पाकिस्तान की कंगाली का कारण है एंटीनेशन होना

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– ललित गर्ग –
भारत में लगातार आतंकवादी गतिविधियों को पोषित करते हुए कश्मीर को हथियाने की कोशिश करने वाले पाकिस्तान की नेशन से ज्यादा एंटीनेशन की तस्वीर सशक्त दिखाई देती है। अपनी इन कुचेष्टाओं एवं षड़यंत्रों से वह कभी भी सफल राष्ट्र न बन पाया है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दिवालियेपन के कगार पर है और वैश्विक वित्तीय निगरानी संस्था फाइनैंशल एक्शन टास्क फोर्स यानि एफएटीएफ के द्वारा उसे ग्रे-लिस्ट में रखे जाने पर उसकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होना तय है। पहले पाकिस्तान बार-बार तुर्की की मदद से ब्लैक लिस्टेड होने से बचता रहा था और अब तुर्की खुद एफएटीएफ के लपेटे में आ गया है। इसकी वजह से उसे आर्थिक मदद मिलना मुश्किल होगा, जबकि पाकिस्तान को अगले दो सालों में अरबों डालर के ऋण की सख्त जरूरत है। अगर ऋण नहीं मिला तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी, गरीबी बढ़ेगी, महंगाई आसमान छूने लगेगी, आम जनता को दाने-दाने के लिये तरशना होगा। प्रश्न है कि गरीबी एवं कर्ज के दलदल में फंसा पाकिस्तान कब तक आतंकवाद को पोषित एवं पल्लवित करते हुए खुद अशांति का जीवन जीता रहेगा एवं दूसरे राष्ट्रों की शांति को भंग करता रहेगा? क्यों नहीं वह विकास एवं अमन-चैन को अपना लक्ष्य बनाता? शांति, अहिंसा एवं अयुद्ध का नजरिया ही पाकिस्तान की दशा एवं दिशा को बदल सकता है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वादा किया था कि वह पाकिस्तान को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से निकालवाएंगे लेकिन यह वादा खोखला ही साबित हो गया। क्योंकि उनकी नीति एवं नियत दोनों ही खोट से भरी है, उनकी कथनी और करनी में बड़ा फासला है। एफएटीएफ ने अपनी निगरानी सूची अर्थात ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान को बनाए रखने का फैसला किया। इस फैसले के बाद पाकिस्तान पर यह दबाव बढ़ गया है कि वह आतंकी संगठनों को पालने-पोसने से बाज आए, लेकिन वह शायद ही ऐसा करे। इसके आसार इसलिए कम हैं, क्योंकि आतंकी संगठनों को संरक्षण देना उसकी नीति का अभिन्न अंग है। वह केवल अपने यहां सक्रिय आतंकी संगठनों को ही नहीं पाल रहा है, बल्कि तालिबान और खासकर उनके साझीदार हक्कानी नेटवर्क के आतंकी सरगनाओं को भी हर तरह का सहयोग-समर्थन दे रहा है। भारत विरोधी गतिविधियां, कश्मीर का राग, आतंकवाद को पोषित करना-पाकिस्तानी राजनीति का पिछले 75 वर्षों से अहम हिस्सा रही है, इन्हीं भारत विरोधी गतिविधियों के कारण ही पाकिस्तान की सरकारों का ध्यान विकास एवं शांति पर न होकर आतंकवाद पर बना हुआ है। इसी कारण पाकिस्तान दुर्दशा एवं दुर्दिनों का शिकार हो रहा है।
इमरान खान आर्थिक मदद और ऋण लेने के लिए कटोरा लेकर घूमते रहते हैं। अमेरिका द्वारा फंड रोकने के बाद पाकिस्तान की कंगाली किसी से छिपी नहीं हुई। अब पाकिस्तान चीन की गोद में बैठकर भारत के खिलाफ साजिशें रच रहा है। तुर्की भी उसका हमदर्द रहा है, लेकिन अब उसको भी पाकिस्तान की तरह अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और यूरोपीय संघ से आर्थिक मदद मिलना मुश्किल हो जाएगा। इन स्थितियों के कारण पाकिस्तान में अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा है। राष्ट्र-निर्माण में जिन ठोस एवं बुनियादी चीजों एवं चरित्र की जरूरत होती है, वे सब किसी-न-किसी रूप में वहां मृग-मरीचिका की तरह नदारद है।
पाकिस्तान भारत में ही नहीं, बल्कि पडौसी राष्ट्रों में भारतीयों एवं हिन्दुओं पर हमले करने के षड़यंत्र करता रहा है। हाल में बांग्लादेश में हिंदुओं पर जो भीषण हमले हुए, उनके पीछे भी पाकिस्तान का हाथ है। बांग्लादेश के गृहमंत्री ने इन हमलों के लिए अपने यहां के उन कट्टरपंथी संगठनों को दोषी ठहराया है, जिनका संबंध पाकिस्तान से है। निःसंदेह बांग्लादेश पाकिस्तान की ओर संकेत कर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता, उसे हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाने वालों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करनी होगी। इस समय भारत को पाकिस्तान पर नए सिरे से अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने के लिए सक्रिय होना चाहिए, क्योंकि एक तो उसकी कठपुतली माने जाने वाले अधिकांश आतंकी अफगानिस्तान में काबिज हो गए हैं और दूसरे यह बात सामने आई है कि भारत को इसके लिए बांग्लादेश पर दबाव बनाने के साथ यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान उसके लिए और बड़ा सिरदर्द बन रहा है। वह यदि अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भारतीय हितों के खिलाफ काम करने के साथ कश्मीर में आतंकवाद को नए सिरे से हवा दे रहा है तो इसका अर्थ है कि भारत को उसके विरुद्ध अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा।
विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि पाकिस्तान दुनिया के उन दस देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिनके ऊपर सबसे ज्यादा विदेशी कर्ज है। इसी बीच विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक ने अब अपना लोन कार्यक्रम रद्द कर दिया है, जिससे अब  पाकिस्तान के लिए कर्ज जुटाना भारी पड़ रहा है। इसी वजह से अब पाकिस्तान के लिए आईएमएफ से किसी भी तरह 6 अरब डालर का कर्ज जुटाना ही होगा। आईएमएफ पाकिस्तान पर कड़ी शर्तें लाद रहा है। इसी बीच आशंकाएं जताई जा रही हैं कि क्रेडिट रेटिंग एजैंसियां पाकिस्तान की रेटिंग और ज्यादा गिरा सकती है, जिससे उसके लिए इंटरनेशनल ब्रांड जारी करके पैसा जुटाना और ज्यादा महंगा हो सकता है। ऐसी स्थिति में अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को करोड़ों की मदद का ऐलान पाकिस्तान के लोगों को नागवार गुजर रहा है। ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान का घरौंदा खंड़ों में बंटा हुआ है। भारत विरोधी मुहिम के आवेश एवं नासमझी में पाकिस्तान के शासक सीधी से ज्यादा उल्टी चाल चलने के आदी हो गये हैं। पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा आतंकी गतिविधियों को संचालित करने में खर्च होता है। इस तरह के शोध भी हुए है जिनमें यह कहा गया है कि विदेशों से लिये गये कर्ज या अनुदान का आधा से अधिक हिस्सा पाकिस्तान हथियारों की खरीददारी और भारत विरोधी गतिविधियों में खर्च करता है। आखिर क्या कारण है कि पाकिस्तान की राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में भारत विरोधी तेवर ज्यादा उग्र हो जाते हैं?
पाकिस्तान तो 72 वर्षों के अंतराल में यह तक नहीं समझ पाया कि एक आदर्श शासन-व्यवस्था की क्या जरूरतें होगी है?  वैध शासन किसे कहा जाये? तानाशाहों की बनावटी जम्हूरियत को या लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर शातिर भेड़िये की तरह दुबक के बैठी सैनिक अफसरशाही को। सैनिक तानाशाही एवं निर्वाचित सरकारों के बीच गुणात्मक अंतर बहुत ही क्षीण रहा है। एक वैध राष्ट्र-व्यवस्था अपने यहां कैसे कायम करें और खुद को लोकतंत्र विरोधी ताकतों के चंगुल में जाने से कैसे बचाये, यह वर्तमान पाकिस्तान की बड़ी जरूरत है। पाकिस्तान प्रकृति सम्पन्न राष्ट्र है, उसके भीतर पर्याप्त खनिज सम्पदा है, तेल की संभावनाएं भी है, उन्नत खेती की वहां के कृषि क्षेत्र में व्यापक संभावनायें हैं, अगर इन चीजों को आगे बढ़ाया जाये तो न सिर्फ विदेशी कर्ज को चुकाने की सामर्थ्य पैदा होगी, बल्कि आर्थिक रूप से एक मजबूत राष्ट्र बनकर उभर सकता है, अन्यथा आतंकवाद को पोषित करने के चक्कर में वह बद से बदतर स्थिति में पहुंचता रहेगा, कहीं टूट कर बिखर न जाये। कश्मीर का सपना देखना तो उसे बन्द करना ही होगा, अब भारत अपने कश्मीर की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है।

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