डॉ देशबंधु त्यागी

कैसी तेरी हैं रहमतें ?
उनके दर्द ही बढ़ते रहे।
जिस द्वार पर भी वो गए,
उन पर डण्ड बरसते रहे।
तेरी रेल भी चलती रही,
वो पटरियों पर कट मरे।
तेरा रिजक ही बँटता रहा,
तो भूख क्यों बढ़ती रही ?
तेरा इलाज भी अजीब है ,
दवा नही दारू बेचने लगे।
मेरे दर्द से निकली थी आह ,
तु तप त्याग बताता रहा !
जिस पेट में टुकडा न था,
वो पंजीकरण करता रहा।
थाली बजा, या उड़ा फूल ,
या तु उड़ा हवा जहाज ।
सड़कों पर हमारी पत्नियाँ
जनती रही हैं संततियाँ ।
स्वेद रक्त अश्रुं युक्त,
चलता रहा मजदूर यहाँ ।
ऐ मेरे पंत प्रधान ,
ये तो बता तु है कहाँ?
ये बीस लाख करोड़ में,
मेरा दाल चावल है कहाँ।
डॉ देशबंधु त्यागी