“कांग्रेस के हत्यारे इसी कमरे में बैठे हैं।” : प्रियंका गाँधी

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आर.बी.एल.निगम 
लोकसभा चुनाव में हुई शर्मनाक हार को लेकर जितना घमासान अब देखने को मिल रहा है, पूर्व में कभी नहीं। मजे की बात यह है कि पूरी मीटिंग में परिवारवाद ही हावी रहा, पार्टी के घोटाले नहीं, क्यों? जहाँ तक परिवारवाद की बात है, निस्संदेह सबसे बड़ा कसूरवार यही गाँधी परिवार है। इस हार से केवल राहुल गांधी ही नहीं प्रियंका गांधी भी वरिष्ठ नेताओं से बेहद नाराज हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) मीटिंग में हुए सनसनीखेज घटनाक्रम की बातें अब बाहर निकलकर आने लगीं हैं। इस बैठक में जहां राहुल गांधी ने कहा कि वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी से पहले अपने पुत्रों के हित को देखा वहीं प्रियंका गांधी ने काफी तल्ख लहजे में कहा कि कांग्रेस के हत्यारे इसी कमरे में बैठे हैं। 
पूरा गांधी परिवार वरिष्ठ नेताओं से नाराज है
न्यूज एजेंसी यूएनआई को सूत्र ने बताया कि गांधी परिवार ने इस बैठक में कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा राहुल को जरूरी समर्थन ना देने पर नाराजगी जाहिर की थी। परिवार की नाराजगी स्पष्ट थी, क्योंकि सोनिया भी पूरी बैठक के दौरान कुछ नहीं बोलीं और यह जाहिर किया कि उन्हें भी अपने विश्वस्त साथियों से निराशा हासिल हुई।
12 तुगलक लेन से इन दिनों कई खबरें निकलकर आ रहीं हैं। बताया जा रहा है कि राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं की मनमानी चलेगी और विपक्षी पार्टियों के लिए गांधी परिवार निशाने पर बना रहेगा, यह अब नहीं चलेगा। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी ने 3 माह का समय दिया है। इस दौरान कांग्रेस को अपने नए अध्यक्ष का चुनाव करना है।
अपनों ने ही कांग्रेस को डुबोया
अनुभवहीन राहुल और प्रियंका को शायद कांग्रेस के इतिहास के बारे में ज्ञान नहीं। महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक नेहरू-गाँधी परिवार ने किसी नेता की नहीं सुनी। जो गुलाम बन परिवार की जी-हुजूरी करता रहा, उसे सब खून माफ़ का इतिहास रहा है। यदि नेताओं की सुनी जाती तो देश में इतनी पार्टियां नहीं बनती। एक कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़ समस्त पार्टियाँ कांग्रेस में से ही निकली हैं। भारतीय जनसंघ वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी नेहरू के मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री थे। जम्मू-कश्मीर और शेष भारत में अलग-अलग प्रधानमन्त्री, वहां जाने के लिए परमिट प्रथा, जैसे की विदेश में जा रहे हों, आदि कुप्रथाओं के विरुद्ध में कांग्रेस से अलग हुए। बहुत हैं ऐसे उदाहरण जो अब इतिहास बन चुके हैं। 
वर्तमान को ही लें, सोनिया गाँधी से नाराज होकर ममता बनर्जी ने अलग होकर अपनी पार्टी बनाई; 2014 में मोदी लहर को रोकने के लिए अपनी समिति के सदस्यों जैसे अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, योगेन्द्र यादव आदि से आम आदमी पार्टी का गठन करवा दिया, पार्टी के बुद्धिजीवी वर्ग के विरोध को दरकिनार कर दिया गया। उस समय सेवानिर्वित होने उपरान्त एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते शीर्षक “कांग्रेस के गर्भ से निकली आप” में उल्लेख किया था। और गंभीरता से अवलोकन किया जाये तो भाजपा से कहीं अधिक कांग्रेस को नुकसान पहुँचाया है तो ममता और केजरीवाल ने। 

केवल राहुल या प्रियंका नहीं, सोनिया गाँधी बताएँ किसने इन्हे
10 जनपथ से बेइज्जत कर निकाला था, आज इन्होने ही
अपने प्रदेश से कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ कर दिया।  और 

मोदी के हमज़ुल्फ़ बन रहे हैं। 

10 जनपथ की दीवारों से सिर फोड़ कांग्रेस दम तोड़ रही है 
अब जगनमोहन की कहानी सुनिये आंध्र में लगातार दो बार अपनी दम पर जिस जगनमोहन के पिता ने सरकार बनाई उनकी मृत्यु एक हवाई दुर्घटना में होने के बाद जब जगन की माँ और बहन हैदराबाद से दिल्ली आकर सोनिया गांधी से मिलने 10 जनपथ पहुँची तो दोनों को अपमानित होकर 10 जनपथ से बाहर आना पड़ा। आज आंध्र औऱ तेलंगाना दोनो में कांग्रेस का पिंडदान सा हो चुका है। राहुल गांधी और सोनिया 23 मई से पहले उसी आंध्र के चुके हुए नेता चन्द्रबाबू से दो दो बार मिल रहे थे औऱ कांग्रेस वफादार रहे जगनमोहन आंध्र में कांग्रेस की कब्र खोदकर 175 में से 151 सीटे लेकर इतिहास बना रहे थे।
वे अक्सर विचारधारा की बात करते है संगठन की बात करते है पर वो विचार आखिर है क्या? क्या सिर्फ मोदी और आरएसएस को गालियां देना? यह कांग्रेस की वैचारिकी नही है कहाँ है कांग्रेस का समाजवाद? कहां है कौमी एकता का गुलदस्ता? सच तो यह है कि आज कांग्रेस सिर्फ चुनाव लड़ने का एक प्लेटफॉर्म बनकर रह गई है जो सिर्फ चुनाव में नजर आती है। आलाकमान नामक अवधारणा का अंत हो चुका है वरन जिस राजशेखर रेड्डी ने एकीकृत आंध्रप्रदेश में दो दो बार सरकारें बनाई उसके परिवार के लोगो को 10 जनपथ से बेइज्जत क्यों होना पड़ा? क्या सोच रही होगी ऐसा करते समय ? राजनीतिक तो बिल्कुल नही। 
आज आंध्र औऱ तेलंगाना में कांग्रेस खत्म हो गई जो सत्ता में है वे कभी कांग्रेसी ही हुआ करते थे।आसाम औऱ नॉर्ट ईस्ट में जहां बीजेपी का नामलेवा नही हुआ करता था आज वहाँ मोदी और बीजेपी का डंका बज रहा है। आखिर क्यों हिमंता बिस्वा शर्मा को 10 जनपथ सहेज नही पाया?जेबी पटनायक, गिरिधर गोमांग 1999 तक उड़ीसा के कांग्रेसी सीएम हुआ करते थे आज वहाँ बीजेपी खड़ी है पर कांग्रेस गायब हो गई।
कर्नाटका में एस एम कृष्णा, मार्गेट अल्वा जैसे नेता क्यो बीजेपी के पाले में चले गए? बंगाल में ममता बनर्जी क्या मूलतः कांग्रेसी नही है। जिस यूपी बिहार में कांग्रेस की ताकत सर्वाधिक थी हेमवती नंदन, केसी पन्त, एन डी तिवारी, बनारसी दास, के परिवार किधर है? क्या 1999 के बाद से पार्टी का अखिल भारतीय स्वरूप तेजी के साथ नही सिमटा है? इस सिकुड़न को लेकर कोई मंथन कांग्रेस में ईमानदारी के साथ हुआ है।
अगर ध्यान से देखे तो बंगाल,महाराष्ट्र, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक,यूपी, त्रिपुरा,आसाम,कश्मीर,उत्तराखण्ड, जैसे राज्यो में जो चेहरे कांग्रेस के सामने खड़े है वे कभी कांग्रेसी ही हुआ करते थे।जिसे आलाकमान कहते है उस 10 जनपथ की नीतियों राजनीतिक समझ के आभाव में वे कांग्रेस से दूर हुए औऱ आज कांग्रेस के अस्तित्व पर चोट कर रहे हैं। इसके बाबजूद पूरी कांग्रेस राहुल गांधी के सामने याचक की मुद्रा में खड़ी है। 
आखिर क्या किया है राहुल ने काँग्रेस के पुनर्जीवन के लिये? सेवादल, यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, विचार प्रकोष्ठ, किसान कांग्रेस, इंटक, महिला कांग्रेस, जैसे सब जमीनी अनुषांगिक संगठन आज खत्म हो गए। युवक कांग्रेस के संगठन को एक ईसाई मूल के नोकरशाह लिंगदोह के कहने पर राहुल गांधी ने ही खत्म किया है लोकसभा, विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव कराकर।एनएसयूआई का कोई अता पता नही है कभी इन संगठनों से विधानसभा लोकसभा के टिकट के कोटे फिक्स थे लेकिन अब राहुल खुद भोपाल में घोषणा करते है कि टिकट सिर्फ कांग्रेसी को मिलेगी पैराशूट से आने वालों को नही लेकिन भोपाल में सार्वजनिक रूप से की गई घोषणा का भोपाल में ही अमल नही हो पाया।राहुल असल मे दो दुनियां में रहने वाले शख्स है एक कांग्रेस की विरासत और दूसरी अपनी मूल दुनियां जहां राजनीति का कोई कॉलम ही नही है। 
यही कारण है कि उनके निर्णयों के पीछे क्रियान्वयन की इच्छाशक्ति, निरंतरता कभी नही देखी गई।उनकी मंडली एनजीओ टाइप सलाहकारों की है जो दिमाग से 100 प्रतिशत कम्युनिस्ट है इन्ही सलाहकारों ने राहुल को जेएनयू में जाकर टुकड़े,टुकड़े गैंग की वकालत में खड़ा किया जो अंततः अफजल औऱ याकूब मेनन की फांसी को रुकवाने के हिमायती थे।देश की जनता ने राहुल के इस आचरण को कतई पसन्द नही किया।आप बीजेपी खासकर मोदी  के राष्ट्रवाद से जेएनयू जाकर नही लड़ सकते है। राहुल वायनाड जाकर लड़ते है जहां मुस्लिम ,ईसाई वोटर निर्णायक है मुस्लिम लीग के झंडो में कांग्रेस का तिरंगा छिपा दिया जाता है और दूसरी तरफ आप मंदिर, मन्दिर,भागते है खुद को दत्तात्रेय ब्राह्मण बताते है और सोमनाथ के मंदिर में जाकर आप अपनी उपस्थिति  गैर हिन्दू के रूप करते है।यह भृम यह भटकाव,यह अदूरदर्शिता  कांग्रेस आलाकमान की कभी नही रही है।
इस सन्दर्भ में एक शेर स्मरण आता है: 
दिल के फफोले जल उठे, सीने की आग से !
इस घर आग लग गयी, घर के चिराग से !!  
राहुल ने कहा था: नेताओं ने अपने हितों को पार्टी से ऊपर रखा
सीडब्ल्यूसी की बैठक में राहुल गांधी ने कुछ नेताओं द्वारा अपने बेटों को टिकट देने के लिए अड़ने पर नाराजगी जाहिर की थी। राहुल ने साफतौर पर कहा था कि इन नेताओं ने अपने हितों के लिए पार्टी के हित को दरकिनार कर दिया। नाराज राहुल ने कहा था कि लोकसभा चुनाव की हार पर अध्यक्ष होने के नाते उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफा दे देना चाहिए।
इस्तीफे पर विचार के लिए राहुल को एक महीने का वक्त मिले: प्रियंका
सूत्र के मुताबिक, प्रियंका ही पहली नेता थीं, जिन्होंने यह सुझाव दिया कि राहुल को अपने इस्तीफे पर विचार के लिए एक महीने का समय दिया जाए। कांग्रेस नेताओं के साथ अपनी बातचीत में भी प्रियंका और राहुल ने कई नेताओं की कार्यप्रणाली को सही नहीं ठहराया। गांधी परिवार की नाराजगी का कारण कांग्रेस के मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम थे। 

मनमानी आपकी और जिम्मेदार गांधी परिवार, नहीं चलेगा: राहुल गाँधी 

कांग्रेस में मई 28 को दिन भर की हलचल के बाद सूत्रों का दावा है कि राहुल गांधी अगले 3-4 महीनों तक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बने रहने को तैयार हो गए हैं, बशर्ते इस दौरान उनका कोई विकल्प खड़ा किया जाए। इस दरम्यान राहुल पार्टी में बड़े बदलाव करेंगे। 25 मई को हुई कांग्रेस कार्य समिति (CWC) की बैठक में उन्हें इसके लिए अधिकृत भी किया गया था। राहुल को कांग्रेस पार्टी की अगुवाई करते रहने के लिए मनाने उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा, पार्टी के कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला उनके घर पहुंचे थे।
राहुल से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी मुलाकात की। खबर आई थी कि चुनाव में गहलोत के पुत्र प्रेम पर राहुल ने सीडब्ल्यूसीसी की बैठक में नाराजगी जताई थी। राहुल से अहमद पटेल, सचिन पायलट और के सी वेणुगोपाल ने भी मुलाकात की है और पद पर बने रहने की अपील की है। चुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार के बावजूद कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि राहुल अगर अध्यक्ष पद से हट गए तो पार्टी बिखर जाएगी।
सूत्रों के मुताबिक राहुल ने सीडब्ल्यूसी की बैठक जिन नेताओं के पुत्र प्रेम पर सवाल उठाया था उनमें पी. चिदंबरम भी थे। हालांकि चिदंबरम के बेटे कार्ति तमिलनाडु की शिवगंगा सीट से चुनाव जीत गए हैं। कार्ति भी कह रहे हैं कि राहुल ही कांग्रेस के नेता हैं और बने रहेंगे। इस बीच कांग्रेस के बड़े नेताओं के अलावा जिला इकाइयों की ओर से भी राहुल को समर्थन मिल रहा है।

बैठक में चिदंबरम और गहलोत चुप रहे, कमलनाथ आए ही नहीं 

सूत्र के मुताबिक, सीडब्ल्यूसी की बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम चुपचाप थे। वहीं, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ इस बैठक में शामिल नहीं हुए। कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ मप्र की छिंदवाड़ा और चिदंबरम के बेटे कार्ति तमिलनाडु की शिवगंगा सीट से लोकसभा चुनाव जीते। वहीं, अशोक गहलोत के बेटे वैभव जोधपुर सीट से चुनाव हार गए।उत्तर प्रदेश के जौनपुर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने खून से राहुल गांधी को चिट्ठी लिख, अपील की है कि वो अध्यक्ष पद न छोड़ें। चिट्ठी में लिखा गया है कि राहुल गांधी इस्तीफा मत दीजिए, हम सब आपके साथ हैं। राहुल गांधी को अपने सहयोगियों से भी समर्थन मिला। डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन ने राहुल गांधी से फोन पर बात की, और राहुल से कहा कि भले चुनाव में हार हुई लेकिन उन्होंने लोगों का दिल जीता है। 

हार में प्रियंका भी जिम्मेदार 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राहुल के अध्यक्ष बनने की अटकलों के कहा था कि “जितनी जल्दी हो राहुल को अध्यक्ष बनाइये।” जो धरातल पर चरितार्थ होती दिख रही है। इतना ही नहीं, पार्टी को डुबोने में प्रियंका का भी कम योगदान नहीं रहा। यानि भाई सेर तो बहन सवा सेर। चुनावों के हार तो उसी दिन दिख गयी थी, जिस दिन प्रियंका ने कहा था,”मैंने चुन-चुनकर ऐसे लोगो को टिकट दिए हैं, जो भाजपा के वोट काटे।” जिसने स्पष्ट कर दिया था कि कांग्रेस कहीं दौड़ में नहीं। प्रियंका के इस कथन पर किसी में बोलने का साहस नहीं। अब इसे परिवार की गुलामी न कहा जाए तो क्या नाम दिया जाए। 

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