अनिल अनूप
संघर्ष और रार आसन्न चुनावों के मद्देनजर है। पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार तो प्रतीक भर हैं। हंगामा सड़क से संसद तक है। प्रधानमंत्री के पुतले तक जलाए जा रहे हैं। पुतलों पर जूते मारकर रोष, आक्रोश को शांत किया जा रहा है। रेलगाडि़यां रोकी गईं और सार्वजनिक वाहनों को क्षति पहुंचाई गई। आखिर पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में इस तांडव का सबब क्या है? क्या एक कमिश्नर के बचाव में इस हद तक जाया जा सकता है? या पुलिस अधिकारी की कीमत देश की अखंडता से भी ज्यादा है? राजीव कुमार पहले आरोपी हैं और बाद में पुलिस कमिश्नर हैं। दरअसल ममता बनर्जी की यही राजनीतिक रणनीति रही है। ऐसे ही प्रदर्शन कर, धरने देकर या सड़कों पर लेटकर उन्होंने वाममोर्चे के 34 साला साम्राज्य को ध्वस्त किया था। चूंकि अब भाजपा बंगाल में ममता के लिए चुनौती बनती दिख रही है, तो उनका पुराना ‘यूएसपी’ सामने आ गया है। ममता लोकतंत्र को बचाने का दावा कर रही हैं, लेकिन लोकतंत्र की हत्या कौन कर रहा है? संविधान और संघीय व्यवस्था को चरमराने का काम किसने किया है? धरने के राजनीतिक मंच पर पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार मौजूद क्यों हैं? क्या उन्हें सेवा-नियमों और आचार संहिता की जानकारी नहीं है? क्या वह राजनेता बन गए हैं? हालात तो ऐसे हैं कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन चस्पां कर देना चाहिए। लोकतंत्र की तब हत्या की गई है, जब 10 लाख से ज्यादा गरीब, भोली जनता की गाढ़ी कमाई ममता सरकार ने लुटने दी, जब जांच करने आए सीबीआई अफसरों को हिरासत में लिया और सीबीआई दफ्तर की घेराबंदी की गई, जब अपनी बात कहने गए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टर उतरने की अनुमति नहीं दी गई, जब सरसंघचालक मोहन भागवत के प्रवेश पर पाबंदी थोप दी गई, जब हिंदू देवी-देवताओं के धार्मिक संस्कार नहीं किए जाने दिए। बंगाल भारत का एक राज्य है या कोई विदेश है, जो जाने के लिए वहां की सरकार से इजाजत लेनी पड़े? ममता बनर्जी किस लोकतंत्र को बचाने की दुहाई दे रही हैं? बंगाल में ही पंचायत चुनावों के दौरान राजनीतिक हत्याएं हुईं, मतपत्रों को फाड़ा गया और उनमें आग लगा दी गई। क्या ऐसे दृश्य किसी लोकतंत्र के हो सकते हैं? पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन क्यों न लगाया जाए? नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने भी राष्ट्रपति शासन की मांग की है। दरअसल ममता बनर्जी प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ सीधी लड़ाई के मूड में हैं और कई बार दोहरा चुकी हैं कि 2019 में मोदी नहीं आएंगे। ममता के सामने अब अपना ‘दुर्ग’ बचाने की चुनौती है। वह क्यों भूल रही हैं कि उनकी पार्टी के सांसद, नेता और उनकी सरकार के मंत्री तक और तृणमूल कांग्रेस के करीबी चेहरे ही ज्यादातर सारदा और रोज वैली चिटफंड घोटालों में जेल जा चुके हैं। कई अब भी जेल में हैं या जमानत पर हैं। सवाल है कि क्या घोटालों की ‘काली छाया’ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक भी पहुंच रही है? लिहाजा कमिश्नर को बचाने की कोशिश की गई है। क्या ममता राज में भ्रष्टाचार की जांच करना भी पाप और अपराध है? कोलकाता के इस प्रकरण ने प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा बनाम ममता बंधन के चुनावी समीकरण और भी स्पष्ट कर दिए हैं। अधिकतर विपक्षी नेता सीबीआई, ईडी या आयकर की जांच के मारे हैं। देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने भी सबसे पहले यही सवाल किया है-पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को पूछताछ में क्या दिक्कत है? बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने आदेश दिया है कि कमिश्नर सीबीआई के सामने पेश हों और उसके सवालों के जवाब दें। एक तटस्थ जगह के तौर पर मेघालय की राजधानी शिलांग में सीबीआई कमिश्नर से सवाल-जवाब कर सकेगी। शीर्ष अदालत की अवमानना के संदर्भ में मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस भेजे गए हैं। 19 फरवरी की तारीख को डीजीपी और विधाननगर के पुलिस कमिश्नर को भी सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश होना पड़ सकता है। बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को मोदी सरकार और भाजपा ‘लोकतंत्र की जीत’ मान रही हैं, जबकि ममता इसे ‘नैतिक जीत’ करार दे रही हैं, लेकिन बंगाल के हालात सामान्य नहीं हैं। कमोबेश ऐसे भी नहीं हैं कि निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव कराए जा सकें।