बोफोर्स का नया संस्करण

augustawestlandसंदर्भः- हेलिकाॅप्टर घूसकांड में इटली की अदालत का फैसला

प्रमोद भार्गव
कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के शासन के दौरान 12 अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकाॅप्टर की खरीद में कांग्रेस बोफोर्स सौदे की तरह घिरी नजर आ रही है। 3600 करोड़ रुपए के इस घोटाले में इटली की ‘मिलान कोर्ट आॅफ अपील्स‘ ने 8 अप्रैल को इस मामले पर फैसला दिया है। इस अदालत का दर्जा भारत के उच्च न्यायालयों के सामान है। फैसले में अदालत ने भारत के पूर्व वायुसेना अध्यक्ष शशिन्द्र पाल त्यागी को तो दोषी माना ही है,साथ ही 225 पृष्ठ के इस फैसले में भारत के जिन लोगों को रिश्वत दी गई है,उनमें सिग्नोरा गांधी,तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह,अहमद पटेल, आॅस्कर फर्नाडीस और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के नामों का भी उल्लेख है। इसमें सिग्नोरा गांधी से अर्थ श्रीमती सोनिया गांधी से लगाया गया है। दरअसल इटली में विवाहित स्त्री को भारत के श्रीमती की तरह सिग्नोरा कहा जाता है। फैसले के पृष्ठ क्रमांक 225 में उल्लेख है कि सोनिया के राजनीतिक सचिव एपी यानी अहमद पटेल को सौदा पूरा कराने के लिए 15 से 16 यूरो मिलियन,मसलन 17-18 मिलीयन डाॅलर दिए गए। अगस्ता वेस्टलैंड के प्रमुख आरोपी जिउसेपे ओरसी ने अदालत को दिए बयान में कहा है कि उसने कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को लगभग 125 करोड़ रुपए की घूस दी थी। अदालती फैसले की पृष्ठ संख्या 225 में हाथ से लिखे उन कगजों को भी संलग्न किया गया है,जिनमें लेन-देन की रकम का उल्लेख है। ओरसी को अदालत ने साढ़े चार साल की सजा सुनाई है। गौरतलब है,जब रिश्वत देने वाले की तस्दीक हो गई और उसे सजा भी मिल गई तो फिर रिश्वत लेने वालों को अदालत के कठघरे में क्यों नहीं खड़ा होना चाहिए ?
बहुचर्चित इस हेलिकाॅप्टर घोटाले की जांच सप्रंग सरकार के कार्यकाल से ही सीबीआई कर रही है। हेलिकाॅप्टर घूसकांड में पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी सहित 13 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज है। त्यागी भारतीय वायुसेना के ऐसे पहले प्रमुख थे, जिनका नाम भ्रश्टाचार से जुड़े घोटाले में आपराधिक भूमिका की कूट रचना करने में सामने आया था। सतीश बगरोडिया और उनकी कंपनी आईडीएस इन्फोटेक के प्रबंध निदेशक प्रताप अग्रवाल के नाम भी आपराधिक सूची में दर्ज हैं। सतीश पूर्व केंद्रीय कोयला राज्यमंत्री संतोश बगरोडिया के भाई हैं। सीबीआई ने चार कंपनियों के नाम भी एफआईआर में दर्ज किए हुए हैं। इनके नाम हैं, इटली की फिनमैकेनिका, उसकी सहयोगी ब्रिटिष कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड और चंडीगढ़ स्थित आईडीएस इन्फोटेक तथा एयरोमैटिक्स। दरअसल साॅफ्टवेयर कंपनियों पर घूसकांड की आंच इसलिए आई है, क्योंकि इन्हीं कंपनियों के माध्यम से रिश्वत का पैसा भारत लाया गया। इन कड़ियों को जोड़ने में ही सीबीआई लगी हुई है।
भारत में हेलिकाॅप्टर घोटाले के संकेत 2010 में ही मिल गए थे, लेकिन केंद्र सरकार लंबी चुप्पी साधे रही थी। क्योंकि वह लगातार घोटालों का सामना करने से बचना चाहती थी, वरना इटली की सबसे बड़ी औद्योगिक कंपनी फिनमैकनिका के सीईओ ओरसी को तो इटली पुलिस ने इसी हेलिकाॅप्टर सौदे में 12 फरवरी 2010 में ही हिरासत में ले लिया था। इसी समय यह सौदा मंजूर हुआ था और इस मंजूरी के साथ ही पूर्व वायुसेना अध्यक्ष एसपी त्यागी का नाम गड़बड़ घोटाले में उछलने लगा था। सौदे में कुल 3600 करोड़ रुपए की राशि इटली और भारत के लोगों को बतौर रिश्वत दी गई थी। यह राशि कुल कीमत की 10 फीसदी है। जांच में सीबीआई को इटली में मौजूद बिचैलियों से जो दस्तावेज हाथ लगे थे, उन्हीं के आधार पर हेलिकाॅप्टर खरीद अनुबंध रद्द कर दिया गया था। हालांकि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ;कैग ने भी अपनी अंकेक्षण रिपोर्ट में इस सौदे में नियमों की अनदेखी करने की टीप लगाई थी। कैग ने सौदे में वास्तविक मूल्य से कहीं अधिक का भुगतान किया जाना बताया था। इस रिपोर्ट मे कैग ने 900 करोड़ रुपये की धांधली का अंदाजा लगाया था। लेकिन मनमोहन सिंह सरकार ने इसकी अनदेखी कर दी थी।
इटली पुलिस ने भारत की सीबीआई को जो जानकारी दी थी, उसके मुताबिक अगस्तावेस्टलैंड से हेलिकाॅप्टर खरीदने के लिए 3546 करोड़ रुपए के सौदे में 2004 से 2007 के बीच कार्रवाई आगे बढ़ाने की प्रक्रिया के दौरान एसपी त्यागी को बतौर रिश्वत दिए गए थे। इस रिश्वत की सौदेवाजी त्यागी के चचेरे भाई संजीव कुमार त्यागी उर्फ जूली, संदीप त्यागी और डोक्सा त्यागी के माध्यम से हुई थी। ये सभी नाम इटली पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में शामिल हैं। त्यागी इन्हीं सालों में भारतीय वायुसेना के अध्यक्ष थे। हालांकि त्यागी ने इन आरोपों का खंडन इस आधार पर किया था कि ‘मैं सेनाध्यक्ष के पद से 2007 में सेवानिवृत्त हो गया था, जबकि सौदे के अनुबंध पर हस्ताक्षर 2010 में हुए हैं।‘ लेकिन यहां गौरतलब है कि उन्हें कंपनी की मंशानुसार हेलिकाॅप्टर खरीद प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में दोषी पाया गया है। यदि उनकी भूमिका निष्पक्ष व निर्लिप्त होती तो खरीद प्रक्रिया कंपनी की इच्छानुसार आगे नहीं बढ़ती ?
दरअसल हेलिकाॅप्टर के तकनीकी चयन में फेरबदल करने के यह रिश्वत दी गई थी। इटली पुलिस के अनुसार हेलिकाॅप्टर उड़ान की अधिकतम उंचाई क्षमता को बदलवाने के लिए कथित रिश्वत दी गई थी। अगस्तावेस्टलैंड द्वारा निर्मित हेलिकाॅप्टरों की उड़ान क्षमता 15,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने की है। जबकि भारत 18,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने वाले हेलिकाॅप्टर खरीदना चाहता था। जिससे हिमालय की कारगिल जैसी दुर्लभ पहाड़ियों पर पहुंचने में सुविधा हो। चूंकि अगस्तावेस्टलैंड से कथित रुप से रिश्वत लेना तय हो गया था, इसलिए हेलिकाॅप्टर द्वारा ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता को घटा दिया गया। निविदा की शर्तों में पहले दो इंजन वाले हेलिकाॅप्टर खरीदे जाने का प्रस्ताव था। चूंकि अगस्ता के तीन इंजन वाले हेलिकाॅप्टर थे, इसलिए शर्तों में बदलाव करते हुए तीन इंजन के हेलिकाॅप्टर खरीदे जाने का प्रस्ताव रखा गया।
जब हेलिकाॅप्टर खरीद का मसला उछला तो केंद्र सरकार के इशारे पर रक्षा मंत्रालय ने इस घोटाले के तार पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्वर्गीय बृजेश मिश्र से भी जोड़ दिए थे। दावा किया गया कि निविदा की शर्तों में बदलाव की पहल 2003 में बृजेश मिश्र ने की थी। मिश्र, तत्कालिन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के निकटतम थे। लेकिन बृजेश मिश्र की प्रक्रिया को न तो इटली पुलिस ने संदेह के घेरे में लिया है और न ही सीबीआई ने ? जाहिर है, सरकार की मंशा पाप का ठींकरा वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार पर फोड़ने की थी ? हालांकि यहां मौजूदा मनमोहन सरकार का दायित्व बनता था कि यदि बृजेश मिश्र ने गलत मंशा के चलते खरीद प्रक्रिया आगे बढ़ाई थी, तो वे इसे तत्काल निरस्त करते हुए नई व पारदर्शी प्रक्रिया को अंजाम देते ? ऐसा कुछ करने की बजाय, मनमोहन सरकार दोषारोपण तक सिमट कर रह गई थी।
चूंकि भारत हथियार खरीदने वाले देशों में अव्वल है, इसलिए हथियार बेचने वाले अंतरराष्ट्रीय दलाल भारतीय सेना के अधिकारियों को प्रलोभन देने के फेर में रहते हैं। 2007 से 2011 के बीच भारत ने 11 अरब डाॅलर के हथियार खरीदे हैं, जो दुनिया भर में हुई हथियारों की बिक्री का 10 फीसदी हैं। अंदाजा है कि अगले 10 साल में भारत 100 अरब डाॅलर की कीमत के लड़ाकू विमान, युद्धपोत और पनडुब्बियां खरीदेगा। 10 अरब डाॅलर के हेलिकाॅप्टर भी खरीदे जाने हैं। जाहिर है, दलाल सेना अधिकारियों को पटाने की कोशिश में लगे रहते हैं। पूर्व थल सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने 2012 में सेवानिवृत्त होने से पहले आरोप लगाया था कि उन्हें 600 टैट्रा ट्रक खरीदने के लिए 14 करोड़ रुपए की रिश्वत देने की पेशकश की गई थी।
यदि त्यागी दलालों के प्रलोभन में न आकर वीके सिंह की तरह लालच दिए जाने का पर्दाफाष करते तो आज वे भी वीके सिंह की तरह देश के आदर्श नायकों की श्रेणी में शामिल हो गए होते ? हालांकि रक्षा मंत्री ए. के. एंटानी ने रिश्वत खोरी की जानकारी मिलते ही इस हेलिकाॅप्टा सौदे को तत्काल रद्द तो किया ही, दो अन्य सौदे भी रद्द कर दिए थे। इन सौदों में बीईएमएल का 3000 करोड़ रुपये का टैट्रा ट्रक सौदा और यूरोकाॅप्टर से हलके हेलिकाॅप्टर खरीद सौदा शामिल थे। 6190 करोड़ रुपये के इस करार के तहत 197 हेलिकाॅप्टर खरीदे जाने थे। शायद इसीलिए इटली की अदालत से आए फैसले में रक्षा मंत्री होने के बावजूद एंटानी का कहीं नाम नहीं है। इन सौदों को रद्द करते समय एंटानी ने कहा भी था कि रिश्वत का लेन-देन हुआ है। एंटानी ने ही सीबीआई जांच बिठाई थी। अब सीबीआई के साथ-साथ प्रर्वतन निदेशालय की ओर से भी जांच की जा रही है। कांग्रेस पर हमलावर होती भाजपा से बचाव का एक ही आधार है कि उन्हीं के नेतृत्व वाली सरकार के रक्षा मंत्री एंटानी ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी, लिहाजा कोई कांग्रेसी यदि इस घोटाले में लिप्त होता तो वह सीबीआई को जांच सौंपती ही क्यों ?
फिलहाल सीबीआई को इस घोटाले की जांच आगे बढ़ाने के लिए फैसले की सत्यापित प्रति की प्रतीक्षा है। हालांकि सीबीआई का दावा है कि वह घोटाले की जांच लगभग पूरी कर चुकी है। केवल 8 देशों को भेजे गए अनुरोध पत्रों का जवाब आना शेष है। दरअसल रिश्वत की धनराशि इन्हीं देशों की भारत में मौजूद बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से भारत आई थी। इसलिए जब तक रिश्वत की लेन-देन से जुड़ी सभी कंपनियों की कड़ियों को जोड़ नहीं लिया जाता आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई मुश्किलहै। अलबत्ता कहीं बोफोर्स तोप सौदे में न केवल दलाली लेने की बात सिद्ध हो गई थी,बल्कि रकम किसके पास पहुंची है यह भी लगभग सिद्ध हो गया था। बावजूद असली दोषी बेनकाब नहीं हुए। केंद्र में भाजपा नेतृत्व की सरकार होने के बावजूद जिस ढिलाई से बोफोर्स के इस नए संस्करण की जांच चल रही है,उससे यह संदेह बनता है कि दोषियों पर कहीं पर्दा डला ही नहीं रह जाएं ? हालांकि इटली के फैसले इस गुंजाइश को लगभग समाप्त कर दिया।

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