प्रधानमंत्री के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह

लालकृष्ण आडवाणी

बी. रमन एक अच्छे गुप्तचर अधिकारी रहे हैं, सेवानिवृत्ति के बाद भी जिनका काफी सम्मान से नाम लिया जाता है।

28 जून को प्रेस में यह घोषित हुआ कि प्रधानमंत्री अगले दिन अपना मौन व्रत तोड़क़र मीडिया से मिलेंगे, इसी संदर्भ में रिडिफ डॉट कॉम (rediff.com) ने अपनी वेबसाइट पर बी. रमन का यह लेख प्रकाशित किया है जिसे वेबसाइट ने लेखक की प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह को बुध्दिमतापूर्ण सलाह के रूप में वर्णित किया है:

इस लेख के अनेक अनुच्छेद यहां उदृत करने योग्य हैं।

यह कहने का समय: मैं यहां हूं मैं यहीं रहूंगा। भारत का प्रधानमंत्री। 

भारत के लोगों को कहने का समय: मुझे आपका संदेश मिल गया है। भारत की स्थिति पर मैं आपके आक्रोश को समझ सकता हूं। भ्रष्टाचार पर आपकी चिंताओं में मैं भी शामिल हूं। मैं मानता हूं कि यह एकमात्र अकेला विषय है जो राष्ट्र की चिंतन प्रक्रिया पर हावी है। 

जब यदि जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग यह मानता हो कि मैं भ्रष्टों की, भ्रष्टों द्वारा और भ्रष्टों के लिए सरकार का नेतृत्व कर रहा हूं तो आठ से ज्यादा वृध्दि दर का क्या फायदा, ईमानदार व्यक्ति की मेरी बेदाग छवि का भी क्या उपयोग। मैं इसके लिए प्रतिबध्द हूं कि आपके आक्रोश को समाप्त किया जा सके और आपकी चिंताओं का भी समाधान थोड़े समय में किया जा सके जोकि इस महान राष्ट्र के प्रधानमंत्री के रूप में मेरे पास बचा है। 

सोनिया प्रधानमंत्री नहीं, मैं हूं

मेरे वश से बाहर की परिस्थितियों के फलस्वरूप यदि मैं यह नहीं कर सका तो तनिक क्षण की देरी किए मैं हट जाऊंगा। यदि मैं प्रधानमंत्री नहीं रहा तो कोई आसमान नहीं गिर जाएगा। मैं इस महान देश का एक साधारण नागरिक बनना पसंद करूंगा बजाय इसके कि एक ऐसा प्रभावी प्रधानमंत्री बनने को जो वह चाहता हो उसे न कर पाए, जो करना चाहता है उसे कर पाने में असमर्थ हो। अपने मंत्रिमण्डल के सहयोगियों को बताने का समय: मैं तब तक प्रधानमंत्री हूं जब तक इस कुर्सी पर हूं। मैं तब तक प्रधानमंत्री बना रहूंगा। मेरी बात माननी होगी। उसे सम्मान देना होगा। मेरे निर्देशों का पालन किया जाएगा। जो ऐसा करने के इच्छुक नहीं हैं, अच्छा हो कि वे मंत्रिमण्डल छोड़ दें। यदि वे नहीं छोड़ते, तो मैं उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर करने में हिचकिचाहूंगा नहीं। कांग्रेस पार्टी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी को कहने का समय: इस पद पर भले ही आपने मुझे मनोनीत किया होगा। लेकिन जब तक मैं पद पर हूं, मैं प्रधानमंत्री हूं और आप नहीं हैं। सभी सरकारी अधिकार मेरे यहां से निकलेंगे न कि आप के यहां से। 

‘मैं एक अस्तित्वविहिन व्यक्ति के रुप में सिमट सकता हूं जैसाकि नरसिम्हा राव के साथ हुआ‘

मेरी आवाज और मेरा अधिकार ही माने जाएंगे-और निर्णायक रुप से देखे जाएंगे-राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों में, प्रधानमंत्री के रुप में मेरा पहला दायित्व भारत के लोगों के लिए है। मैं उनकी आवाज को सुनूंगा और नीति निर्धारण में इस आवाज को प्रमुखता मिले, ऐसी व्यवस्था की जाएगी। 

सत्ता के दो केन्द्र नहीं हो सकते। देश ऐसे प्रधानमंत्री को सहन नहीं कर सकता जो लोगों द्वारा प्रधानमंत्री ही नहीं माना जाता। या तो मैं प्रभावी प्रधानमंत्री रहूंगा या फिर आप किसी ऐसे को देख लीजिए जिसके साथ आपको कोई परेशानी न हो और जो आपकी इच्छाओं का पालन कर सके। 

यदि मैं हटता हूं तो ज्यादा से ज्यादा खराब यह हो सकता है कि मैं एक ऐसा व्यक्तित्वविहिन व्यक्ति बनकर रह जाऊं जैसाकि नरसिम्हा राव के साथ हुआ। तो होने दीजिए। मैं इतिहास में ऐसे व्यक्तित्वविहिन व्यक्ति के रुप में पहचाने जाने वाले, जिसे लोगों का सम्मान प्राप्त था-बनना पसंद करुंगा बनिस्पत एक ऐसे प्रधानमंत्री के जिस पर उसके लोग ही हंसते थे। 

‘मैं अपना काम राहुल के लिए पद की रखवाली करने वाला नहीं समझता‘

कांग्रेस में अपने साथियों को बताने का समय: अच्छा होगा कि प्रधानमंत्री के रुप में मेरी अथॉरिटी को कमजोर करने तथा राहुल गांधी को जन्मजात प्रधानमंत्री ‘प्रोजेक्ट‘ करने का अपना अभियान बंद करें। मैं अपना काम सिर्फ राहुल के लिए कुर्सी की रखवाली करना नहीं मानता। 

मैं मानता हूं कि मेरा काम भारत के लोगों की जरुरतों और चिंताओं का समाधान करना है। जब तक मैं इस कुर्सी पर बैठा हूं तब तक मैं वो करुंगा जो इस देश के लोग मुझसे अपेक्षा करते हैं और न कि आप लोग राहुल के हितों की चिंता करने की उम्मीद करते हैं। यदि आप यह स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं तो श्रीमती सोनिया गांधी को दूसरा प्रधानमंत्री मनोनीत करने की सलाह दीजिए। 

29 जून बुधवार को प्रधानमंत्री चुनिंदा आधा दर्जन पत्रकारों से मिले। रिडिफ के लेख का पहला पैराग्राफ ऊपर उदृत नहीं किया गया था। वह इस प्रकार है:

”मेज को पलटने का समय आ गया। मि. प्रधानमंत्री, मेज को पलटने का समय आ गया।” (”दि टाइम टू थम्प दि टेबल हैज कम। मि. प्राइम मिनिस्टर, दि टाइम टू थम्प दि टेबल हैज कम।”)

बुधवार को डा. मनमोहन सिंह की मीडिया के लोगों के साथ बातचीत सात वर्षों की अपने आप में प्रेस कांफ्रेंस थी।

इस बात का पूरी संभावना है कि अपनी इस बातचीत के दौरान किसी समय उन्होंने पहले पैराग्राफ को अमल में लाते हुए मेज पलट दी हो। यह बताने के लिए कि भ्रष्टाचार, सरकार में मतभेद इत्यादि मीडिया का प्रचार है।

लेकिन देश में अनेक लोगों जिन्होंने रिडिफ का लेख पढ़ा होगा अवश्य ही दु:खी हुए होंगे कि बी. रमन द्वारा दी गई बुध्दिमत्तापूर्ण सलाह की उपेक्षा की गई। अन्यथा, 29 जून राष्ट्र के इतिहास में कभी न भुलाए जाने वाला निर्णायक मोड़ बन गया होता, और डा. मनमोहन सिंह के अपने राजनीतिक कैरियर में भी।

1 COMMENT

  1. श्रीमान
    आपने क्या किया था-
    कांधार कौंन गया था मनमोहन सिंह नहीं
    संसद पर हमला-दो वर्ष तक फौज की तैनाती किसने रखी थी – सिंह साहब ने नहीं……
    क्या क्या याद दिलाएं… छोड़ों
    क्या क्या थूक के नहीं चाटा– कि मेरे जैसे गैर राजनीतक,स्वाभाविक राष्ट्रवादी आपके प्रशंसक भी छले गए.
    पर उपदेश कुशल बहुतेरे.

    सादर

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