पंडित विनय कुमार
मैं जानता हूँ कि
बहुत बुरा होता है
सपनों का मर जाना-
वे सपने, जो जन्मते हैं
हमारे जन्म के साथ
और मरते हैं बार-बार
विभिन्न परितस्थतियों में जब-तब,
जब हम थक-हार जाते हैं,
जब प्रकृति
परिस्थितियों के सामने
हमारी एक नहीं चलती,
जब हम प्रत्येक परिस्थितियों में
असहाय
असफल और अकर्मण्य –से बने रहते हैं तब;
जब हमारी चेतना निस्पंद होने लगती है;
हमारी जिजिविषा जब थक जाती है
और हमारा चला आ रहा अनुकूल वक्त चुक जाता है….
तब बीता समय नहीं आता वापस,
हमारी उम्र भी तब वापस नहीं लौट पाती,
न ही हमारा प्रयास सफल हो पाता है
तब ऐसा लगता है कि जरूर हम कहीं-न-कहीं
से थक-हार गए हैं
क्योंकि
हमें पता है थकना, हारना या हतोत्साहित होना अच्छा नहीं होता जीवन में
जीवन जीने के लिए जरूरी है आत्मविश्वास,
सही लक्ष्य, सही परिश्रम, सही कार्यनीति;
किसे पता नहीं हैं
थकना हारना हैं
निराशा हारना हैं
हतोत्साहित होना हारना है-
क्योंकि तब सपने बुने नहीं जाते,
तब सपने मरने लगते हैं…
सपनों का मर जाना बहुत बुरा होता है,
इसके लिए गवाह है हमारा इतिहास
जिसमें वर्णित कथाएँ बतलाती है हमें
मानव जीवनका इतिहास
जो बार-बार हमें चिंता में डालता है
जो कभी-कभी सोचने के लिए मजबूर करता है कि हम कि घर जा रहे हैं?
कि हमारा गन्तव्य कहाँ है?
और बार-बार ऐसा लगता है
कि
हम अब बहुत- कुछ भूलते जा रहे हैं….
भूलना-उम्र की ढलना की वजह से है-
भूलना-थकान की वजह से है-
भूलना- तनाव की वजह से है-
क्योंकि जीवन है-इसीलिए है ‘भूलना’
इसीलिए है ‘थकान’ और इसीलिए है ‘तनाव’!
हम जानते हैं कि ‘तनाव’ हमें थका डालते हैं
‘तनाव’ हममें पराजय का सूत्र लाना है
ये सब मिलकर
हमारे सपनों को बार-बार कुंद करते हैं
इसीलिए कहना पड़ता है अंतत:
कि
‘बहुत बुरा होता है सपनों का मर जाना’ ।