहने पर सार्वजनिक माफी भी मांग लें तो बहुत ही अच्छा है।
३०००० हजार करोड़ का तो कुल सौदा ही नहीं है , इस बेवकूफ को यह पता नहीं है कि उसने पिछली मीटिंग में क्या बयान दिया था , हर सभा में नया आंकड़ा आ जाता है , फिर रफ्फल में कुल कितने ओफ़्सेट पार्टनर था वह यह नहीं बताता अम्बानी तो उन में से एक था , झूठ ज्यादा समय नहीं चलता
नकटे की कोई नाक नहीं होती और वही इनके साथ है सच्चाई सामने आ चुकी है इसलिए वह अजब रफाल को भूल गया है
बेशर्म लोगों के कोई फर्क भी नहीं पड़ता कोर्ट मरण माफ़ी मांग रहा है मीटिंग्स में अब भी चिल्ला रहा है तो जनता में विश्वसनीयता खत्म होती जा रही है आखिर सारी जनता बेवकूफ नहीं है