आम आदमी पार्टी की वास्तविकता

-डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री- Arvind kejrival
अरविन्द केजरीवाल और उनके आम आदमी पार्टी नाम से जाने वाले संगी साथियों की असलियत धीरे-धीरे सामने आ रही है । असलियत के खुलने से दूसरे लोगों पर क्या असर होता है, यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन केजरीवाल के अपने समर्थकों पर ही क्या असर हो रहा है, इसका एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा। गुजरात के नवसारी कृषि विश्वविद्यालय के एक प्राध्यापक ने केजरीवाल को उनके गुजरात प्रवास के बाद दिये गये बयानों को लेकर एक पत्र लिखा है जो आजकल सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बना हुया है। पत्र लेखक भी भारतीय प्राद्यौगिकी संस्थान खडगपुर का स्नातक है, जहां से केजरीवाल ने पढ़ाई की थी। लेखक केजरीवाल के आन्दोलन का समर्थक था और ईमानदारी से समझता था कि आम आदमी पार्टी देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये ही पैदा हुई है और इसी काम के लिये सरपट चाल पकड़े हुये हैं। लेकिन पिछले दिनों केजरीवाल गुजरात में गये थे और उन्होंने गुजरात और वहां के विकास के वारे में अनेक बातें बंगलुरु में आकर कहीं। एक आरोप यह भी था कि गुजरात में सरकारी नौकरी पैसा देने से मिलती है और प्रदेश की आर्थिक हालत ऐसी है कि सरकार के पास कर्मचारियों को समय पर वेतन देने के लिये भी पैसे नहीं हैं। कृषि विश्वविद्यालय के उपरोक्त प्रोफ़ेसर का कहना था कि मुझे बिना एक भी पैसा दिये गुजरात में नौकरी मिली है और महीने की पहली तारीख़ को वेतन भी मिल जाता है। मैंने ग्रामीण और जनजाति क्षेत्रों में भी काम किया है, वहां भी कभी बिजली की आपूर्ति में कट नहीं लगता। लेखक के अनुसार उसने भारत के लगभग सभी राज्यों का प्रवास किया है और किसी भी राज्य की सड़कें इतनी अच्छी नहीं हैं जितनी गुजरात की। उसने केजरीवाल को पूछा है कि आपके अनुसार गुजरात में बिल्कुल विकास नहीं हुआ, तो आप गुजरात प्रवास में सुदूर गांवों में से भी ट्वीट करते थे, तो वह बिना बिजली के कैसे हो पाता था ? लेखक के अनुसार गुजरात के गांवों में भी वाई-फ़ाई की गति पुणे शहर में गति से ज़्यादा है। अन्त में इस प्रोफ़ेसर ने केजरीवाल पर ताना कसा है कि जब आपको दिल्ली में कुछ करने का अवसर मिला था तो आप भाग गये और अब दूसरों की आलोचना कर रहे हो। लेखक ने नसीहत दी है कि पहले अपनी योग्यता सिद्ध करो तभी दूसरों की आलोचना का अधिकार प्राप्त होता है और इस नसीहत के बाद पत्र लेखक ने केजरीवाल का समर्थन बन्द कर दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र देने के बाद केजरीवाल के समर्थकों में यही भाव पैदा हो रहा है।
शुरू में जब अन्ना हज़ारे की आड़ में केजरीवाल ने अपने कुछ ख़ास मित्रों की सहायता से यह ऐलान किया कि वे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जंग लड़ रहे हैं तो ज़ाहिर है इस बीमारी से त्रस्त लोगों में उनके प्रति आस्था उत्पन्न हुई। लेकिन भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जंग के नाम पर जब यह लगने लगा कि वे तो देश की पूरी राजनैतिक व्यवस्था एवं राजनैतिक दलों के प्रति अनास्था पैदा करना चाहते हैं, जिससे पूरे देश में अराजकता फैल सकती है जिसका लाभ उठा कर तानाशाही माओवादी व तालिबानी शक्तियां देश पर क़ब्ज़ा कर सकतीं हैं, तो कुछ लोगों ने केजरीवाल को प्रश्नित करना शुरू कर दिया। लेकिन तब भी दूसरे लोग यही मानते रहे कि इसमें केजरीवाल की अपरिपक्वता हो सकती है, उनकी मंशा में खोट नहीं हो सकता। वे राजनैतिक सत्ता प्राप्त नहीं करना चाहते, बल्कि सत्ता किसी की भी हो, लेकिन वह भ्रष्टाचार मुक्त हो, यही उनका मक़सद है। तब एक दिन केजरीवाल ने अन्ना को भी अंगूठा दिखाते हुये यह घोषणा कर दी कि मक़सद तो अभी भी उनका भ्रष्टाचार को समाप्त करना ही है, लेकिन वह तभी संभव है जब एक राजनैतिक दल बनाकर सत्ता प्राप्त कर ली जाये। उनके समर्थकों को एक बार फिर उनकी इन कलाबाज़ियों से आश्चर्य हुआ, लेकिन उन्होंने फिर उनको इस बार बैनिफिट आफ डाऊट दे दिया। उनका कहना था कि राजनैतिक दल बनाकर भी यदि भ्रष्टाचार समाप्त किया जाये तो कोई बुरी बात नहीं है। दिल्ली विधान सभा के चुनावों में चाहे जनता ने केजरीवाल को दिल्ली में सरकार चलाने का अधिकार नहीं दिया था तब भी भारतीय जनता पार्टी ने सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद केजरीवाल को सरकार बनाने का अवसर दे दिया, लेकिन केजरीवाल का मक़सद न भ्रष्टाचार से लड़ना था न ही जनता के कल्याण के लिये कुछ सार्थक करना। वे किसी तरह भी सरकार से भागने का प्रयास करने लगे। यदि ऐसा न करते तो जल्दी ही उनके दावों की पोल खुल जाती।
इस मोड़ पर केजरीवाल का सच धीरे धीरे सबके सामने आने लगा। यह रहस्य सूर्य की तरह साफ़ हो गया कि आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल की इस सारी उछल कूद के पीछे अमेरिका कि सी आई ए द्वारा संचालित फोर्ड फ़ाऊंडेशन का पैसा लगा हुआ था । वैसे तो सीआईए द्वारा भारत की आन्तरिक राजनीति में हस्तक्षेप कोई अनोखी घटना नहीं थी। इससे पहले भी भारत के कुछ राजनैतिक दलों को चीन, केजीबी और सीआईए द्वारा पैसा दिये जाने की घटनाएं होती रहीं हैं। लेकिन इससे भी बड़ा रहस्योद्घाटन  तो अभी होना बाक़ी था। दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने की बाद केजरीवाल द्वारा की गई हरकतों और दिये गये बयानों से स्पष्ट हो गया कि पार्टी का उद्देश्य भ्रष्टाचार से लड़ना नहीं है बल्कि उसके पर्दे में किसी भी तरह नरेन्द्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना है। अब केजरीवाल सोनिया कांग्रेस से नहीं लड़ रहे हैं, जिसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर ही उन्होंने अपने नुक्कड़ नाटक की शुरुआत की थी। उनके निशाने पर न समाजवादी पार्टी है और न ही बहुजन समाज पार्टी , न लालू की पार्टी है और न ही करुणानिधि की पार्टी। अब उनके निशाने पर केवल और केवल नरेन्द्र मोदी है। जिनके साथ आज केजरीवाल प्रत्यक्ष या परोक्ष खड़े हो गये हैं, वहीं से भ्रष्टाचार का गन्दा नाला निकलता है, ऐसा वे स्वयं भी जानते हैं। जिन नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वे ताल ठोंक रहे हैं, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाने का साहस आज तक उन के विरोधी भी नहीं कर सके। वह सारी जुंडली जो गोधरा दंगों का नाम लेकर मोदी को लटका देना चाहती है , उसने भी मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाया। सोनिया गान्धी की पार्टी जो अपने शासन के दूसरे कार्यकाल में एक प्रकार से घोटालों और भ्रष्टाचार का ही पर्यायवाची बन गई थी, केजरीवाल की नज़र में इतनी हानिकारक नहीं है, जितना नरेन्द्र मोदी का सत्ता में आना। यही कारण था कि केजरीवाल शुरू में तो यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार से लड़ने का नाटक करता रहा , ताकि जन समर्थन हासिल कर ले, लेकिन जब लड़ाई का निर्णायक दौर आया तो उसने भ्रष्टाचार से लड़ने का चोगा उतार कर पाला बदल लिया और नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ लड़ने की घोषणा कर दी। तब जाकर यह असलियत उजागर हुई की उसका निशाना शुरु से ही भ्रष्टाचार के गिद्ध की आँख पर नहीं था , बल्कि वह तो नरेन्द्र मोदी पर था। कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना। यह वैचारिक लड़ाई थी, जिसमें केजरीवाल उन ताक़तों केहस्तक थे जो किसी भी हालत में भारत को ताक़तवर और समृद्ध नहीं देखना चाहतीं। भ्रष्टाचार से लड़ना तो केवल आम आदमी को धोखा देने के लिये बहाना था। उस स्थिति में केजरीवाल के समर्थकों का उनसे मोह भंग होना स्वाभाविक ही था । केजरीवाल लोकतंत्र की इस लड़ाई में उस पक्ष का हिस्सा नहीं बने जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ तो था ही लेकिन साथ ही देश के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिये भी लड़ रहा है । इसके विपरीत केजरीवाल और उनकी नवजात पार्टी सोनिया गान्धी के पाले में उस जमावड़े का हिस्सा बन गये जिन्हें वे स्वयं ही भ्रष्ट बता रहे थे । केजरीवाल देश भर में भ्रष्ट लोगों की सूचियाँ बाँट कर फ़तवे जारी कर रहे हैं , लेकिन जो आदमी केजरीवाल के तम्बू में आ जाता है , उसे तुरन्त ईमानदारी का प्रमाण पत्र जारी करने में एक क्षण की देरी नहीं करते। प्रचार और दिखावा यह किया जा रहा है की केजरीवाल के भीतर लोकतंत्र की आत्मा इतनी उत्तेजित हो उठी है कि वे लोकसभा का काम भी ग्राम सभा के तरीक़े से चलाने के लिये छटपटा रहे हैं। लेकिन उनका और उनकी पार्टी का आचरण लोकतान्त्रिक न होकर पूरी तरह तानाशाही और राजशाही जैसा है। जो केजरीवाल हाजत के लिये भी लोगों की राय जान लेने का नाटक करते रहे और अपने समर्थकों का भावात्मक दोहन करते रहे, वे लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों का निर्णय करने के लिये आम जनता की बात तो दूर पार्टी कार्यकर्ताओं की राय जानना भी जरुरी नहीं समझ रहे ।
अब वे पत्रकारों को धमकियां दे रहे हैं कि जिस समय उनकी सरकार आयेगी और वे सत्ता के सिंहासन पर बैठेंगे , वे सभी पत्रकारों को जेल में डाल देंगे। केजरीवाल को ग़ुस्सा है कि मीडिया नरेन्द्र मोदी को क्यों कवर कर रहा है। राहुल गान्धी का ताल्लुक़ राजघराने से है , लेकिन वे भी शायद मीडिया को लेकर या विरोध पक्ष को लेकर अपनी प्रतिक्रिया किसी सीमा तक शालीन रखने की कोशिश करते हैं। केजरीवाल आम समाज से ताल्लुक़ रखते हैं और उन्होंने कुछ मित्रों के साथ मिल कर जो जो जमावड़ा तैयार किया है वह भी आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है। लेकिन दिल्ली में केवल कुछ दिनों ही सत्ता का स्वाद चखने के बाद सत्ता मद ने उन्हें इतना मदमस्त कर दिया कि उन्होंने अभी से लोगों को जेल भिजवाने की धमकियाँ देनी शुरु कर दीं। धमकियां भी उस मीडिया को जिन्होंने बड़े यत्न से उन्हें पैदा किया था। सभी जानते हैं कि अरविन्द केजरीवाल और उनकी आप फोर्ड फ़ाऊंडेशन द्वारा मुहैया की गई खाद से मीडिया की टेस्ट ट्यूब में पैदा हुआ कलोन है। यह किस असल का क्लोन है, यह रहस्य फोर्ड फ़ाऊंडेशन की फ़ायलों में ही क़ैद रहेगा। लेकिन केजरीवाल पंचतंत्र के उस शेर की तरह व्यवहार कर रहा है, जो अपने निर्माता रिषी को ही खाने के लिये दौड़ पड़ा था। तब रिषी ने हंस कर कहा, पुनर्मूषको भव। अर्थात जा तू फिर चूहा ही बन जा, क्योंकि रिषी ने चूहे से ही शेर बनाया था। लेकिन वह चूहा सचमुच अपने आप को शेर समझने लगा था। यही स्थिति केजरीवाल की है। उसे मीडिया ने ही राई से पहाड़ बना दिया था, लेकिन अब बह मीडिया को ही धमकाने लगा है। यह व्यवहार किसी भी तरीक़े से जनता को भ्रमित कर सत्ता प्राप्त कर लेने के बाद , कम्युनिस्ट पार्टियाँ करती हैं। चीन और रुस इसके गवाह रहे हैं। लेकिन केजरीवाल तो बिना सत्ता प्राप्त किये ही कम्युनिस्ट डिक्टेटरों जैसा व्यवहार कर रहा है।
मुख्य प्रश्न अभी भी यही है कि केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपनी तथाकथित लड़ाई छोड़ कर अचानक नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ मोर्चा क्यों खोल दिया है ? उसका एक ही कारण है । अमेरिका समेत सभी यूरोपीय देशों को लगता है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत में एक सशक्त राष्ट्रवादी सरकार बन सकती है । भारत में यदि आज एक स्थाई और राष्ट्रवादी सरकार बनती है, जिसका नीति निर्धारण वाशिंगटन या किसी और स्थान से न होकर दिल्ली में ही होता है , जो राष्ट्रीय हितों में काम करे न कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों में तो इस शताब्दी में विश्व की राजनीति के शक्ति संतुलन के समीकरण बदल सकते हैं और उसमें भारत की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। ये विदेशी शक्तियां जानती हैं कि नरेन्द्र मोदी आज एक व्यक्ति न रहकर भारत के स्वर्णिम भविष्य का प्रतीक है। ये शक्तियां किसी भी तरह से इस प्रतीक को खंडित करना चाहती हैं। इसके लिये पिछले दस साल से मोदी को कचहरियों में घेरने की कोशिश की जा रही है। अब जब वे तमाम कोशिशें बेकार होती दिखाई दे रही हैं तो मोदी को चुनावी समर में घेरने के लिये चक्रव्यूह बनाया जा रहा है। लेकिन पहला प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है कि इसमें केजरीवाल क्यों खड़े हैं ?
इसका उत्तर एक ही है। उसके लिये सीआईए का इतिहास तो खंगालना पड़ेगा ही साथ ही यह भी याद रखना होगा कि फोर्ड फ़ाऊंडेशन अपने डालर जिस मेहरे पर लगाता है पहले ठोंकबजाकर उसकी परख कर लेता है। उसके बाद ही वह डालरों की थैली का मुंह खोलता है। फोर्ड फ़ाऊंडेशन के डालर केजरीवाल के सिर चढ़ कर बोल रहे हैं और वह मालिक के ढोल पर मोदी के ख़िलाफ़ भांगड़ा कर रहा है। लेकिन इससे केजरीवाल का सच सब के सामने आ रहा है और मोह भंग की स्थिति पैदा हो रही है। नवसारी कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापक का केजरीवाल को पत्र इसी मोहभंग का परिणाम है। दरअसल, यह पत्र आम आदमी का परिचायक है और केजरीवाल फोर्ड आदमी का रूप अख़्तियार करता जा रहा है।

6 COMMENTS

  1. ====>यह सारा परदेशी महासत्ता का खेल है।यह सारा परदेशी महासत्ता का खेल है।<====
    महासत्ता को बहुत बडा डर है मोदी का।
    मुझे भी डर है, कि यह महासत्ता मोदी को जीतने नहीं देगी।
    ईश्वर करे मैं गलत प्रमाणित होऊं।

  2. This article brings out the reality behind the strange Kejariwal Phenomenon of the last few Months.
    It needs to be circulated among all Media as soon as possible.
    In the interest of the Nation’s future, Media should forthwith stop any publicity being given to Kejariwal, which so far has blown up the Kejariwal Baloon to its present bloated shape.

  3. Arvind Kejariwal has proved beyond any doubt that he is incompetent , incapable and can not take responsibilities of administration along with his good for nothing team by leaving Delhi government in a mess and has betrayed the people of Delhi who trusted on him because he had promised them a clean administration.
    Now people are realising their mistake and It hink vote to AAP is is waste of vote and road to chaos and anarchy as seen in Egypt, Tunisia and other middle east countries
    Arving Kejariwal has betrayed his Guru Annajee.He is a liar and chemeleon.

    I will never vote Arvind and his party because he is opportunist and an agent of C.I.A being funded by America to brake India.

  4. अब केजरीवाल का सच सामने आ गया है,’आप ‘ की असलियत अब लोगों को उससे दूर कर रही है चुनाव से पहले केजरीवाल व पार्टी जन के कृत्य और भाषण उसे और भी विवादस्पद बना रहे है कुछ लोगों की तानाशाही कार्यकर्ताओं में रोष पैदा कर रही है, और समर्थकों में भी अब वह जादू नहीं रहा है केजरीवाल का झूठ , अब लोगों के समक्ष उनकी पोल खोल रहे है अब शायद इस पार्टी को वह सब कुछ न मिले जिसकी उम्मीद कर दिल्ली की सत्ता से भागे थे वैसे भी ऐसे व्यक्ति को देश की सत्ता सोंपने का क्या अर्थ जो किसी भी समस्या पर पीठ दिखा भाग खड़ा हो

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