स्वभाव में शामिल होता भ्रष्टाचार

प्रदीप चन्द्र पाण्डेय

यथा राजा तथा प्रजा के देश में आजकल भ्रष्टाचार के एक-एक कर कई मामले सामने आ रहें हैं। लोकतंत्र के ‘महाजन’ अपने-अपने ढंग से घोटालों की व्याख्या कर रहे हैं। विपक्ष जेपीसी की मांग पर अडा है तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पीएसी के समक्ष प्रस्तुत होने को तैयार। ऐसे विकट समय में प्रसिद्ध उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा की एक उक्ति दृष्टव्य है” सत्ता तो भ्रष्ट होती ही है, शासक का कोई चरित्र नहीं होता”, सत्ता जब रावण जैसे विद्वान ब्राम्हण के हाथ में पहुंची तो उसने भी सर्व सत्ता को चुनौती दे डाली। इस युग को भी एक राम की आवश्यकता है जो लोकतंत्र के कथित ‘महाजनों’ के भ्रष्टाचार से पर्दा उठा सके। कहते हैं अवसर ईमान का शत्रु है और नित नये अवसरों ने भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों का ईमान कमजोर कर दिया है। इस देश ने बोफोर्स जैसा घोटाला देखा, चुनाव हुये और विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बन गये। आज विश्वनाथ प्रताप सिंह इस संसार में नही हैं किन्तु बोफोर्स घोटाले पर झूठा सच की चादर डाल दिया गया है। संप्रग सरकार में जब तहलका टेप सामने आया तो तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज पर उंगलियां उठी। उन्होने पद छोड़ा और फिर पद पर वापस आ गये।

गठबंधन सरकार की मजबूरियों को संप्रग प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने भी निकटता से भोगा और आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ही समूची कांग्रेस ए. राजा के दंश को झेल रही है। जब भ्रष्टाचार स्वभाव में शामिल हो जाय तो उससे निपटना आसान नहीं होता। यह समय ऐसा है कि छोटे से घोटाले की बात करो तो बडे घोटाले का द्वार दिखायी पड़ने लगता है। बिहार में पशु चारा घोटाला सुर्खियां बना और फिलहाल लालू प्रसाद राजनीतिज्ञ अज्ञातवास भोगने की ओर हैं। उत्तर प्रदेश में गरीब लोगों के निवाले छीनकर खाद्यान्न घोटाला हुआ, समाजवादी पार्टी की सरकार के समय हुये खाद्यान्न घोटाले पर न जाने क्यों वर्तमान बहुजन समाज पार्टी की सरकार भी मौन है। ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’ के इस शर्मनाक समय में उम्मीद की किरण कहां से लायें। किसे गालियां दें और किसे गले लगा लें। जब आदर्श घोटला कर देश के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, बड़े नौकरशाहों को कारगिल विधवाओ के हक पर डाका डालने में संकोच नही है तो ऐसे समय को क्या नाम दें।

यदि कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जद में है तो संप्रग सरकार भी इससे मुक्त कहां रही। लोकतंत्र में लोक- लाज को वर्तमान राजनीतिज्ञों ने जैसे नमस्कार सा कर लिया हो। जब तक नेता, नौकरशाह और उद्योगपतियों की तिकड़ी पर अंकुश नहीं लगाया जायेगा, भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहेंगे, चंद दिनों का शोर होगा और फिर सब कुछ टांय-टांय फिस्स। बेहतर हो कि भ्रष्टाचार के सवाल पर जनता भी मोर्चा संभाले।

(लेखक दैनिक भारतीय बस्ती के प्रभारी सम्पादक हैं)

2 COMMENTS

  1. प्रिय महोदय
    नमस्कार
    में एक बार फ़ोन पर आप से बात करना चाहता हु | मेरे विचार से देश की मुद्रा को बैंक के द्वारा संचालित कर दिया जाये तो मेरा मानना है की देश की सभी गलत तरीके आपने आप मिट जायेगे |
    क्रपया कांटेक्ट न . देने का कष्ट करे |
    मेरा कांटेक्ट न . 07793 270468
    09300858200
    madan gopal brijpuria
    kareli M.P.

  2. ऐसे तो भ्रष्ट और भ्रष्टाचार स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा मनोरंजन है और सब कोई कहता हैकी मेरे सिवा सब बेईमान हैं..बहस और प्रतियोगिता के लिए भी इससे अच्छा विषय मिलना मुश्किल है,पर आपने ठीक लिखा है की “जब तक नेता, नौकरशाह और उद्योगपतियों की तिकड़ी पर अंकुश नहीं लगाया जायेगा, भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहेंगे, चंद दिनों का शोर होगा और फिर सब कुछ टांय-टांय फिस्स।”चलिए मान लिया की इस तिकड़ी पर लगाम लगाने से शायद भ्रष्टाचार पर लगाम लग जाये,पर यह होगा कैसे?आपने जनता द्वारा मोर्चा संभालने को कहा है.पर एक समस्या है.इसके लिए जनता को ढूढना होगा.आइये अब जनता को ढूढ़ते है.एक बार जेपी ने ढूढने का प्रयत्न किया था,पर वे भी सफल न हो सके.शायद मुझे और आपको सफलता मिल जाये,पर ढूढने के लिए निकलने के पहले हमें एक बार दर्पण से पूछना होगा की हम ख़ुद इस लायक है की नहीं?

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