प्रभुनाथ शुक्ल

मुर्दे सवाल करते हैं… ?
वे कहते हैं
बेमतलब बवाल करते हैं
इंसानों हम तो मुर्दे हैं
क्योंकि…
हमारे जिस्म में साँसे हैं न आशें
लेकिन…
इंसानों, तुम तो मुर्दे भी नहीं बन पाए
क्योंकि…
जिंदा होकर भी तुम मर गए
मैंने तुमसे क्या माँगा था…?
सिर्फ साँसे और अस्पताल
तुम वह भी नहीं दे पाए
हमने तो तुमसे
सिर्फ चार कंधे मांगे…?
तुम वह भी नहीं दे पाए
हमने तो तुमसे…?
श्मशान की सिर्फ चारगज जमींन मांगी
तुम वह भी नहीं दे पाए
हमने तो तुमसे…?
चार लकड़ियां और माँ गंगा की गोद मांगी
तुम वह भी नहीं दे पाए
हमने तो तुमसे…?
अंजूरी भर तिलाँजलि और मुखाअग्नि मांगी
तुम वह भी नहीं दे पाए
हमने तुमसे क्या माँगा…?
धन, दौलत और सोहरत
रिश्ते, नाते और उपहार
तुमने तो…
इंसानियत और रिश्तों को बेच डाला
अपनों को चील-कौओं को दे डाला
और कितना दर्द कहूं
कितनी पीड़ा और सहूँ
इंसानों तुमने तो…?
मेरे जिस्म का कफ़न भी बेच डाला …?