कोरोना के शक की सुई चीन पर

दुलीचंद कालीरमन

चारों तरफ कोरोना की चर्चा है। पूरा विश्व कोरोना से लड़ रहा है। लेकिन अभी तक सभी असहाय हैं। चीन के वुहान से वजूद में आया कोविड-19 नाम के इस वायरस ने चीन, इटली, ब्रिटेन, अमेरिका, स्पेन, ईरान, भारत सहित दुनिया के हर हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया है। अभी तक इसके इलाज के लिए कोई भी दवा कारगर साबित नहीं हुई है। इसके इलाज के लिए दवाइयों के अनुसंधान पर दुनिया भर के वैज्ञानिक अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं।

 इसका एकमात्र बचाव सिर्फ सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) ही है। क्योंकि यह वायरस संक्रमित व्यक्ति से उसके संपर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों में फैलता है। जिसे बाद में रोक पाना संभव नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी गंभीरता को समझते हुए पहले 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का आह्वान किया तथा फिर स्थिति को काबू में न आते देखकर 24 मार्च से 21 दिन के लिए संपूर्ण देश में लॉकआउट घोषित कर दिया है। जिस का कड़ाई से पालन भी किया जा रहा है। पंजाब, राजस्थान, हिमाचल व दिल्ली जैसे कुछ राज्यों ने तो अपनी राज्यों में कर्फ्यू की घोषणा भी कर दी है।

 ऐसे समय में जब कोरोना के खिलाफ इस जंग में विश्व को एक होकर लड़ना चाहिए, उस संकट काल में भी कोरोना को लेकर कई महत्वपूर्ण देश आपस में ही खींचतान कर रहे हैं। पहली तकरार कोरोना वायरस के नामकरण को लेकर ही हो गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे ‘चीनी वायरस’ कहा तो चीन ने अमेरिका  पर आरोप लगा दिया कि यह अमेरिका द्वारा चीन में जैविक हथियार के रूप में भेजा गया। एक अमेरिकी वकील ने तो चीन के खिलाफ 20 खरब डॉलर का केस भी कर दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोना को किसी देश से जोड़कर देखना सही नहीं होगा। हालांकि यह भी सच है कि इससे पहले भी कई बीमारियों के नाम देशों के साथ जोड़े जाते रहे हैं जैसे कि जापानी बुखार या स्पेनिश फ्लू इत्यादि।

 चीन पर शक करने के कई कारण हैं। सबसे पहला मामला चीन के ही वुहान प्रांत में प्रकाश में आया था। चीन ने शुरू से ही मामले को छिपाने की कोशिश की। यहां तक कि सबसे पहले इस वायरस के बारे में दुनिया को बताने वाले डॉक्टर को भी प्रताड़ित करने तथा बाद में उसकी मृत्यु भी संदेह को बढ़ाती है। इतने बड़े चीनी भूभाग में जिसकी जनसंख्या विश्व में सबसे ज्यादा है, क्या यह आश्चर्यचकित करने वाली घटना नहीं है कि यह वायरस चीन के बाकी प्रांतों में क्यों नहीं फैला?  इसे वुहान में भी पूर्णत नियंत्रित कर लिया गया जबकि यूरोप के प्रमुख देशों में मौत के आंकड़े बढ़ते ही चले जा रहे हैं। जबकि वे चिकित्सा सुविधाओं में चीन से बहुत आगे हैं। चीन ने भी अभी तक इसके इलाज के लिए किसी दवा के अनुसंधान में सफलता का दावा नहीं किया है। फिर वह अपने देश में इस महामारी को रोकने में कैसे सफल हो गया?  यह सवाल और भी ज्यादा पेचीदा है।

 चीन पर शक करने का एक दूसरा कारण यह भी है कि चीन के मित्र देशों जैसे रूस तथा उत्तर कोरिया में यह न के बराबर फैला। जबकि उसकी सीमाएं चीन से मिलती है । लेकिन इस वायरस से प्रभावित होने वाले देश इटली, फ्रांस, इंग्लैंड तथा अमेरिका चीन से बहुत दूर है। अगर अभी तक कोरोना की कोई दवाई नहीं बनी है तो वुहान में नियंत्रण किस जादू से पाया गया?

 विदेश नीति के कुछ जानकारों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को व्यापार युद्ध में पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। पिछले कुछ समय से चीन की आर्थिक हालत बिगड़ती जा रही थी। ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना में भी चीन ने खरबों डालर का निवेश किया था। जिसका रिटर्न चीन की अपेक्षा के अनुरूप नहीं मिला। चीन में बढ़ती बेरोजगारी की दर चीनी साम्यवादी शासन के लिए चिंता का विषय है। लेकिन चीन क्या अपनी घरेलू परिस्थितियों से निपटने के लिए इस प्रकार का अमानवीय कदम उठा सकता है, ऐसा अभी नहीं कहा जा सकता।

 कोरोना के कारण दुनिया की 80% आबादी अपने घरों में कैद है। सभी व्यापारिक तथा आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गई है। दुनिया भर के शेयर बाजार लुढ़कते जा रहे हैं। जाहिर है कि आर्थिक मंदी की स्पष्ट आहट और भी नजदीक आ चुकी है। वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां एक दूसरे पर आत्मनिर्भर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 24 मार्च के संबोधन में कहा भी है कि देश को इस महामारी के दौरान आर्थिक कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन देश के नागरिकों की जान बचाना अर्थव्यवस्था से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

 भारत में कोरोना का कहर पश्चिम के देशों की अपेक्षा अभी कम है। लेकिन जनसंख्या घनत्व तथा चिकित्सा सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए हमें सचेत होने की आवश्यकता है। सरकार व प्रशासन ने अपने स्तर पर संभलकर कदम उठाए हैं। भारत में लॉक-डाउन की प्रक्रिया का विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी प्रशंसा किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने  भी कहा है कि इस संकट की घड़ी में भारत ही रास्ता दिखा सकता है, क्योंकि उसके पास चेचक और पोलियो जैसी महामारी से निपटने का अनुभव है। हाल ही में भारत की एक कंपनी ने स्वदेशी कोरोना वायरस टेस्ट किट तैयार करना शुरू कर दिया है। जिससे परीक्षणों की संख्या बढ़ाकर जोखिम को कम किया जा सकता है।

 भारत वैश्विक स्तर पर औषधि निर्माण के क्षेत्र में एक अग्रणी देश है। लेकिन दवाइयों को बनाने के लिए कच्चे माल तथा रसायनों के मामले में वह चीन पर निर्भर है। उद्योग जगत तथा केंद्र सरकार को इस विषय पर ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि देश की 130 करोड़ आबादी की चिकित्सा सुविधाओं और औषधि निर्माण के क्षेत्र में किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता और वह भी ऐसे देश पर जिसके चरित्र के बारे में कुछ भी ठोस रूप से कहना मुश्किल हो।

 भारत  के राष्ट्र के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्क देशों में कोविड-19 नाम की इस बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए अपने स्तर पर पहल करके सार्क के देशों के प्रमुखों का  वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एक सम्मेलन भी आयोजित किया था। इस महामारी से बचने के कदम उठाने के लिए सार्क देशों ने कोरोना वायरस  फ़ंड भी बनाया है। जिसमें सभी सदस्य देशों ने अपना योगदान दिया है। प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर विश्व के महत्वपूर्ण देशों के संगठन ‘जी-20’ के राष्ट्र प्रमुखों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 26 मार्च को इस बीमारी के निवारण के लिए विचार विमर्श किया गया, ताकि इस बीमारी से निपटने के लिए वैश्विक सहमति बनाई जा सके और एक ठोस रणनीति के तहत वैश्विक स्तर पर भी कार्य किया जा सके।

 कोरोना को ‘वुहान वाइरस’ कहो या ‘चीनी वाइरस’। यह संकट की इस घड़ी में संपूर्ण विश्व को एकजुट होकर सामूहिक रूप से प्रयास करने की जरूरत है ताकि इस महामारी से करोड़ों नागरिकों की जान बचाई जा सके। संकट के समय चुनौतियां भी आएंगी लेकिन इन्हीं चुनौतियों में अवसर भी निकलेंगे, जिन्हें भारत को संभालना होगा।

दुलीचंद कालीरमन

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