युवाओं में मादक पदार्थों का सेवन करने की इच्छाओं को कम करना आज की आवश्यकता है |

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             संस्कृति की अलौकिक आभा से सुशोभित भारतवर्ष, जिसके यजुर्वेद में “तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु” और ऋषियों की सीख में “पहला सुख निरोगी काया” का गुणगान मिलता हो, ऐसे राष्ट्र में युवा चेतना का अप्रतिम होना निश्चित है | एक ओर प्रेरणा स्त्रोत के रूप में स्वामी विवेकानंद और दूसरी ओर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का आशीष, दोनों ही आज भी भारत के युवाओं को राष्ट्र निर्माण के पथ पर अग्रसर कर रहे हैं | ऐसे महान विभूतियों के सानिध्य में पोषित होते युवा जहाँ एक ओर विश्व गुरु बनने की रह पर कदम बाधा रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर शारीरिक और मानसिक चुनौतियों से भी जूझ रहे हैं | इनमें सर्वाधिक दुष्परिणाम उत्पन्न करने वाली चुनौती है “युवाओं में बढ़ती मादक पदार्थों के सेवन की इच्छा” | मादक सेवन के प्रति युवाओं की बढती रुचि न केवल उनके स्वयं के लिए बल्कि परिवार और समुदाय के लिए भी घातक है | नशा करने की यह प्रक्रिया वर्तमान में अधिकतम बुरी संगति, मानसिक तनाव, अशिक्षा, प्रलोभन और बेरोजगारी के कारण प्रारंभ होती है, जो बाद में जानलेवा बीमारी, मृत्यु, मानसिक असंतोष, धन हानि, प्रतिष्ठा और परिवार हानि जैसे परिणाम देती है |

युवा शक्ति में मादक पदार्थों का सेवन करने की इच्छाओं को कम करने के उपाय –

· स्वप्रेरणा – राष्ट्र के सुखद और सशक्त भविष्य के लिए आवश्यक है, कि युवा नशे का सेवन करने की इच्छा को स्वयं पर कभी हावी न होने दें | क्योंकि स्वप्रेरणा से अच्छा प्रेरक कोई और नहीं हो सकता |

· विद्यार्थी की सामुदायिक सहभागिता – समस्त युवाओं को जितना किताबी ज्ञान होना आवश्यक है, ठीक उतना ही आवश्यक है सामुदायिक गतिविधियों का अनुभव होना | विद्यार्थियों में नशे को सामाजिक बीमारी समझने का बीजारोपण समुदाय में जागरूकता गतिविधियों में सहभागिता के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है | उदाहरण के लिए युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय के एन.एस.एस. और नेहरु युवा केंद्र संगठन के युवा प्रशिक्षित, जागरूक और नशे से मुक्त होते हुए सामाजिक प्रेरक होते हैं |

· परिवार से शुरुआत – अक्सर देखा जाता है, कि ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्ग और महिलाऐं भी अधिक संख्या में मादक पदार्थों का सेवन करते हैं | युवाओं को अपने परिवार के सदस्यों को धूमपान और नशे की वस्तुओं के सेवन से मुक्ति दिलाने में मदद करणी चाहिए, ताकि आने वाली पीढियां और समाज के बच्चे इस प्रकार की आदतों में स्वयं को संलग्न करने के विषय में विचार भी न कर सकें |

· निर्धारित लक्ष्य – नशा या मादक पदार्थों के सेवन की आदत युवाओं को तब ही प्रभावित कर सकती है, जब वे लक्ष्यहीन अथवा भ्रामक स्थिति में हों | अतः आवश्यक है, कि अपने जीवन में निर्धारित लक्ष्य के प्रति निष्ठावान रहकर कार्य किया जाए |

· शासन की योजनाओं में भागीदारी – भारत सरकार द्वारा विभिन्न समयों पर भिन्न – भिन्न प्रकार के सामाजिक आयोजनों का हिस्सा बनकर भी हम स्वयं को शिक्षित और प्रेरित कर सकते हैं | हमारी शिक्षा और संगति हमारे मित्रों व समुदायों के लिए सकारात्मक वातावरण उत्पन्न करने में सदैव मदद करेगी |

        संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में 2019 में कहा गया था, कि पिछले दशक में भारत में नशीली दवाओं के उपयोग में 30% की वृद्धि हुई थी | वहीँ वर्तमान समय में कोरोना महामारी ने भी युवाओं और आम नागरिकों के जीवन में नशे के सेवन की आदत को बढ़ा दिया है | इस प्रकार के बढ़ते खतरों से सावधान रहना, इनकी पहचान करना और इनका हल खोजना ही सबसे अच्छा विकल्प है | युवाओं को न केवल स्वयं को बल्कि इस समाज को भी सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उठानी होगी | तब ही भारत में खुशहाल जीवन और आनंद के दर्शन संभव हो सकेंगे |

“हर पल मादक सेवन की, समुदाय को जो बीमारी है |

नशा न घर बर्बाद करे, यह सबकी जिम्मेदारी है ||”

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