’महल‘, ’मुग़ल-ए-आज़म‘ और ’कालापानी‘ ख्यातिप्राप्त भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री स्वर्गता मधुबाला का मुम्बई-स्थित पूर्व वासस्थान भूतों का डेरा बन गया है और उस स्थल पर कोई भी व्यक्ति रहने को तैयार नहीं, यह बात शुरू में भले ही आपको सर्वथा आश्चर्यजनक लगे लेकिन उसके तथ्य से इंकार कर पाना किसी के लिये भी संभव नहीं हो पा रहा है.
मधुबाला का देहावसान आज से लगभग बीस वर्ष पहले हुआ था. गायक-अभिनेता किशोरकुमार के साथ विवाह करने के बाद भी बांद्रा उपनगर में स्थित पाली हिल के अरेबियन विला नामक अपने वासस्थान में ही अधिकतर वह रहा करती थी, और वहीं दिल में सूराख़ हो जाने के कारण उसका देहांत हुआ था. मृत्यु के कुछ ही क्षणों पहले उसने कहा था कि वह पुनः भारत में ही जन्म लेना चाहती है, और जन्म लेकर अभिनय क्षेत्र में ही बने रहने की उसकी उत्कट इच्छा है.
’मुग़ल-ए-आज़म‘ मधुबाला की अंतिम सफल फ़िल्म थी. अपनी घातक बीमारी के कारण बाद में वह अभिनय करने में समर्थ नहीं रह पायी और उसी के सपनो में वह झूलती रह गयी. किशोरकुमार स्वयं यह नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नी फ़िल्मों में अभिनय ज़ारी रक्खे, जिसका बहुत विपरीत प्रभाव मधुबाला पर पड़ा था. फ़िल्मी दुनिया को किसी भी कीमत पर छोड़ पाना उसके लिये न सुखद था, न सहज-संभव.
अरेबियन विला में उन दिनों मधुबाला के पिता अताउल्ला खां और उसकी छोटी बहन चंचल रहती थी. मां की मृत्यु बहुत पहले हो चुकी थी और परिवार का सारा व्यय मधुबाला के ही ज़िम्मे था. इसीलिये किशोरकुमार के साथ उसके विवाह का विरोध भी उसके पिता ने किया था.
मधुबाला की मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद अताउल्ला खां भी ख़ुदा को प्यारे हो गये, और एक फ़िल्म निर्देशक के साथ विवाह कर चंचल भी अरेबियन विला छोड़ कर अपने पिया के धर चली गयी. तब से काफ़ी दिनों तक वह घर पूरी तरह वीरान पड़ा रहा . अरेबियन विला के पास-पड़ोस में रहने वाले लोगों का कहना था कि उन दिनों वहां हर रात रोने, गाने और लड़ने-भिड़ने की आवाज़ें सुनायी पड़ती थीं. इन आवाज़ों में मुख्य स्वर स्वयं मधुबाला का रहता था. कुछ लोगों ने उन आवाज़ों को टेप भी किया था, और ध्वन्यांकित आवाज़ के साथ मधुबाला की आवाज़ की आश्चर्यजनक एकरूपता थी.
लगभग एक-डेढ़ दशक पूर्व फिल्मिस्तान के सर्वेसर्वा सेठ तोलाराम जालान ने मधुबाला के उत्तराधिकारियों से वह घर ख़रीद लिया था. उसकी उन्हों ने अपेक्षित मरम्मत और रंगाई-सफ़ाई भी की, लेकिन उसके बाद भी कोई वहां रहने के लिये तैयार नहीं हो पाया. स्वयं जालान के कुछ निकट संबंधी एक दिन जब वहां रहने गये तो उनको इतने भयानक सपने आये कि रात में ही वह जगह छोड़ कर उन्हें अपने घर वापस लौट आना पड़ा.
श्री जालान ने उस स्थल पर एक बहुमंज़लीय इमारत बनवाने का प्रयत्न भी किया, लेकिन उसके लिये भी उनको कोई ग्राहक नहीं मिल सका. उसके बिल्डरों का भी यही कहना था कि स्वयं मधुबाला वहां भूत बन कर रहती है और उसे छेड़ना अपनी मौत को बुलाने के बराबर है. उस स्थल के आसपास रहने वालों का अब भी यही कहना है कि रात-बिरात अब भी वहां उन गानों की आवाजें सुनायी पड़ती है जो स्वयं मधुबाला परदे पर गा चुकी है. इन गानों में ’महल‘ का एक गाना प्रमुख है.
इसके पूर्व इस तरह के समाचार सिर्फ़ फतेहपुर-सीकरी से मिले थे. वहां रहने वाले लोगों के अनुसार आजकल भी वहां हर रात तानसेन के गाने सुनायी पड़ते हैं और घंुघरूओं की ध्वनि के साथ नृत्य के पदचाप कानों में पड़ते हैं. भारतीय पर्यटन विभाग द्वारा विदेशों में फ़तेहपुर-सीकरी का जो प्रचार किया जाता है उसमें भी यही कह कर पर्यटकों को आकृष्ट करने की चेष्टा की जाती है कि वहां पहुंच कर उनको जीवित भूत देखने को मिल सकेंगे.
मधुबाला के घर का स्थल भी इन दिनों पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है. प्रत्येक रात वहां काफ़ी भीड़ जमा हो जाती है, हालांकि बहुत कम लोगों को अभी तक मधुबाला की प्रेतात्मा का सान्निध्य मिल पाया है.
मधुबाला के प्रेत का सानिध्य किसी को मिलेगा भी नहीं,क्योंकि वहां जैसे जैसे भीड़ का इजाफा होता जाएगा,भूत प्रेत की कहानी को दम देने वाले वहां से दूर हटते जायेंगे.