उमेश कुमार साहू
नवरात्रि केवल उत्सव, व्रत या आराधना का नाम नहीं है. यह जीवन की वह तपोभूमि है, जहाँ मनुष्य अपने भीतर छिपी दिव्यता से साक्षात्कार करता है। नौ रातों का यह पर्व हमें बाहरी शोरगुल और सांसारिक मोहजाल से उठाकर आत्मा की यात्रा पर ले जाता है, जहाँ शांति, संतुलन और अनंत शक्ति का प्रकाश व्याप्त है।
देवी : शक्ति का शाश्वत स्वरूप
सनातन संस्कृति में देवी केवल मूर्ति नहीं, बल्कि जीवंत ऊर्जा हैं।
· दुर्गा हमें साहस और आत्मविश्वास देती हैं ताकि हम भय और अज्ञान का नाश कर सकें।
· लक्ष्मी केवल धन की अधिष्ठात्री नहीं, बल्कि संतोष, आभार और समृद्धि की प्रेरणा हैं।
· सरस्वती हमें बताती हैं कि सच्चा वैभव ज्ञान और विवेक में है।
नवरात्रि का गूढ़ संदेश यही है कि हम अपने भीतर सोई हुई इन शक्तियों को जागृत करें और उन्हें जीवन का मार्गदर्शक बनाएं।
नौ रातों का रहस्य
हर रात का एक विशेष महत्व है। ये नौ रातें मानो आत्मा की सीढ़ियाँ हैं, जो हमें साधारण मनुष्य से ऊँची चेतना तक पहुँचाती हैं।
· पहली तीन रातें हमें भीतर की नकारात्मक शक्तियों से संघर्ष का संदेश देती हैं।
· मध्य की तीन रातें आत्मशुद्धि और संतुलन की साधना हैं।
· अंतिम तीन रातें ज्ञान, भक्ति और आत्मज्ञान की ऊँचाई तक ले जाती हैं।
दसवें दिन की विजयादशमी केवल राम की रावण पर विजय का प्रतीक नहीं, बल्कि हमारे भीतर की बुराइयों पर आत्मा की विजय का उत्सव है।
आधुनिक जीवन में नवरात्रि का संदेश
आज की दुनिया अस्थिरता, चिंता और तनाव से घिरी है। ऐसे समय में नवरात्रि हमें सिखाती है कि –
· बाहरी दौड़-भाग में खोकर आत्मा को मत भूलो,
· मन को शुद्ध किए बिना सच्चा सुख संभव नहीं,
· सेवा, दया और प्रेम ही जीवन को सार्थक बनाते हैं।
नवरात्रि का पर्व हमें यह भी याद दिलाता है कि पूजा केवल मंदिर की दीवारों तक सीमित न हो, बल्कि यह हमारे कर्म, व्यवहार और विचारों में झलके। जब हम किसी दुखी को सहारा देते हैं, किसी भूखे को भोजन कराते हैं, किसी निराश को आशा देते हैं, तभी असली पूजा होती है।
स्त्री : शक्ति का मूर्त रूप
नवरात्रि स्त्री शक्ति के सम्मान का भी संदेश देती है। हर नारी में सृजन, धैर्य और करुणा का वही दिव्य स्वरूप है, जिसे हम देवी कहते हैं। जिस समाज में स्त्री का सम्मान होता है, वहाँ शांति और समृद्धि स्वतः आती है। अतः नवरात्रि हमें स्त्री को केवल पूजनीय नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार देने की प्रेरणा देती है।
आत्मजागरण की ओर
यदि हम नवरात्रि को केवल नृत्य, भजन और उपवास तक सीमित कर दें, तो इसका सार अधूरा रह जाएगा। असली नवरात्रि तब है, जब –
· हम अपने भीतर के अंधकार को पहचानकर उसका नाश करें,
· ईर्ष्या, अहंकार और लोभ जैसी प्रवृत्तियों को त्यागें,
· सत्य, प्रेम और करुणा को जीवन का आधार बनाएं।
नवरात्रि आत्मशक्ति के जागरण का पर्व है। जब हम भीतर की शक्ति को पहचानते हैं, तभी जीवन में सच्ची विजय प्राप्त होती है।
नवरात्रि हमें यह सिखाती है कि ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही है। देवी की उपासना केवल दीपक और पुष्पों से नहीं, बल्कि आत्मचिंतन, संयम और सेवा से होती है। यदि हर मनुष्य इस पर्व का यह सच्चा संदेश अपने जीवन में उतार ले, तो संसार अज्ञान, हिंसा और अशांति से मुक्त होकर शांति, प्रेम और आध्यात्मिक प्रकाश से भर जाएगा।
इस नवरात्रि, आइए बाहरी कोलाहल से परे हृदय में छिपी सुप्त शक्तियों को जगाएँ। यही सच्चा आध्यात्मिक जागरण है, यही नवरात्रि का सार है।
उमेश कुमार साहू