चांद पर पानी की मौजूदगी अंतरिक्ष मिशनों के लिए साबित होगी वरदान।

पानी इस जीव-जगत व वनस्पति जगत की प्रथम और मूलभूत आवश्यकता है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है और यही कारण है कि कहा गया है कि ‘जल ही जीवन है।’ धरती तो धरती आज मनुष्य चांद पर लगातार पानी तलाश रहा है ताकि चांद पर भी भविष्य में पृथ्वी ग्रह की भांति ही जीवन संभव हो सके। हाल फिलहाल, पाठकों को यह जानकारी देना चाहूंगा कि चंद्रयान-3 मिशन से पहले जब भारत ने चंद्रयान-1 भेजा था, उस समय भारत ने यह जानकारी हासिल कर ली थी कि चांद पर पानी हो सकता है। वास्तव में चंद्रयान मिशन -1 के दौरान चंद्रयान ने चांद पर बर्फ होने की बात कही थी, और उसके बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इसके आधार पर चांद पर पानी होने की पुष्टि की थी। पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा चंद्रयान-1 मिशन को वर्ष 22 अक्टूबर वर्ष 2008 में लांच किया था। वास्तव में,चन्द्रयान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत द्वारा चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। यह एक मानवरहित मिशन था तथा  यह 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा था। हाल ही में भारत के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के वैज्ञानिकों ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 को उतारकर दुनिया को यह दिखा दिया कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में उसका कोई सानी नहीं है। यह हमारे वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत,लग्न व निष्ठा का परिचायक है जिन्होंने बहुत कम लागत में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपने यान को उतार कर विज्ञान के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। सच तो यह है कि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान जगत में एक बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। इतना ही नहीं, भारत ने दक्षिणी ध्रुव पर जाने को लेकर उत्सुक पूरी दुनिया की अंतरिक्ष एजेंसियों को भी पछाड़ दिया। पाठकों को यह जानना रूचिकर होगा कि चंद्रयान- 3 की कुल लागत लगभग 615 करोड़ रुपये है। इसमें लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल की लागत लगभग 215 करोड़ रुपये है। लॉन्च की लागत 365 करोड़ रुपये होने का अनुमान जताया गया था। जबकि, दुनिया के अन्य चंद्रमिशनों से इसकी तुलना की जाए तो रूसी अंतरिक्ष यान लूना-25 की कीमत लगभग 1,600 करोड़ रुपये है, जो कि भारत के चांद मिशन से कहीं ज्यादा है, बावजूद इसके रूस का मिशन फेल भी हो गया। वर्तमान में भारत दुनिया का पहला देश बन गया है, जिसने चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर लैंडिंग की है। यह भी उल्लेखनीय है कि चांद पर उतरने वाला भारत विश्व का चौथा देश है। जानकारी देना चाहूंगा कि इस सूची में अमरीका, चीन और सोवियत संघ शामिल हैं। अब भारत भी इसमें शामिल हो चुका है। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि वैज्ञानिकों की चांद के दक्षिणी ध्रुव में ही इतनी रूचि क्यों है जबकि वहां पहुंचना किसी हरक्यूलियन टास्क से कम नहीं है ? तो इस संबंध में पाठकों को बताना चाहूंगा कि वैज्ञानिक यह बात जानते हैं कि इस क्षेत्र में(चांद के दक्षिणी ध्रुव पर) बर्फ के रूप में पानी की मौजूदगी है।बीबीसी की एक रिपोर्ट कहती है कि 14 वर्षों से चंद्रमा का परिक्रमा कर रहे नासा के अंतरिक्ष यान लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर की ओर से इकट्ठा किए गए डेटा से पता चलता है कि स्थायी रूप से छाया वाले कुछ बड़े गड्ढों में वॉटर आइस (पानी की बर्फ) मौजूद है, जो संभावित रूप से जीवन को बनाए रख सकती है। यह भी एक तथ्य है कि वैक्यूम के कारण चांद पर पानी ठोस या वाष्प के रूप में मौजूद है।वैज्ञानिकों का यह मानना है कि सूर्य की रेडिएशन से अछूता जमा हुआ पानी लाखों वर्षों से ठंडे ध्रवीय क्षेत्रों में जमा हो गया होगा, जिससे सतह पर या उसके पास बर्फ जमा हो गई होगी। वैसे, यह भी एक तथ्य है कि वायुमंडल बनाने के लिए चंद्रमा के पास पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम में ग्रहीय भूविज्ञान के प्रोफेसर क्लाइव नील कहते हैं कि अभी यह सिद्ध होना बाकी है कि पानी की बर्फ पहुंच में है या खनन करके उस तक पहुंचा जा सकता है, दूसरे शब्दों में क्या वहां पानी के ऐसे भंडार हैं, जिन्हें आर्थिक रूप से निकाला जा सकता है? बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि पानी जीवन के लिए आवश्यक तत्व है‌। पानी के अन्य उपयोग भी हैं। उदाहरण के लिए, यह यान के विभिन्न उपकरणों के लिए एक शीतलक के रूप में कार्य कर सकता है और यहां तक ​​कि रॉकेट ईंधन भी प्रदान कर सकता है। दरअसल,पानी के अणुओं को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन परमाणुओं में तोड़ा जा सकता है और दोनों का इस्तेमाल रॉकेट दागने के लिए प्रणोदक के रूप में किया जा सकता है। चांद पर उपलब्ध पानी(बर्फ की सिल्लियों के रूप में)मंगल ग्रह पर जाने वाले यानों के काम आ सकता है, क्यों कि चांद को भविष्य में एक अंतरिक्ष अड्डे के रूप में विकसित किया जा सकता है।वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि चंद्रमा पर इतने गहरे गड्ढे भी हैं, जहां अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है और इन क्षेत्रों में तापमान आश्चर्यजनक रूप से माइनस 248 डिग्री सेल्सियस (-414 फारेनहाइट) तक गिर जाता है। यहां चंद्रमा की सतह को गर्म करने वाला कोई वातावरण नहीं है। चंद्रमा की इस पूरी तरह अज्ञात दुनिया में किसी भी इंसान ने कदम नहीं रखा है और नासा के मुताबिक, चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव रहस्य, विज्ञान और उत्सुकता से भरा है। हाल फिलहाल चांद पर पानी की मौजूदगी के बारे में विश्व के विकसित देश बहुत ही ज्यादा उत्सुक हैं। आज यूरोप, रूस और अमरीका और चीन की अंतरिक्ष एजेंसियां चांद पर पहुंचना चाहती हैं क्योंकि चांद पर पृथ्वी की भांति एक कॉलोनी बनाने की संभावना दिखती है और आने वाले समय में मंगल पर जाने के लिए भी चांद एक अहम स्थान  या स्टेशन के रूप में विकसित हो सकता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1960 के दशक में चांद पर अमरीकी यान अपोलो के उतरने से पहले ही वैज्ञानिकों ने संभावना जाहिर कर दी थी कि चांद पर पानी हो सकता है, लेकिन 1960-70 के दशक में अपोलो अभियान के जरिए चांद से मिट्टी के जो नमूने लाए गए थे, वे सब सूखे थे और उनमें पानी नहीं था। इसके बाद, वर्ष 2008 में ब्राउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने उन नमूनों का आधुनिक तकनीक से दुबारा गहन विश्लेषण और अध्ययन किया तो यह पाया गया कि उसमें हाइड्रोजन की मौजूदगी थी। वास्तव में यह हाइड्रोजन ज्वालामुखी की राख में चमकदार शीशों के भीतर मिली थी। इसके बाद भारत ने वर्ष 2008-09 में चांद पर पानी की मौजूदगी बताई। वर्ष 2009 में नासा ने भी एक अन्य अभियान चांद पर भेजा जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं उतरा, लेकिन उसने ऊपर से तस्वीरें ले लीं और उस अभियान ने चांद की सतह के नीचे बर्फ का पता लगाया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इससे पहले वर्ष 1998 में नासा का लुनार प्रॉस्पेक्टर भी चांद का चक्कर लगाते हुए दक्षिणी ध्रुव पर छाया में छिपे गड्डों में बर्फ की जानकारी जुटा चुका था। हाल फिलहाल चंद्रयान-3 चांद की सतह पर उतर सफलतापूर्वक लैंड कर गया है, अब उम्मीद जताई जा सकती है कि चंद्रयान पानी के बारे में और भी सबूत खोज सकता है। यदि भारत इस बार फिर चांद पर पानी को लेकर कोई खुलासा करता है तो दुनिया भारत की इस रिसर्च का निश्चित रूप से अनुशरण करेगा, क्यों कि चांद को अब एक कालोनी के रूप में विकसित करने की ओर संपूर्ण विश्व की नजरें हैं।चीन के वैज्ञानिकों का भी यह दावा है कि सतह पर बिखरे कांच के मोतियों के भीतर पानी कैद है जो भविष्य में चंद्रमा पर इंसानी गतिविधियों में काम आ सकता है। भविष्य के मून मिशनों व अन्य उपग्रहों के मिशन के लिए भी पानी बेहद अहम् व महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला

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