युद्ध के बाद जश्न और मातम के निहितार्थ

डॉ घनश्याम बादल

हालांकि भारत और पाकिस्तान तथा इसराइल और ईरान के बीच युद्ध की विभीषिका शांत हो गई है और इन दो बड़े युद्धों से दुनिया कम से कम अभी तो बच गई है  मगर कोई निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकता कि इन देशों के बीच या कहीं भी कब किस मुद्दे पर फिर से युद्ध शुरू हो जाए।

     आज हालत यह है कि दुनिया के 193 देशों में से 92  देश इस समय युद्ध की काली छाया में जी रहे हैं । किसी पर युद्ध थोप दिए गए हैं, कोई खुद युद्ध में उलझ रहा है. किसी का युद्ध अपनी सीमा से सटे हुए देश के साथ चल रहा है तो किसी का युद्ध आंतरिक व्यवस्थाओं के चलते ज़ारी है । कोई आतंकवादी संगठनों के ख़िलाफ़ लड़ रहा है तो कोई सत्ताधारी दल या सरकार को उखाड़ फेंकने में लगे विपक्षियों से लड़ रहा है । कुल मिलाकर इस समय युद्ध की काली छाया में जी रहा है विश्व।

आश्चर्य की बात यह है कि दुनिया का हर छोटा – बड़ा देश और नेता शांति की बात करता है और जानता है कि हर समस्या का हल केवल शांतिपूर्वक बातचीत की टेबल पर बैठकर ही मिलता है लेकिन फिर भी युद्ध चल रहे हैं ।

   जब युद्ध रूस एवं यूक्रेन जैसे देशों के बीच होता है तो मीडिया के माध्यम से दुनिया को पता चल जाता है फिर मीडिया पर विश्लेषण शुरू हो जाता है कोई इस पक्ष में तो कोई उस पक्ष में झुका हुआ दिखाई देता है । कोई एक पक्ष को विजयी बताने लगता है तो कोई दूसरे पक्ष की जिजीविषा एवं दम-खम के गुणगान करने लगता है लेकिन यह कहने वाले लोग बहुत कम हैं कि यह युद्ध निरर्थक मुद्दों पर बिना किसी खास कर्म के होते आए हैं और होते रहेंगे।

    ख़ैर युद्ध और मानव सभ्यता का एक दूसरे से चोली दामन का साथ रहा है जैसे-जैसे मानव ने प्रगति की उसकी इच्छाएं बढ़ती गई और इन इच्छाओं व द्वेष भाव के चलते संघर्ष शुरू हुए । यें संघर्ष छोटे-छोटे व्यक्तिगत संघर्षों से कब वर्ग, संप्रदाय, क्षेत्रों से होते हुए देशों के बीच होने लगे, यह पता ही नहीं चल पाया और देखते ही देखते दुनिया के हर कोने को युद्ध ने अपने पंजों में जकड़ लिया।

    यदि पूरी दुनिया पर नजर डाली जाए तो इस समय अधिकांश युद्ध दहशतगर्द संगठनों के कंधों पर बंदूक रखकर लड़े जा रहे हैं। ‌पाकिस्तान, सीरिया, ईरान और लेबनान जैसे देश अनेक दहशतगर्द संगठनों की फंडिंग करते हैं, उन्हें हथियार और समर्थन तथा लड़ाके उपलब्ध कराते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु उनका चालाकी भरा उपयोग करके अपने प्रतिद्वंदी देश को तबाह करने का सपना देखते हैं । किसी हद तक ऐसे देश अपने इस कृत्य में सफल भी रहते हैं क्योंकि यदि किसी देश के साथ प्रत्यक्ष युद्ध किया जाता है तो उसमें भारी मात्रा में संसाधन एवं हथियार तो लगते ही हैं, साथ ही साथ हारने का भय और दुनिया से अलग थलग हो जाने का डर भी रहता है जबकि ऐसे संगठन जिनमें युवा एवं किशोरों को उनका ब्रेनवाश करके कभी धर्म, तो कभी क्षेत्र तथा कभी जाति अथवा मज़हब के नाम पर आसानी से ‘यूज़’ कर लिया जाता है ।

और यदि यें पकड़े या मारे जाते हैं तो उनसे किसी भी संबंध से इन्कार करने में इन देशों की सरकारों को कोई हिचक नहीं होती।  यदि भारत पाकिस्तान के संबंध में ही देखें तो सारी दुनिया को पता है कि अजमल कसाब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के द्वारा भेजा गया  दहशतगर्द था जिसने मुंबई हत्याकांड को अंजाम दिया लेकिन उसके गिरफ़्तार हो जाने पर पाकिस्तान ने तुरंत पल्ला झाड़ लिया ।  कुछ ऐसा ही ईरान एवं लेबनान तथा सीरिया भी कर रहे हैं।  हिज्बुल्लाह, हमास या हूती जैसे संगठन आज इन देशों के लिए काम करते नज़र आ रहे हैं जिनके चलते अमेरिका के समर्थन के साथ इजरायल मध्य पूर्व के इस्लामी देशों से लगातार लड़ रहा है. अब यह लड़ाई कब तक और कहां तक चलेगी, नहीं कहा जा सकता। ‌

  दुनिया के एक कोने से युद्ध या संघर्ष ख़त्म होता है तो दूसरे कोने में शुरू हो जाता है । कहीं शासको की ज़िद एवं हठधर्मिता है तो कहीं उन्हें उखाड़ फेंकने , प्रतिशोध लेने एवं द्वेष की भावना दो देशों को भी लड़वाती है ।

ख़ैर युद्धों से दुनिया को एकदम बचा लेना आज बड़ा मुश्किल  है मगर पिछले कुछ वर्षों में युद्धों ने कुछ बड़ी विचित्र सी स्थितियां भी पैदा की हैं।

    यदि हाल के भारत-पाकिस्तान एवं ईरान इजरायल संघर्ष पर निगाह डाली जाए तो दोनों ही युद्धों के दोनों पक्ष अपने आप को विजयी बताकर जश्न मना रहे हैं । पहलगाम के दहशतगर्द हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक की और पाकिस्तान ने भी पलट कर वार किया । जहां भारत ने केवल तीन दिन के संघर्ष में पाकिस्तान के अधिकांश एयरबेस तबाह कर दिए, उसके फाइटर जेट गिराए, वहीं पाकिस्तान ने भी भारत के छह युद्धक विमान मार डालने का दावा किया और फिर तथाकथित रूप से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हस्तक्षेप से अचानक युद्ध विराम के बाद पाकिस्तान ने तो विजय की खुशी में अपने सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बना दिया.  भारत ने भी अपने लक्ष्य प्राप्त करने का ऐलान करते हुए ऑपरेशन सिंदूर को अब तक का सबसे सफल मिशन बताया है। 

इसी तरह 12 दिन के युद्ध के बाद इजरायल एवं ईरान दोनों ही पक्षों का भारी नुकसान हुआ । इज़रायल ने आक्रामक अंदाज में ईरान के वायुक्षेत्र पर कब्जे का दावा किया और वहां भारी मात्रा में बमबारी करके बहुत नुकसान पहुंचाया तो पलट कर ईरान ने भी अपनी अल्ट्रासोनिक मिसाइलों से इजराइल में तबाही मचाई. जब बात हाथ से जाती दिखी तो अमेरिका ने खुद युद्ध में कूदते हुए ईरान के परमाणु ठिकानों पर बी 2, विमान से हमला करके उसके परमाणु संस्थानों को नष्ट करने का दावा किया।  अंततः युद्ध विराम हो गया. अब इसराइल अपनी विजय का जश्न मना रहा है, ईरान अपनी जीत की खुशी में मग्न है और अमेरिका का कहना है कि उसने ईरान को परमाणु हथियार बनाने के संसाधनों से वंचित करके विजय प्राप्त की है यानी इस युद्ध के तीनों पक्ष जश्न में डूबे हैं।

      युद्ध के बाद जश्न कोई नई बात नहीं है लेकिन मातम बहुत दिनों तक चलता है. यह मातम शासको में नहीं बल्कि होता है वहां के आम नागरिकों में जिनके घर, काम धंधा एवं परिवार के सदस्य इस युद्ध की भेंट चढ़ जाते हैं , जिनकी हरी-भरी ज़िंदगी अचानक गुरबत एवं मुसीबत से भर जाती है। सरकार थोड़ा बहुत मुआवजा देकर  क्षति पूर्ति करती है मगर असली मातम तो आम नागरिकों को ही झेलना पड़ता है। ‌

   निश्चित ही युद्ध का कारण कभी एक तरफा नहीं होता. कोई कम तो कोई ज़्यादा ग़लत होता है। उदाहरण स्वरुप यदि यूक्रेन नाटो देशों से जुड़ता है तो रूस उसे सबक सिखाने के लिए युद्ध छोड़ देता है और रूस के भय से यूक्रेन पश्चिमी देशों की शरण में जाता है । भारत और पाकिस्तान अपने जन्म के साथ ही आपस में उलझना शुरू हो गए थे. पाकिस्तान यदि दहशतगर्दो के माध्यम से भारत को लगातार परेशान करता है तो भारत के ऊपर भी बलूचिस्तान एवं पख्तून स्थान में निरंतर उकसावे का आरोप लगता है । इस्राइल तो अपने जन्म से ही इस्लामी देशों से अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है । उधर इस्लामिक देशों का मानना है कि अमेरिका की शह पर इजरायल उन्हें लगातार परेशान करता है ।

अस्तु, युद्ध की ज्वाला को ईंधन हर तरफ से मिलता है। बेशक आज का युग युद्ध का युग नहीं है और आज के युद्ध प्रत्यक्ष परंपरागत हथियारों से नहीं लड़े जाते बल्कि इनमें बहुत ही विनाशकारी अस्त्रों शस्त्रों का प्रयोग किया जाता है. रासायनिक युद्ध, पानी रोक देने जैसे युद्ध और किसी देश की संस्कृति को नष्ट कर देने की युद्ध भी अब आम हो गए हैं ।

  देखें आदमी कब इन युद्धों की विभीषिका से छुटकारा पाता है और पाता भी है या फिर खुद उसमें जलकर राख हो जाता है।

डॉ घनश्याम बादल

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