कश्मीर समस्या पर प्रधानमंत्री को सुझाव

kashmirडॉ. मयंक चतुर्वेदी

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक में कश्मीर मुद्दे को लेकर शि‍वसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक उम्दा सुझाव दिया है । सुझाव यह था कि नवाज शरीफ के साथ तो चाय पर चर्चा हो गई, कभी कश्मीर के लोगों के साथ भी आप चाय पर चर्चा कीजिए। इस सलाह का महत्व ऐसे समय में और अधि‍क बढ़ जाता है, जब कश्मीर एक बार फिर किसी आतंकी के मारे जाने के बाद सुलग रहा है। यहां बात नवाज शरीफ के साथ मोदी के चाय पीने की तुलना नहीं हो रही, बल्कि बात इससे भी बहुत ज्यादा गंभीर है। वस्तुत: बात यह है कि हम उनके साथ तो चाय पी रहे हैं जो रात-दिन हमारे सीने में छुरा घोपनें का कार्य कर रहा हैं, लेकिन हम उनसे सीधा संवाद बनाने में सफल नहीं हो पा रहे जोकि हमारे देश का ही एक हिस्सा हैं। कश्मीर में कश्मीरियत के नाम पर हुर्रियत नेता यहां के युवाओं को बरगला सकते हैं तो क्यों नहीं सही और यथास्थ‍िति बयान कर इन युवाओं को देश के विकास में योगदान देने के लिए मुख्यधारा में जोड़ा जा सकता ? वास्तव में इस दिशा में एक नई पहल करने की जरूरत है।

आज यह सर्वविदित है कि कश्मीर में बिगड़े हालातों के लिए हमारा पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान पूरी तरह जिम्मेदार है। पाकिस्तान की इसी दखलंदाजी के कारण ही विगत दिनों हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह को यहां तक कहना पड़ा था कि कश्मीर में आज जो कुछ हो रहा है वह सब पाकिस्तान प्रायोजित है और उसका नाम भले ही पाकिस्तान हो, लेकिन उसकी सारी हरकतें नापाक हैं। ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं, जब कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद को हवा देने के लिए पाकिस्तान ने यहां के युवाओं को गुमराह किया हो, यह काम रह-रह कर वह करता ही रहता है । हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी बुरहान वानी हो या उस जैसे तमाम युवा जो उसके बहकावे में आकर अपने देश से ही गद्दारी करने में लग जाते हैं। लेकिन इसके वाबजूद भी हमें अपने विश्वास को बनाए रखना होगा। आज नहीं तो कल घाटी के उन सभी युवाओं को यह बात ठीक ढंग से समझ में आ जाएगी कि कौन उनका सच्चा हितैषी है। वैसे तो यह बात उन्हें तभी समझ जाना चाहिए था जब कश्मीर में बाढ़ आई थी और भारतीय सेना ने बिना भेदभाव किये उनके जानमाल की हिफाजत की थी। लेकिन शायद यहां के अलगाववादी तथा इनके बहकावे में आ जाने वाली आवाम इस अनुभव से कुछ सीखना नहीं चाहती, निश्चित ही प्रकृति उन्हें और अवसर अपने वतन भारत के प्यार को समझने के लिए अवश्य ही देगी।

दूसरी ओर यह भी एक तथ्य है कि कश्मीर का सच दुनिया आज जान चुकी है, भले ही कुछ स्वार्थ से पूर्ण होकर सच्चाई स्वीकार्य न करें किंतु कहना होगा कि इसके वाबजूद भी विश्व के कई देशों ने कश्मीर में आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की घेरेबंदी शुरू कर दी है, जिसके कि संकेत समय-समय पर पिछले दिनों देखने को मिले हैं। आने वाले दिनों में यह घेराबंदी ओर बढ़ेगी इतना तय है। लेकिन आज भी मूल बात यह है कि कश्मीर का अलगाववाद बंद कैसे हो और तत्काल में भारत विरोधी नारे तथा गतिविधि‍यों को कैसे समाप्त किया जा सकता है ? निश्चित ही वर्तमान परिस्थ‍ितियों में हमें कश्मीर को एक नए सिरे से देखना होगा। समस्या है तो उसका समाधान भी होगा । यह तो सुनिश्चित है‍ कि पाकिस्तान को कोसते रहने से काम नहीं चलने वाला, लेकिन उसकी अनदेखी भी संभव नहीं। इसलिए भारत सरकार को जो उपाए कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर करने हों वह करे किंतु इससे भी ज्यादा जरूरी है कि सबसे पहले वह कश्मीरियों से सीधे संवाद बनाने की व्यवस्था बनाए।

शिवसेना नेता संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सही सलाह दी है‍ कि कश्मीर के लोगों के साथ ‘चाय पर चर्चा’ करें। साथ में यह भी जरूरी है कि यह चर्चा एक बार की होकर न रह जाए, इस प्रकार के प्रयोजन सतत करने होंगे, क्योंकि कश्मीर में अलगाववादी और पाकिस्तान परस्त तत्व कश्मीरी युवाओं को बहकाने एवं बरगलाने में समर्थ हैं। उनकी यह समर्थता हो सकती है, धर्म के आधार पर हो, यह भी संभव है, कि कश्मीरियत यानि विशेष संस्कृति की दुहाई देकर इन्हें भारत से अलग रखने का षड्यंत्र चलाया जाता हो, यह भी हो सकता है कि बगैर काम किए ही इस क्षेत्र के अधि‍कांश नौजवानों को धन का लालच दिया जाता हो या अन्य कोई और कारण भी इसके पीछे संभव है। ऐसे तत्वों के समक्ष कश्मीर के राजनीतिक दल भी असहाय-अक्षम नजर आते हैं। कई बार तो यहां के राजनीतिक दलों के आए बयानों और भाषणों को सुनकर समझ नहीं आता कि राजनीतिक दल कौन सी भाषा बोल रहे हैं ? ये राजनीतिक दलों की भाषा है या भारत विरोधियों की। वास्तव में ये उन तमाम राजनीतिक दलों की अपनी साख बनाए रखने की मजबूरी भी हो सकती है। इसलिए सार्थक संवाद, बार-बार की बातचीत कश्मीर की जनता और यहां के छोटे-बड़े राजनीतिक दलों से साथ होती रहे यह बेहद जरूरी है।

कश्मीर के हालात बिगड़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि जाने-अनजाने इस भाव को मजबूत किया गया कि यह भारतीय भू-भाग देश के अन्य हिस्सों से कुछ विशेष है। वस्तुत: अनुच्छेद 370 जिसके कारण से कश्मीर को कुछ खास रियायतें और सुविधाएं मिलती रही हैं, जिसके कारण कुछ हद तक यहां के लोगों में सुविधाभोगी होने का प्रचलन तेजी से पनपता रहा, जिसके परिणामस्वरूप हम कह सकते हैं कि आगे चलकर यही अनुच्छेद 370 इसके अलगाववाद का मुख्य आधार बन गया । इसलिए भी चाय के बहाने लगातार संवाद की यहां आवश्यकता है। कश्मीर में यदि इस प्रकार की नई पहल की जाती है तो यह तय मानिए कि कश्मीरी जनता का एक बड़ा वर्ग खुद को भारत के साथ जोड़ने के लिए तैयार हो जाएगा। लगातार के संवाद के अलावा कश्मीरियों को लेकर फिलहाल तो अन्य कोई स्थायी हल यहां की शांति बहाली के लिए सूझता नहीं है।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

4 COMMENTS

  1. धारा – 370 हटाकर इज़रायल के तर्ज पर बस्तियाँ बसाकर ही कश्मीर को बचाया जा सकता है जिससे कश्मीर के मूल निवासी वहाँ लौट सकें इसके लिए तैयारी तो करनी होगी ! चीन केवल गिलगिट में ही नहीं अपितु पूरे पाकिस्तान में भी अपने सैनिक तैनात कर रहा है यही कारण है कि आए दिन पाकिस्तान हमारे साथ न केवल बॉर्डर पर अपितु हमारे अंदुरूनी भागों में भी गंदी राजनीति में लगा है – निश्चित है भविष्य में भारत-पाकिस्तान मिलकर हम पर हमला करेंगे ‍‍‍!! 1971 की तरह रूस भी हमारे साथ नहीं है !!! फिर हम क्या करेंगे ???

    यूनेस्को के मानदण्डों के अनुसार जहाँ स्थानीय लोगों को जबरन धर्म आदि के आधार पर उजाड़ा जाता है – वहाँ रायशुमारी कभी भी स्वीकार नहीं हो सकती जैसा कि पाकिस्तानी आतंकवादियों ने कांग्रेस की नपुंसकता के कारण कश्मीर में 1948 से ही ऐसे दुष्कृत्य को अंजाम दिया है और आज तक जारी है —-???
    जब राजतंत्र में कश्मीर के राजा ने बिना शर्त भारत के समक्ष समर्पण कर दिया था तो फिर झूठे भाई-बाप-सौहर बने बैठे आतंकियों के लिए हम क्यों रायशुमारी करें ?????? !

    1) राजतंत्र में राजा सम्प्रभुतासम्पन्न होता है बँटवारे के समय कश्मीर में राजतंत्र था जब तत्कालीन महाराजा हरीसिंह ने स्वेच्छा से संघ में विलय का प्रस्ताव भेजा था तो अब प्रश्नचिन्ह का कोई सवाल ही नहीं उठता है !
    2) जब कश्मीर के मूल निवासी कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित करके भगाया गया तब कहाँ थे ये तथाकथित कश्मीर के नेता – – ये सब पापी और अन्यायी हैं —
    3) धारा 370 का समर्थन करने वालों तथा कश्मीरियत का राग अलापने वालों को भी विशेष ध्यान रखना चाहिए कि ये धारा केवल भारत में स्थित आजाद कश्मीर के लिए ही नहीं है बल्कि पाकिस्तान द्वारा अधिकृत तथा चीन द्वारा हथियाए गए कश्मीर के हिस्सों के लिए भी है फिर क्यों कश्मीर के उन हिस्सों में कबायली-बलूची-पंजाबी तथा अक्साईचिन में बीजिंग-शंघाई-तिब्बती आ-आ करके बसते जा रहे हैं क्यों ये लोग उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाते हैं ???
    4) मीडिया वाले भी इनसे (धारा 370 का समर्थन करने वालों तथा कश्मीरियत का राग अलापने वालों) पाकिस्तान द्वारा अधिकृत तथा चीन द्वारा हथियाए गए कश्मीर के हिस्सों के लिए सवाल क्यों नहीं पूँछते हैं ???
    5) कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है !! धारा 370 निरर्थक है और अब्दुल्ला परिवार द्वारा कश्मीर को अपनी रियासत बनाए रखने की एक घिनौनी साजिश है !!!
    धारा 370 को अविलम्ब हटाना चाहिए !! इसीमें कश्मीर और पूरे देश की भलाई है !!!
    इन्हें हर कीमत पर रोकना ही होगा वरना जैसे फारस-सिंध-मुल्तान गया वैसे कश्मीर से भी हाथ धो बैठोगे !! जय हिंद !!! जय हिंदी !!!!
    आज की परिस्थितियाँ इसीलिए समस्यादायक हैं क्योंकि भारत सरकार ने इतिहास से नहीं सीखा है — जरूरत है इजरायल की तरह बम निरोधक सुरक्षित बस्तियाँ पूरी घाटी में बनाकर पहले निष्कासित कश्मीरी पंडितों को वहाँ लाकर बसाया जाए, उसके बाद अन्य लोगों को भी —— इसके लिए आवश्यकतानुसार राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा सकता है ————–

    • बहुत अच्छे विचार हैं| एक त्रुटि को ठीक कर—“निश्चित है भविष्य में भारत-पाकिस्तान मिलकर हम पर हमला करेंगे ‍‍‍!!” में “… चीन-पाकिस्तान …” पढ़ा जाए|

  2. शायद संजय राऊत जी यह भूल गए थे कि प्रधान मंत्री बनने के बाद मोदी जी ने सबसे अधिक दौरे अगर किसी राज्य के किये हैं तो वह जम्मू कश्मीर ही है! और वहाँ जाने पर निश्चय ही वहाँ के लोगों से चर्चा वार्ता तो होती ही है! हाँ कोई एलान करके अलग से चाय पर चर्च नहीं सुनाई पड़ी! तो इसका कारण मोदी जी का बिना प्रचार के पहले लोगों से सामान्य ढंग से वार्ता करके उन्हें समझना और समझाना ही रहा है! शोर मचाने से काम बनते कम हैं बिगड़ते ज्यादा हैं!

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