
मनोज कुमार
भारतीय समाज की धुरी मातृशक्ति है. उसकी ताकत इतनी है कि वह चाहे तो सृष्टि का विनाश कर दे लेकिन हमेशा वात्सल्य से भरी स्त्री हमेशा से सर्जक की भूमिका में रही है. हालांकि यह सच है कि सदियों से मातृशक्ति के साथ छलावा और धोखा होता रहा है. वर्तमान समय में स्त्री की अस्मिता पर आंच आ रही है. अखबार के पन्नों पर रोज-ब-रोज छपने वाली दुखांत खबरें मन को हिला जाती हैं. प्रतिरोध का स्तर इतना है कि हम सरकार को, तंत्र को कोसते हैं. उसकी आलोचना करते हैं और हर अपराध के साथ सरकार को गैर-जवाबदार मान लेते हैं. यही नहीं, महिलाओं के समग्र उत्थान के लिए बनी योजनाओं का भी हम उपहास उड़ाने से पीछे नहीं रहते हैं. हमारा मन सरकार की आलोचना में इतना रम गया है कि जो कुछ अच्छा हो रहा है, उसे भी देखना नहीं चाहते हैं. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अपने पहले कार्यकाल से लेकर चौथी पारी में भी लगातार महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहे हैं. सच तो यह है कि सरकारी योजनाएं महिला स्वावलंबन के लिए संबल होती हैं. इन योजनाओं को सकरात्मक दृष्टि से देखें और समझें तो लगभग दो दशक में महिला सशक्त और आत्मनिर्भर हुई हैं. मध्यप्रदेश में बेटी बचाओ से लेकर पांव पखारो अभियान से महिलाओं को नई पहचान मिलने के साथ ही समाज का मन बदलने की सकरात्मक कोशिश सरकार कर रही है. अब समय आ गया है कि सरकार की योजनाओंं का लाभ दिलाकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाएं और महिला विरोधियों के खिलाफ सामूहिक प्रतिरोध का व्यवहार करें.
यह एक दुर्भाग्यपूर्ण समय है जब महिलाओं के साथ अत्याचार और अनाचार की खबरें लगातार बढ़ रही हैं. विकास के साथ साथ हमारा मन संकुचित हो रहा है. महिलाओं के साथ हो रहे अनाचार का प्रतिरोध करने के स्थान पर हम अपने आसपास सुरक्षा घेरा खींचकर स्वयं को सुरक्षित करने की कोशिश में जुट गए हैं. अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर अपनी सोच में बदलाव लाएं और प्रतिरोध का स्वरूप सामूहिक हो. हम सरकार और तंत्र के साथ खड़े होकर महिलाओं की प्रतिष्ठा और सुरक्षा प्रदान करने में मदद करें. होता यह है कि किसी प्रकार की अनचाही दुर्घटना घट जाने के बाद या पूर्व में किसी अंदेशे की जानकारी मिलने पर प्रशासन कार्यवाही करता है. अब हालात यह बनना चाहिए कि ना तो किसी किस्म की दुर्घटना की आशंका हो और ना ही कोई दुर्घटना घटे. आमतौर पर हम सबकुछ सरकार से चाहते हैं. हम मानकर चलते हैं कि सरकार किसी जादुई चिराग जैसा है जो पलक झपकते ही हमारी समस्या का निदान कर देगी और जो हमें चाहिए, वह सब सौंप देगी. यह बहुत कुछ अस्वाभाविक सा नहीं है लेकिन सौ प्रतिशत उचित भी नहीं. एक लोकतांत्रिक सरकार की जवाबदारी है कि वह समाज को आत्मनिर्भर करे लेकिन यह जवाबदारी यह भी है कि समाज सरकार का सहयोग करे. सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं समाज के लिए संबल होती हैं. उन्हें सहायता करती हैं लेकिन आत्मनिर्भर बनने के लिए समाज को स्वयं खड़ा होना पड़ता है.
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हमेशा से मातृशक्ति को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सक्रिय रहे हैं. बेटी बचाओ अभियान शुरू किया तो भू्रण हत्या जैसे कलंक पर रोक लगी. साथ ही मध्यप्रदेश देश का इकलौता राज्य होगा, जहां बाल विवाह का प्रतिशत साल-दर-साल गिर रहा है. बच्चियों को शिक्षा देने के लिए अनेक स्तर पर प्रयास किए गए जिसका परिणाम यह रहा कि आज सभी क्षेत्रों में उनकी धमक सुनाई देती है. महिलाओं और बच्चियों के प्रति सम्मान के लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने किसी भी शासकीय कार्यक्रम के आरंभ में बेटियों के पांव पखारने का अभियान शुरू किया है. भारतीय संस्कृति में बेटियों को यह सम्मान परम्परागत रूप से दिया जाता रहा है जिसे आगे बढ़ाने का काम मध्यप्रदेश सरकार ने किया है.
शहरों के साथ साथ ग्रामीण परिवेश की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मध्यप्रदेश सतत रूप से कार्य कर रहा है. स्व-सहायता समूह की महिलाएं पूरे प्रदेश में अपनी हुनर से अलग नाम कमा रही हैं. हर विपदा से घर और समाज को बचाने में महिलाएं सक्षम हैं, यह बात कोरोना संकट के समय भी महिलाओं ने स्थापित किया है। महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा बनाये गये मास्क और पीपीई किट ने न केवल बीमारी पर नियंत्रण पाने में मदद की. प्रदेश में अब महिला स्व-सहायता समूहों को आंगनवाड़ी केन्द्रों में वितरित होने वाले रेडी-टू-ईट पोषण आहार और शाला स्तर पर गणवेश निर्माण का कार्य दिया जा रहा है। स्व-सहायता समूहों की 33 लाख महिलाओं को स्व-रोजगार की दिशा में बढ़ावा देने के लिये की गई नवीन व्यवस्था से प्रदेश की महिलाएं सशक्त होंगी। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने महिला स्व-सहायता समूहों को बैंकों के माध्यम से दी जाने वाली सहायता सीमा 300 करोड़ से बढ़ाकर 1400 करोड़ रूपये कर दी गई है। साथ ही यह भी निर्णय लिया गया है कि बैंक ब्याज दर चार प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी। महिलाओं की सुरक्षा के लिए अलग अलग स्तर पर चाक-चौबंद प्रयास हो रहे हैं लेकिन सरकार के साथ समाज का सहयोग भी अपेक्षित होता है.
भारतीय संस्कृति में हर दिन महिला दिवस होता है और एक दिन मनाये जाने वाले महिला दिवस इस बात का संदेश समाज को जाता है कि बीते समय में जो कार्य मातृशक्ति ने किया, उसे जानें और समझें. अब समय है कि हम-सब मिलकर यह संकल्प लें कि महिलाओं की सुरक्षा हमारी प्राथमिक जवाबदारी है. उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके भीतर साहस का संचार करें. आत्मरक्षा का कौशल विकसित करें और उन्हें शिक्षित करने के साथ जागरूक करें. महिला दिवस की सार्थकता यह है कि अगले आयोजन में जब सब मिलें तो सरकारी योजनाओं से मिले संबल से आर्थिक आत्मनिर्भरता और समाज से मिले संबल से सुरक्षित महिला पर चर्चा करें.