अर्चना त्रिपाठी
जब हरियाणा में जमीनी मुद्दों को छोड़कर भाजपा के केंद्रीय मंत्री कश्मीर के अनुच्छेद 370 और आसाम के एनआरसी का मुद्दा उठाकर हरियाणा की जनता से वोट मांगे, तो यह किसी पार्टी की बहुत बड़ी विफलता के अलावा और कुछ नहीं है। भाजपा पार्टी के मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर भले ही ईमानदार छवि रखते हों, मगर ऐसा कोई कारनामा नहीं दिखा जिसके बलबूते यह कहा जा सके की भाजपा में भ्रष्टाचार पूरी तरह से ख़त्म हो गया हो। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जब जनआशीर्वाद यात्रा निकाली तब तक ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भाजपा हरियाणा में स्पष्ट बहुमत के साथ मिशन 75 को पार कर लेगी। मगर जब से मुख्यमंत्री का “गला काट दूंगा” वाला बयान सामने आया और उसी दौर में कांग्रेस ने नेतृत्व परिवर्तन हरियाणा में किया उसके बाद से भाजपा का ग्राफ लगातार गिरता चला गया। भाजपा ने ऐसी काफी गलतिया की जिसके कारण उन्हें इतने निराशाजनक परिणाम से होकर गुजरना पड़ा।
सबसे पहला कारण बना “जाटों की नाराजगी।” हरियाणा की राजनीति की बात करे तो यहां पर हमेशा से ही जाटों का बोलबाला रहा है। ऐसे में हरियाणा सरकार के राज में जाट आंदोलन होना, उस आंदोलन में असंख्य लोगों की मौत होना, उनके मंत्री द्वारा जाट आंदोलन के दौरान किये गए आगजनी का मामला भाजपा के ही नेता कैप्टन अभिमन्यु द्वारा चलाना, जाट नेता यशपाल मालिक और भाजपा की करीबी का कच्चा -चिटठा जाट समुदाय को पता चलना। माना यह भी जाता है कि महाराष्ट्र मैं देवेंद्र फडणवीस भले ही ब्राह्मण हैं मगर उन्होंने हमेशा महाराष्ट्र के मराठा को तबज्जो दी, मगर मनोहर ने हरियाणा के जाटों को वो सम्मान नहीं दिया। यह सबसे प्रमुख मुद्दा था जिसके कारण हरियाणा की जनता ने मुख्यमंत्री को नकार दिया।
दूसरा कारण बना जमीनी हकीकत को “समझ कर भी नासमझ बनाना” . जमीनी स्तर पर देखे तो हरियाणा का किसान सरकार द्वारा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू न किये जाने से नाराज था। किसानों की फसल बिमा योजना के नाम पर लगातार किसानो के साथ चाल कपट और धांधलियों से परेशान था। किसान लगातार सरकार से “फसल बिमा योजना” के नाम से की गयी ठगी की शिकायत कर रहे थे, और कृषिमंत्री ओमप्रकाश धनखड़ जो शर्मनाक तरीके से हारे वह हंस हंस कर कमियों को दूर करने की बजाय अपनी पीठ ज्यादा थपथपाते थे. हिसार में भी जब धनखड़ से हिसार टुडे की टीम ने सवाल किया था, तो वह किसानो की हकीकत को मानाने को तैयार न थे। और इसका नतीजा अब सामने है। इतना ही नहीं मनोहर सरकार के बहुमत न बनाये जाने के पीछे कारण यह भी था कि उन्होंने बेरोजगारी के असली मुद्दों को न समझकर हर चुनाव में सिर्फ “ग्रुप डी व बिना पर्ची बिना खर्ची” का उल्लेख कर यह दिखाने की कोशिश की कि हरियाणा के बेरोजगार युवाओं के लिए उनसे ज्यादा हितैषी और कोई नहीं। जबकि इस विधानसभा चुनाव के दौरान दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा के स्थानिक बेरोजगार युवाओ को रोजगार देने का प्रश्न उठाकर मनोहर सरकार को संभालने का मौका ही नहीं दिया।
दुष्यंत की हरियाणा युवाओ को रोजगार की बात हरियाणा के युवाओ को इतनी भाई की उसके सामने मनोहर का ग्रुप डी भर्ती प्रक्रिया फीका पड़ गया। उसमें से भी दुष्यंत ने उच्चशिक्षित युवाओ को ग्रुप डी में चपरासी की नौकरी देने वाली खट्टर सरकार को घेरा, फिर एसडीओ भर्ती में कुल 80 पदों में से गुजरात के 78 और हरियाणा के मात्र 2 लोगो की भर्ती का मुद्दा उठाकर मनोहर को संकट में और डाल दिया। इस बीच एसडीओ भर्ती रद्द होने की खबर मानो दुष्यंत के लिए “मौके पर चौका” मारने के भाँती साबित हुआ और मनोहर राज और संकट में घिर गया। इतना ही नहीं चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा कश्मीर के अनुच्छेद 370 की बात करना, हरियाणा का पानी न लाकर पाकिस्तान के पानी को रोकने की बात करना हरियाणा की जनता को नहीं भाया। हर बार -हर चुनाव में देशभक्ति के बात पर वोट मांगने से जनता उभती हुई दिखाई दी।
मनोहर सरकार हरियाणा के स्थानिक मुद्दों पर बात करने में पुरे चुनाव में असक्षम रही। जबकि इस मामले में कांग्रेस और जजपा ने बाजी मारी। उन्होंने ऐसे मुद्दों को उठाया जिसका तालुक हरियाणा और हरियाणा की जनता से था। जबकि भाजपा इसमें असफल रही और इसका नतीजा सामने आप देख ही रहे है। सबसे महत्वपूर्ण कारण है दलबदलू नेताओ को पार्टी में शामिल करवाना, सालो से मेहनत कर रहे कार्यकर्ताओ को नजरअंदाज कर दलबदलुओं को टिकट देना, परिवारवाद के खिलाफ बात कर उचाना में प्रेमलता को टिकट देकर परिवारवाद को बढ़ावा देना, हरियाणा सरकार को कोसने वाले खिलाड़ियों को पार्टी में शामिल करवाकर टिकट देना। यह बात भी भाजपा के खराब प्रदर्शन का प्रमुख कारण बनी। इतना ही नहीं कम्प्यूटर शिक्षकों का मसला हो , गेस्ट टीचर का मसाला हो, इन्हांसमेंट का मसला हो, रोडवेज कर्मचारियों का अब तक के सबसे बड़े आंदोलन का मुद्दा हो या हाल में नया मोटर वेहिकल कानून। यह तमाम मुद्दे भाजपा की हार का कारण बनते रहे, और भाजपा के कैबिनेट मंत्री झूट का पर्दा दाल अपने केंद्रीय नेतृत्व को खुश करते रहे।