
– स्मरणीय है कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ( आईएमएफ़, विश्व बैंक आदि ) ने अनेक बार कहा है कि भारत के ४० करोड़ किसान खेती छोड़कर शहरों की और पलायन कर जाएंगे. अरे भाई यह तो बतलाओ कि ऐसा होगा क्यों ? पर इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जाता. तब संदेह होता है कि किसानों को ग्रामों से उजाड़ने की व्यवस्था, षड्यंत्र तो नहीं किया जा रहा ? प्रधानमंत्रियों द्वारा खेती की निरंतर उपेक्षा, जमीनों के अधिग्रहण के काले क़ानून, खेती को उजाड़ने के अनगिनत गुप्त उपाय : क्या अर्थ है इन सब का ? यही न कि किसान और कृषि को उजाड़ने के बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अभियान में भारत सरकार भी भागीदार है.
भारत के बाजार, भूसंपदा व वन सम्पदा को कब्जाने के कुटिल प्रयासों में विश्व की अनेक तामसिक शक्तियां जी-जान से जुटी हुई हैं. अनेक प्रकार के रसायनों का प्रयोग वे भारत की प्रतिभाओं को कुंठित करने में कर रहे हैं. डिब्बा बंद आहार, पेय पदार्थों, सौंदर्य प्रसाधनों, शेम्पू आदि में इस प्रकार के रसायन डाले गए हैं जिन से हमारी युवा पीढ़ी का प्रजनन तंत्र नष्ट हो जाए, स्नायु तंत्र व रोग निरोधक शक्ति समाप्त हो जाए.
हज़ारों तरह के हानिकारक खरपतवारों के बीज गुप्त रूप से भारत में फैला कर हमारी वनस्पति सम्पदा को समाप्त करने के कुटिल प्रयास चल रहे हैं. पार्थीनियम (कांग्रेस घास), लेण्टेना के प्रयोग से हज़ारों एकड़ वन भूमि व कृषि भूमि को नष्ट कर दिया गया है. अमेरिकन कीकर से हमारी वन सम्पदा को अपूर्णीय हानि पहुंचाई गयी है. जल स्रोतों को नष्ट करने वाली वनस्पतियों का प्रयोग व्यापक स्तर पर किया गया है.
गो सम्पदा के क्षेत्र में भी कुटिल षड़यंत्र चल रहे हैं. हमारा उपयोगी a2 गोवंश अपने देशों में वे लोग विकसित कर रहे हैं और अपना विषैला a1 गोवंश लाखों- करोड़ों रुपये लेकर हमारे सर पर थोंप रहे हैं.
विश्वभर में नकारे जा चुके खतरनाक परमाणु संयंत्रों को हमारे देश में अकूत धन लेकर स्थापित कर रहे हैं. हमारी सरकारें भी उनके इन विनाशकारी अभियानों में मूर्खता व नालायकी के चलते सहयोगी बनी हुई हैं.
ऐसे में क्या यह संदेह नहीं किया जा सकता की किसान को खेती से बेदखल करने, उसे उजाड़ने के प्रयासों के अंतर्गत रसायनों व तरंगों का प्रयोग कर के प्राकृतिक विनाश प्रायोजित किये जाते हैं ?
हमें भूलना नहीं चाहिए की ये वे लोग हैं जिन्हों ने एजेंट ऑरेन्ज का छिड़काव करके क्रूरता पूर्वक वीयतनामियों को मार डाला था. संदेह किया जाता है कि भोपाल में सन १९८४ में आईसो मीथेन साईनाईट नामक विषैली गैस भूल वश नहीं फ़ैली, जानबूझकर फैलाई गई थी, उसका मारक प्रभाव जांचने का लिए.
ऐसे में यह संदेह करने के पर्याप्त कारण हैं कि खेती को नष्ट करने के लिए भी ये प्राकृतिक लगने वाली आपदाएं प्रायोजित की जाती हैं. फलस्वरूप किसान खेती से विमुख होंगे और विदेशी व देसी कारपोरेटों को सरलता से भूमि उपलब्ध हो सकेगी. भारत और अधिक अनाज, दालें, तिलहन आयात करने के लिए बाध्य होगा, उजड़े किसान उद्योगों के लिए सरलता से मजदूरी के लिए सस्ती दरों पर उपलब्ध होंगे.
देशभक्त वैज्ञानिकों से आशा करनी चाहिए कि वे इस प्रकार के विषयों पर अपने स्तर पर जांचने – परखने का प्रयास करेंगे. सरकारें तो सभी विदेशी ताकतों के हाथों में खिलौना बनी नज़र आ रही हैं, अतः उनसे आशा करना व्यर्थ होगा.
स्वदेशी समाधान :
अग्निहोत्र के प्रभाव से भोपाल गैस त्रासदी से अनेक लोग सुरक्षित रहे थे . हानिकारक गैसों से रक्षा में अग्निहोत्र के अद्भुत प्रभाव कई बार प्रमाणित हो चुके हैं. अतः अथाह धन खर्च करके प्रायोजित वृष्टि आपदाओं से रक्षा में अल्प व्यय में सरलता से होने वाला अग्निहोत्र परम लाभकारी साबित हो सकता है.
और यदि ये आपदाएं कृत्रिम रूप से आयोजित नहीं, तो भी प्रकृति को सहयोगी व सकारात्मक बनाने में इस विधा के परम कल्याणकारी प्रभाव संभव हैं. उपज निरोगी व भरपूर मात्रा में होना भी इस तकनीक से सुनिश्चित है.
–डॉ.राजेशकपूर
Vietnam War to 1955-1975 k Bich hua tha aur Bhopal gas tragedy to 1984 me. Clear kijiye