इंसान की असलियत

लगा रहे हैं छप्पन भोग भगवान को।
खिला न रहा है कोई भूखे इंसान को ।।

रेशमी वस्त्र पहनाए जाते है पाषाण को।
कौन पहनाता है वस्त्र नंगे इंसान को।।

बिलख रहे हैं भूखे बच्चे दूध की एक बूंद को।
दूध पिलाया जाता है पत्थर के पाषाण को।।

आज बोलबाला है,एक झूठे इंसान का।
कोई न पूछता है अब सच्चे इंसान को।।

आज खून पी रहा है इंसान,इंसान का।
ये कैसा नियम बना है अब इंसान का।।

फल भोगता है इंसान अपने कर्मो का।
फिर भी दोष देता है वह भगवान को।।

नेता कुछ भी कह दे एक अच्छे इंसान को।
पर अच्छा इंसान नहीं खोलता अपनी जबान को।।

जरूरत नही है अब आग की इंसान को।
जला रहा है खुद इंसान दूसरे इंसान को।।

इंसानियत अब कहा रह गई अब इंसान में।
देखकर जल रहा है अब इंसान इंसान को।।

इंसान याद करता है बुरे वक़्त में भगवान को।
पर अच्छे वक़्त में याद नहीं करता वह
भगवान को।।

कैसा कोरोना वायरस आया है संसार में।
बन्द किया गया है घर में अब इंसान को।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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