कुमार कृष्णन
जब सरकार यह दावा करती है कि भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग का उन्मूलन हो चुका है, उस समय देशभर में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान हो रही रोकी जा सकने वाली मौतें एक भयावह सच्चाई को उजागर करती हैं — एक ऐसी सच्चाई जो दंडहीनता, प्रणालीगत जातीय हिंसा और संस्थागत उपेक्षा से भरी है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग का अर्थ है अस्वास्थ्यकर शौचालयों, नालियों या खुले गड्ढों से मानव मल को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के हाथ से साफ करने, ले जाने या हटाने की प्रथा।
2 फरवरी 2025 को, दो सफाई कर्मियों की मौत हो गई और एक गंभीर रूप से घायल हो गया जब वे नरेला, बाहरी दिल्ली के मनसा देवी अपार्टमेंट्स के पास एक सीवर की सफाई कर रहे थे। निजी ठेकेदार द्वारा नियुक्त इन लोगों को किसी भी सुरक्षा उपकरण के बिना जहरीले गड्ढे में उतारा गया था। कुछ दिन बाद, उसी सुबह कोलकाता लेदर कॉम्प्लेक्स के बंटाला क्षेत्र में नाले की सफाई करते समय फर्ज़ेम शेख, हाशी शेख और सुमन सरदार — सभी मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल के निवासी — की मौत हो गई। कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण द्वारा नियोजित इन मजदूरों को एक पाइप फटने के कारण मैनहोल में बहा दिया गया। उनके शव कई घंटे बाद पुलिस, अग्निशमन और आपदा प्रतिक्रिया दलों द्वारा बरामद किए गए। कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम ने औद्योगिक अपशिष्ट से उत्पन्न विषैली गैस को घटना का कारण बताया और जांच की घोषणा की लेकिन ऐसी जांचें शायद ही कभी दोषियों को सजा या सुधार की ओर ले जाती हैं।
ये मौतें 29 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के केवल चार दिन बाद हुईं जिसमें भारत के प्रमुख महानगरों (दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद) में मैनुअल स्कैवेंजिंग और खतरनाक सीवर सफाई को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया गया था। यह फैसला जस्टिस सुधांशु धूलिया और अरविंद कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर याचिका पर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि मैनुअल स्कैवेंजिंग को पूरी तरह खत्म किया जाना चाहिए। इसके अलावा अदालत ने मेट्रो शहरों के अधिकारियों को निर्देश दिया कि पिछले तीन महीनों में मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण हुई मौतों के परिजन को चार हफ्तों के अंदर 30 लाख का मुआवजा दिया जाए। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच मैनुअल स्कैवेंजिंग और खतरनाक सफाई कार्यों पर बैन की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।कोर्ट ने दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद और बेंगलुरु के अधिकारियों को मैनुअल स्कैवेंजिंग और सीवर सफाई पर दिए गए असंतोषजनक हलफनामों को लेकर तलब किया था।
अदालत ने अब पाया कि नए हलफनामे भी चालाकी से शब्दों को घुमा-फिराकर पेश किए गए हैं। अदालत ने कहा कि सभी अधिकारियों को प्रोहिबिशन ऑफ इंप्लायमेंट एस मैन्युअल स्कैविंजर एंड देयर रिहेबिलेशन एक्ट 2013 के तहत आज से चार हफ्तों के भीतर उन सभी मौतों के लिए 30 लाख का मुआवजा देना होगा। सुनवाई के दौरान दिल्ली जल बोर्ड के वकील ने तर्क दिया कि जिस सीवर में मौतें हुईं, वह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता लेकिन जब जस्टिस धूलिया ने दिल्ली जल बोर्ड निदेशक पंकज कुमार अत्रे से सीधा सवाल किया तो उन्होंने स्वीकार किया कि यह इलाका दिल्ली जल बोर्ड के अंतर्गत आता है हालांकि, दिल्ली जल बोर्ड ने दावा किया कि यह एक अनधिकृत निजी प्रवेश था और उनके कर्मचारी वहां मौजूद नहीं थे। इस पर जस्टिस कुमार ने चेतावनी दी कि यदि संतोषजनक जवाब नहीं आया, तो अवमानना कार्यवाही शुरू की जाएगी। अदालत ने दिल्ली जल बोर्ड को एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने और यह स्पष्ट करने का आदेश दिया कि मैनुअल स्कैवेंजिंग को कब और कैसे रोका गया।
बीबीएमपी ने दावा किया कि 2013 से मैनुअल स्कैवेंजिंग बंद है और 2017 के बाद कोई मौत नहीं हुई लेकिन कोर्ट ने सरकारी आंकड़ों के आधार पर साफ किया कि 2024 में 4 और 2023 में 3 मौतें हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि अगली सुनवाई में हलफनामा संतोषजनक नहीं हुआ, तो प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। हैदराबाद जल एवं सीवरेज बोर्ड ने तर्क दिया कि मौतें मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण नहीं बल्कि पुरानी पाइपलाइन मरम्मत के दौरान हुईं। जस्टिस धूलिया ने कहा कि सीवर लाइन की सफाई और मरम्मत के दौरान मजदूरों की मौत को अलग नहीं किया जा सकता हालांकि, अत्याधुनिक सफाई मशीनों की उपलब्धता के लिए कोर्ट ने हैदराबाद की सराहना की। वहीं, पश्चिम बंगाल सरकार ने बताया कि कोलकाता में 3 मौतों पर प्राथमिकी दर्ज की गई है और ठेकेदार ने 10 लाख मुआवजा दिया है लेकिन कोर्ट ने 30 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया और कहा कि यह मैनुअल स्कैवेंजिंग का मामला ही माना जाएगा। हाथ से मैले की सफाई यानी मैन्युअल स्कैवेंजिंग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पहले से कई निर्देश जारी कर रखे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए 2014 में गाइडलाइंस भी जारी की थीं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से फरवरी 2023 में कहा था कि वह बताए कि इस मामले में बने 2013 के कानून को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।
कोर्ट ने कहा था कि केंद्र बताए कि 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत जारी गाइडलाइंस को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। मामले की सुनवाई अभी भी जारी है. सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को चेताया है कि अगर संतोषजनक जवाब और कदम नहीं उठाए गए तो प्राथमिकी भी दर्ज की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में बेहद सख्त है अब देखना है कि इस पर किस हद तक लगाम लग पाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक ऐतिहासिक फैसले में हाथ से कचरे और गंदगी की सफाई रोकने के लिए तमाम निर्देश जारी किए थे। साथ ही कहा था कि सीवर की खतरनाक सफाई के लिए किसी मजदूर को न लगाया जाए।
– बिना सेफ्टी के सीवर लाइन में मजदूर को न उतारा जाए। कानून का उल्लंघन करने वालों को सख्त सजा का भी प्रावधान किया गया था।
– देश भर के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वह 2013 के उस कानून को लागू करे जिसमें हाथ से कचरा उठाने की प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधान किया गया और पीड़ितों के पुनर्वास के लिए प्रावधान किया गया था।
– सुप्रीम कोर्ट में केस पेंडिंग रहने के दौरान ही केंद्र सरकार ने एक्ट (प्रोहिबिशन ऑफ इंप्लायमेंट एस मैन्युअल स्कैविंजर एंड देयर रिहेबिलेशन एक्ट 2013) बनाया था। याचिका में कहा गया था कि उनके जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार की रक्षा की जाए। इसके बावजूद मौतों का सिलसिला थमा नहीं है।
भारत में मौत और चुप्पी का सिलसिला
तिरुप्पुर, तमिलनाडु (19 मई 2025): तीन दलित मजदूर — सरवनन (30), वेणुगोपाल (30), और हरि कृष्णन (27) — अलाया डाइंग मिल्स में सीवेज टैंक की सफाई करते समय जहरीली गैस से मारे गए। एक अन्य मजदूर अस्पताल में है। फैक्ट्री मालिक, मैनेजर और सुपरवाइजर के खिलाफ मैनुअल स्कैवेंजर्स अधिनियम 2013, एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम, और भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज।
खंडवा, मध्य प्रदेश (3 अप्रैल 2025): गंगौर त्योहार से पहले कुएं की सफाई करते समय कोंडावत गांव में आठ लोगों की मौत जहरीली गैस से हुई। जांच जारी है।
फरीदाबाद, हरियाणा (21 मई 2025): सिकरी गांव के हरिजन मोहल्ले में एक मजदूर की सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मौत हो गई और उसे बचाने की कोशिश में मकान मालिक भी मारा गया। कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई; पुलिस ने कहा “कोई शिकायत नहीं मिली”, और घटना को “जांच कार्यवाही” कहकर टाल दिया गया।
अहमदाबाद, गुजरात – दानीलिमड़ा (16 मई 2025): तीन ठेका मजदूर — प्रकाश परमार, विशाल ठाकोर, और सुनील राठवा, सभी लगभग 20 वर्ष के — एक कपड़ा फैक्ट्री में सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मारे गए। फैक्ट्री एक साल से बंद थी और पुनः आरंभ के लिए सफाई हो रही थी। कोई सुरक्षा प्रोटोकॉल नहीं अपनाया गया था। चौथा मजदूर बच गया। मामला जांच में है।
फरवरी 2025 से मई 2025 के बीच 20 मैनुअल स्कैवेंजरों की मौत की रिपोर्ट मिली है।
आँकड़ों के अनुसार, लगभग 92% सफाई कर्मचारी अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ा वर्ग से आते हैं। ये मौतें केवल दुर्घटनाएँ नहीं हैं — यह संरचनात्मक जातिवाद, आर्थिक शोषण और जानबूझकर की गई उपेक्षा का नतीजा हैं।
हालाँकि मैनुअल स्कैवेंजर्स अधिनियम 2013 और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 17 (अछूत प्रथा की समाप्ति) के तहत यह कार्य स्पष्ट रूप से निषिद्ध है, फिर भी सरकार और निजी संस्थाएं बिना किसी डर के कानून का उल्लंघन करती हैं।
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के संजीव कुमार के अनुसार मंच भारत में मैनुअल स्कैवेंजरों की निरंतर और रोकी जा सकने वाली मौतों पर त्वरित और निर्णायक कार्रवाई की माँग करती हैं। साथ ही हाल की सभी मौतों में सभी संबंधित कानूनों के तहत तत्काल प्राथमिकी दर्ज हो जिनमें मैनुअल स्कैवेंजर्स अधिनियम 2013 की धारा 9, भारतीय न्याय संहिता की धाराएं 106(1), 125A, 194, और एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराएं 3(1)(r) और 3(2)(v) शामिल हैं। प्रत्येक घटना की स्वतंत्र, समयबद्ध न्यायिक जांच होनी चाहिए जिसकी पूरी पारदर्शिता और सार्वजनिक रिपोर्टिंग सुनिश्चित हो। मंच ने मृतकों के परिजनों को कम से कम 30 लाख रुपये मुआवजा, और आवास, शिक्षा, और आजीविका के अवसरों सहित समग्र पुनर्वास की माँग की हैं। इसके साथ ही 29 जनवरी 2025 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीय निगरानी निकाय के गठन और नियमों का उल्लंघन करने वाले सभी ठेकेदारों के लाइसेंस रद्द करने की माँग भी की हैं। इसके अतिरिक्त, मंच ने कहा है कि वह सफाई कार्यप्रणालियों का राष्ट्रीय ऑडिट चाहते हैं, खासकर निजी और शहरी निकायों में, और अनियमित श्रम बिचौलियों को दिए जाने वाले ऐसे ठेकों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना आवश्यक है।
ये कदम केवल उपचारात्मक नहीं हैं — ये हमारे संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने, कानूनी जवाबदेही सुनिश्चित करने और सफाई कर्मियों की गरिमा और मानवता को मान्यता देने की दिशा में आवश्यक प्रयास हैं।
सीवर में हुई मौतों को चुप्पी से नहीं, न्याय से जवाब मिलना चाहिए। ये मजदूर अदृश्य नहीं हैं। उनकी जान की कीमत है। उनकी मौतें अनिवार्य नहीं हैं। हम पीड़ितों के परिवारों के साथ अटूट एकजुटता में खड़े हैं और माँग करते हैं कि उनके नाम भुलाए न जाएँ, उनकी कहानियाँ दफ़न न हों, और उनके अपराधियों — चाहे व्यक्ति हों या संस्थान — को जवाबदेह ठहराया जाए।
यह दया का विषय नहीं है — यह संवैधानिक कर्तव्य, कानूनी बाध्यता, और मानवीय गरिमा का सवाल है।
कुमार कृष्णन