भारत के द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध किए गए ‘ ऑपरेशन सिंदूर’ का सबसे अधिक लाभ यदि किसी को मिला है तो वह पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर को मिला है। जिन्हें पाकिस्तान की सरकार ने भारत से पिटने के उपरांत भी ‘ फील्ड मार्शल ‘ के पद पर नियुक्त कर दिया है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ बने रहने के उपरांत भी अब उन्हें कुछ अधिक शक्तियां प्राप्त हो जाएंगी। जिनके चलते वह भारत के खिलाफ कुछ और अधिक उग्र होकर बातें करने का लाइसेंस प्राप्त कर लेंगे। पाकिस्तान के इस नए फील्ड मार्शल के बारे में हमें ज्ञात होना चाहिए कि जब उन्होंने पहलगाम हमले के बाद भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई तो अपने मिशन पर निकलने से पहले उन्होंने नमाज अदा की और कुरान की उन आयतों को दोहराया जो काफिरों के विरुद्ध इस्लाम के प्रत्येक सच्चे सेवक को ‘गाजी’ बनने की प्रेरणा देती हैं या ‘ जिहाद’ करने को उकसाती हैं। पाकिस्तान के लोगों को भारत के ‘ ऑपरेशन सिंदूर’ के सच से पाकिस्तान की सरकार और सेना दोनों ने मिलकर गुमराह करने का कार्य किया है। यह झूठ फैलाने का प्रयास किया है कि इस चार दिन के युद्ध में पाकिस्तान जीता है और उसने हिंदुस्तान जैसे बड़े देश की सेना को करारी पराजय दी है। इसीलिए मुनीर ने अपने आप को ‘ फील्ड मार्शल’ बनाने के लिए पाकिस्तान की सरकार को अपने दबाव में लिया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ यह भली प्रकार जानते हैं कि यदि युद्ध में पाकिस्तान जीत गया होता तो उनकी सरकार अब तक चली गई होती। इसलिए उन्होंने भी मुनीर को फील्ड मार्शल बनाकर अपनी आफत को कम करने का काम किया है। उन्हें इस बात की खुशी है कि पाकिस्तान के हारने पर उनकी अपनी कुर्सी नहीं जा रही है।
फील्ड मार्शल के बारे में हमें जानकारी होनी चाहिए कि यह युद्ध जैसी असाधारण परिस्थितियों में दिखाए गए विशेष शौर्य के पश्चात ही मिलता है। जब भारत ने ‘ ऑपरेशन सिंदूर ‘ के माध्यम से पाकिस्तान के एयरबेस ध्वस्त किये तो उस समय बार-बार यह समाचार आ रहे थे कि वहां के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर किसी बंकर में छुप गए हैं। भारत से युद्ध करने के लिए असीम मुनीर निकले तो काफिरों का अंत करने के लिए कुरान पाक की आयतों को दोहरा रहे थे और जब भारत के शूरवीरों से पाला पड़ा तो बंकरों में मुंह छुपा रहे थे। इसी ‘बहादुरी’ के लिए उन्हें अब फील्ड मार्शल बनाया गया है ? मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों से युद्ध लड़ने के लिए जा रहे थे तो बड़े जोश से गा रहे थे कि :-
गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की।
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।।
दोपहर होते-होते मुगल बादशाह को अपनी शक्ति और सामर्थ्य की जानकारी हो गई थी। सामने खड़ी मृत्यु को देखकर उनका सारा जोश दूर हो गया। तब उन्होंने अपनी थकी हुई मानसिकता का परिचय देते हुए कहा :-
दमदम में दम नहीं, अब खैर मांगू जान की।
बस जफर अब हो चुकी शमशीर हिंदुस्तान की।।
भारत के साथ दो – दो हाथ करने से पहले और फिर भारत के पराक्रम को देखकर असीम मुनीर की यही स्थिति बन चुकी थी। फिर भी उन्हें फील्ड मार्शल बनाया गया है तो इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि भारत के विरुद्ध एक ‘ जिहादी सेनाध्यक्ष’ की आवश्यकता पाकिस्तान को है। वर्तमान परिस्थितियों में उसे असीम मुनीर से बड़ा जिहादी कोई नहीं मिल सकता। जो स्वयं यह कहते हैं कि हम अपनी सेना को इस्लाम की शिक्षा देते हैं । इस्लाम का फंडामेंटलिज्म पाकिस्तान के प्रत्येक सैनिक को समझाया और बताया जाता है। इसका अभिप्राय है कि पाकिस्तान की सेना और आतंकवाद का चोली दामन का साथ है।
फील्ड मार्शल जैसा रैंक भारत, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में ही है। यद्यपि इसका उपयोग सभी देश अपनी अपनी परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग करते हैं। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो इस देश के बारे में हमें पता होना चाहिए कि इसने अपना अतीत भारत के साथ न दिखाकर पिछले 1000 वर्ष के इतिहास को मिटाकर उसे इस्लाम के रंग में रंगने का काम किया है। जिससे वहां के नागरिकों को ऐसा आभास हो कि हमारे देश के वास्तविक निर्माता तो गजनी और गौरी थे। यही कारण है कि अपनी मिसाइलों या घातक हथियारों का नाम भी पाकिस्तान ‘ गजनी’ और ‘ गौरी’ रखता है। कहने का अभिप्राय है कि जो पाकिस्तान अपना मिथ्या इतिहास रच सकता है, वह एक झूठा फील्ड मार्शल भी बना सकता है।
भारत के बारे में हम सभी जानते हैं कि हमने भी फील्ड मार्शल मानेकशॉ को इस सम्मानित पद पर आसीन किया था। जिन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े करने का साहसिक कार्य किया था। जबकि जनरल अयूब खान के बाद पाकिस्तान के दूसरे फील्ड मार्शल असीम मुनीर अपने ही देश के दो टुकड़े कर सकते हैं। हमने सैम मानेकशॉ को 1973 में और 1986 में के0एम0 करियप्पा को फील्ड मार्शल बनाया था। इस पद के बारे में हमें यह भी जान लेना चाहिए कि यह केवल मुख्य रूप से औपचारिक पद है। इसका कोई प्रत्यक्ष प्रशासनिक कार्य नहीं है। फील्ड मार्शल के रहते भी एक चार सितारा जनरल ही सेना प्रमुख के पद पर नियुक्त किया जाता है। फील्ड मार्शल कभी सेवानिवृत्त नहीं होता। वह अपनी मृत्यु तक एक सक्रिय सैन्य अधिकारी के रूप में कार्य करता रहता है। इस प्रकार पाकिस्तान ने असीम मुनीर को इस पद पर नियुक्त कर यह संदेश दिया है कि असीम मुनीर चाहे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का सामना नहीं कर पाए हों, परन्तु वह एक ‘ जिहादी फील्ड मार्शल’ के रूप में अपने जीवन की अंतिम सांस तक भारत के विरुद्ध कार्य करते रहेंगे। इस दृष्टिकोण से मुनीर को भी अपनी इस नियुक्ति पर गर्व करने और अपने ‘मिशन’ को आगे बढ़ाने का पूरा-पूरा अवसर मिला है। ऐसी स्थिति में भारत को इस ‘ जिहादी फील्ड मार्शल’ के इरादों को भांपकर सावधान रहने की आवश्यकता रहेगी। इसका कुछ न बोलना इसकी कमजोरी नहीं है बल्कि भारत के विरुद्ध तैयारी करने की इस्लामिक आक्रमणकारियों की पुरानी परंपरा इसके जालिम चेहरे के पीछे झांकती हुई दिखाई दे रही है। भारत को किसी सीजफायर के फेर में नहीं पड़ना है अपितु ध्यान रखना है कि पड़ोसी देश ने अपने पराजित सेनाध्यक्ष को फील्ड मार्शल बनाकर भारत के विरुद्ध लंबी लड़ाई का संदेश दिया है। अतः भारत को भी लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य