शिक्षा की अनिवार्यता


शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा प्रत्येक नागरिक की मूलभूत आवश्यकता है, जिसे समान नागरिक, समान अधिकार के तहत मुहैया कराने की दिशा में सरकार बेहतर शिक्षा, समुचित स्वास्थ्य एवं पूर्ण सुरक्षा प्रत्येक नागरिक को उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयासरत है । नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिये निर्धारित इन तीन अधिकारों में सर्वप्रमुख, सबसे आवश्यक क्रम शिक्षा का ही है ।

प्रायः शिक्षा का मूल अर्थ जनमानस के द्वारा नर्सरी से लेकर पीएचडी तक के कोर्स का सफलतापूर्वक अध्ययन करना और एक अच्छी खासी सरकारी नौकरी पा लेना ही समझा जाता है, लेकिन हमें स्वीकारना होगा कि शिक्षा का अर्थ केवल सूचनाएँ प्रदान करना नहीं है । आपके मूल और प्राथमिक अस्तित्व तथा उस अस्तित्व से परे की स्थिति में जब समरूपता आ जाये तब ही आप असल में शिक्षित कहलाते हैं । शिक्षा हम सबके लिये स्वतंत्रता के स्वर्ण द्वार खोलने की कुंजी सहित एक अमूल्य और अनश्वर धन है । यदि हम अपनी परम उॅंचाइयों को छूने के आकांक्षी हैं तो हमें अपने शिक्षण काल को जीवन जीने की समुचित तैयारी के वृहत कार्यक्षेत्र का मैदान बनाना ही होगा ।

शिक्षा महज एक कोरा किताबी ज्ञान नहीं है । व्यावहारिक जीवन के प्रत्येक पल में आने वाली बाधाओं को दूर करने में हमें जिन परिस्थितियों का सामना करना होता है, उनमें हर्ष, विषाद, आवेग, चंचलता, निश्चलता इत्यादि भाव उत्पन्न होने के मूल में जो भाव निहित हैं, उनमें छुपी वजह को जानना भी व्यावहारिक शिक्षा का आवश्यक हिस्सा है । जीवन में आवश्यकता पडने पर प्रत्येक व्यक्ति से व्यावहारिक शिक्षा ग्रहण की जा सकती है । समय-असमय हमारी जिम्मेदारी भी हमें आवश्यकतानुसार शिक्षित करती हैं । मानव जीवन में हमने जितनी भी भौतिकता और संसाधन हासिल की है, बल्कि मैं तो यह कहूँगा कि संसार में जितनी में प्राप्तियां और उपलब्धियां हैं, शिक्षा उन सबसे बढकर है वह भी हर एक के लिये ।

शिक्षा का ध्येय ही जीवन-पर्यन्त स्वयं को शिक्षित करते रहना है । कोई भी अपने आप में स्वयं को पूर्णरूपेण शिक्षित सिद्ध नहीं कर सकता । यह तो अनन्त क्रम है । विद्यार्थियों को शिक्षित करना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी उन्हें शिक्षित होने के लिये छोड देना भी, शिक्षा का एक हिस्सा है । मनुष्य जीवन में घटने वाली प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने की योग्यता का नाम भी शिक्षा है । इसकी गुणवत्ता पर इसलिये ध्यान देना जरूरी है क्योंकि विद्यार्थियों को दी जाने वाली शिक्षा ही आगे चलकर राज्य और राष्ट्र के निर्माण में महती भूमिका निभाने में सहायक और आवश्यक है । क्या पढना है और क्या नहीं पढना, इसका अंतर समझ लेना भी समुचित जानकारी का आवश्यक अंग है । यही जानकारी आपके खाली दिमाग को खुले दिमाग में परिवर्तित करती है और आपकी जिम्मेदारी ही आपको शिक्षित करती है ।

व्यंग्यात्मक लहजे में कहा जाये कि यदि आपके पास कॉमनसेंस है और शिक्षा नहीं है तो भी आप एक बिना कॉमनसेंस वाले शिक्षित व्यक्ति से कई गुना बेहतर साबित होते हैं । अतः सीखने का उचित तरीका जानने वाला ही शिक्षित होता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखने के लिये तैयार रहता है । यदि आपने असफलताओं से सीख नहीं ली, वही आपकी वास्तविक असफलता है । कभी-कभी आपका अहंकार ही आपको यह स्वीकारने नहीं देता कि आपको वास्तव में कुछ सीखने की आवश्यकता है, जो कि अत्यंत घातक और अहितकर है आपके लिये । अपने भीतर बसे अहंकार की कडवी जड से बाहर निकलकर जब हम बाहरी दुनिया देखें तब ही हमें पता चलेगा कि उस कडवी जड के फल कितने मीठे हैं ।

ज्ञान का आत्मबोध आपको आपके ही अंतर्मन को टटोलकर यह बताने की चेष्टा करता है कि अब आपको वह सब कुछ पता हो गया है जो आप पहले कभी जानते नहीं थे । अर्थात आप जो जानते थे और जो नहीं जानते थे, उनमें अंतर कर पाना ही आपकी उपलब्धि है । इसके लिये आपको अपने भीतर एक जुनून पैदा करना होगा जो आपका विकास कभी भी रूकने नहीं देगा ।

शिक्षा के क्षेत्र में हमारा देश काफी तेज से अग्रसर है । भारत सरकार द्वारा समय-समय पर उठाये गये आवश्यकतानुसार सराहनीय कदम एवं इस हेतु आवंटित निधि इसके बखूबी निखार के लिये आवश्यक है । ऐसे ही प्रयास रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश में अज्ञानता एक नई बात होगी ।

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