ऐसे अपूर्ण ज्ञान से नही है देश समाज का हित

—विनय कुमार विनायक
जाति तो हमेशा से बुरी होती
मगर अच्छे और बुरे होने की
संभावना हर व्यक्ति में होती!

व्यक्ति भी अक्सर जातिवादी होते
अपनी जाति के व्यक्ति को देखकर
व्यक्ति हो जाते हैं हर्षित आकर्षित!

दूसरी जाति के लोग हो जाते
परित्यक्त अनाकर्षक उपेक्षित विकर्षित!

इस मानसिकता की कोई दवा नहीं
वेद शास्त्रों में भी टुकड़े टुकड़े में
ज्ञान को बांटने की वकालत की गई!

ब्राह्मण के लिए था समग्र ज्ञान विधान
श्रेय प्रेय सम्मान के अधिकारी ब्राह्मण!

क्षत्रिय के लिए ज्ञान सिर्फ सैन्य सम्बंधित
वैश्य का ज्ञान गोपालन व्यापार और कृषि
येन केन प्रकारेण वे करते थे धन में वृद्धि
पद प्रतिष्ठा ईमान की कोई अपेक्षा नहीं थी!

दलित-अंत्यजो के लिए कोई ज्ञान नहीं
सिर्फ सदाचरण की सीख दी जाती थी
सद्व्यवहार की उम्मीद की जाती थी!

आज भी समग्र ज्ञान की शिक्षा नहीं दी जाती
ब्राह्मणों ने स्वयं त्याग दिया संपूर्ण ज्ञान को
कोई पढ़ते वेद पुराण, कोई गणित विज्ञान को,
कोई धन संचय कला, संस्कृति का नहीं भला!

आज विभिन्न विदेशी सम्प्रदाय के उदय से
भारतीय शिक्षा गुजर रही है व्यापक क्षय से!

मजहबी शिक्षा से अर्थ उपार्जन होता नहीं
मजहबी शिक्षा से आदमी हो जाता मजहबी
मजहबी शिक्षा में उपेक्षित हो जाती देशभक्ति
कोरी मजहबी शिक्षा से भलाई नहीं किसी की!

वर्ण-जातियों का आज भी एकीकरण हुआ नहीं
जातियों में धर्म शिक्षा संस्कार का संवरण नहीं
आज साहित्य संस्कृति इतिहास शिक्षा वैकल्पिक
ऐसे अपूर्ण ज्ञान से नहीं है देश समाज का हित!
—-विनय कुमार विनायक

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