द केरला स्टोरी – सच्चाई से रूबरू कराती हैं , अपनी परवरिश को अंक दीजिए, क्या आप अच्छे माता पिता है

एक समय था जब भारतीय सिनेमा जगत राजकुमार और परी की कहानियां के बल पर सफल होता था,  समय का पहिया बदला, और बदल गई कहानियां। कल्पनाओं की दुनिया को पीछे छोड़ती, सच्चाई से रूबरू कराती द केरला स्टोरी, इक्कीसवीं सदी के कड़वे अनुभव को सामने लाने वाली वास्तविकता हैं। इसे कहानी कहना, या समझना इस मूवी का अपमान करना हैं। विषय गंभीर, है और हालात को समझ कर अपनी और बेटियों की आंखें खोलने वाला विषय हैं। 

बेटियों की सही परवरिश केवल उनके अच्छे पालन पोषण तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, अपने धर्म, अपनी संस्कृति का पूरा ज्ञान देना, जानकारी देना भी , अच्छी परवरिश का अहम हिस्सा हैं। किताबी शिक्षा उन्हें महंगे से महंगे स्कूल और कॉलेज से आप पैसा देकर दे सकते हैं, परंतु पारिवारिक संस्कार, धर्म और संस्कृति से परिचित कराने के लिए आपको स्वयं समय देकर उन्हें बताना होगा। 

अपने धर्म और दूसरों के धर्म में अंतर, कमियां और सभी महत्वपूर्ण बातों से बेटियों और बेटों दोनों को रूबरू अवश्य कराएं। कौन ऐसा न हो आप के द्वारा बेटियों को दी गई परवरिश अधूरी होने के कारण, आपकी बेटी का भविष्य गलत हाथों में पड़ कर बर्बाद हो जाए, इससे आप केवल अपनी बेटी का भविष्य सुरक्षित नहीं करेंगे, बल्कि भारत के भविष्य को जननी का भविष्य सुरक्षित करेंगे।

द केरला स्टोरी मूवी स्वयं भी देखिए और अपनी बेटियों, उसको सहेलियों को भी दिखाइए। मूवी देखने के बाद अपनी परवरिश को स्वयं अंक दीजिए। आपको नजरों में आप खुद की परवरिश को कितने अंक देते हैं। आइए अब आते हैं अपने मूल विषय पर,

द केरला स्टोरी, पूरी सच्ची घटना पर आधारित हैं, और महिलाओं के जीवनीय संघर्ष की अकल्पनीय कहानी हैं। जो 

 जो आतंकवाद की बदसूरत सच्चाई को उजागर करती है और आतंकवादियों के एजेंडे को दर्शाती है। आतंकवाद की वास्तविकता समझने के लिए सभी भारतीयों को इस फिल्म को ज़रूर देखना चाहिए ।

अपनी आँखें और दिमाग़ खोलने के लिए एक बार ज़रूर देखिए “द करेला स्टोरी” फ़िल्म देख के समझ आया गए, की क्यों फ़र्ज़ी सेक्युलर और वामपंथी इसपे रोक लगाने के लिये परेशान हो गए हैं। बिलकुल हैरान कर देगी आपको की कैसे लव जिहाद ने अनगिनत युवा लड़कियों के जीवन को बर्बाद कर दिया। 

भारत के सबसे खूबसूरत राज्य में से एक केरल में यह खुले आम कैसे हो रहा है, यह चौंकाने वाली बात है।

बेटे बेटियों को बचपन से ही अपनी सभ्यता , संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्यों की जानकारी दें !

माना कि देर हो गई ! पर बहुत देर नहीं हुई। बच्चों को जड़ों से जोड़िए ! इन्हीं जड़ों पर उनका भविष्य टिका है।

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