कश्मीरी पंडितों की वापसी उनका हक़ है, भीख नहीं!

kp62000 कश्मीरी पंडित परिवार हर बार राज्य में सरकार बदलने पर यह उम्मीद नये सिरे से लगाते हैं कि उनकी अपने घर सुरक्षित वापसी इस बार ज़रूर होगी लेकिन नयी सरकार के शपथ लेने के बाद हर बार खूब चर्चा इस मुद्दे पर होकर बात आई गयी हो जाती है। इस बार चूंकि राज्य में जो गठबंधन सरकार बनी है उसमें पहली बार भाजपा की भागीदारी भी है और साथ ही भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में भी मौजूद है जिससे कश्मीरी पंडितों को इस बार सरकार से पहले से अधिक आशा इस बात की होना स्वाभाविक ही है कि इस बार उनका मामला ज़ोरशोर से चर्चा से आगे बढ़कर अमल में आयेगा उचित ही लगता है। लगभग ढाई दशक से कश्मीरी पंडित बेघर होकर दड़बेनुमा उन राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं जो एक तरह से यातना शिविर अधिक नज़र आते हैं।
सवाल यह है कि कोई अपना घर आंगन कारोबार और मातृभूमि छोड़कर कब तक उन कैम्पों में ज़िंदगी गुज़ार सकता है जिनमें तकलीफ़ों का अंबार लगा है। जब कोई इंसान अपना पुशतैनी घर श्रध्दास्थल और यादें छोड़कर किसी डर या मजबूरी में पलायन करता है तो उसके दिल पर कितना बोझ होता है यह कोई और आदमी ठीक से अंदाज़ नहीं लगा सकता। घाटी की वो सुंदरता वो आब ओ हवा वो खुशनुमा माहौल जब बार बार टीन के तपते कैंपों में गर्मी और बरसात में याद आता है तो दिल तड़प जाता है। एक मुहाजिर का दर्द और मन की पीड़ा व व्यथा हर कोई नहीं समझ सकता। मुझे तो इस तरह की कल्पना करने से ही तकलीफ और गुस्से व ग़म के सैलाब का अहसान सताने लगता है और जब इस दुख और परेशानी को कोई दो दशके से अधिक से जी रहा हो झेल रहा हो और भुगत रहा हो उसका क्या हाल होगा
राज्य में चुनाव से पहले हर पार्टी यह दावा और वादा करती रही है कि कश्मीर को मज़हब के नाम पर नहीं बांटा जाना चाहिये और कश्मीर हिंदू पंडितों का भी उतना ही है जितना कि घाटी के मुसलमानों काए लेकिन वास्तविकता यह है कि यह केवल चुनावी नारा और घोषणा पत्रों का दिखावटी आश्वासन ही अधिक नज़र आता है। वैसे तो उस मुफती सरकार से कश्मीरी पंडितों के वापसी की आशा करना रेगिस्तान में पानी तलाश करना ही माना जायेगा जिसके मुख्यमंत्री ने शपथ लेते ही राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय पाकिस्तान और अलगाववादियों को देने में ज़रा भी शर्म या हिचक महसूस नहीं की थी।
अगर मुफ़ती इसके साथ साथ भारतीय सेना कश्मीरी जनता और चुनाव आयोग को भी राज्य में लोकतंत्र को निष्पक्ष चुनाव के लिये मज़बूत करने का सिला देते तो भी बात किसी सीमा तक गले से उतर सकती थी लेकिन अब वे कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में प्राथमिकता के आधार पर शामिल कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी पर अगर मगर कर रहे हैं। यह अजीब और दोगली बात है कि एक तरफ़ तो कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित घर वापसी को लेकर सब पक्ष सहमत नज़र आते हैं लेकिन जब वास्तव में इस काम को अंजाम देने की योजना पर अमल की बात आती है तो अलगाववादी और विपक्ष इसके विरोध में तरह तरह के बहाने बनाने लगते हैं। अब विवाद कश्मीरी पंडितों के लिये राज्य में अलग टाउनशिप बनाने को लेकर उठा है।
जो लोग उनके लिये अलग टाउनशिप की तुलना इस्राईल में यहूदी बस्तियों से कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिये कि इस्राईल जिन फिलिस्तीन बस्तियों में अपनी यहूदी आबादी को जबरन कब्ज़ा करने की नीयत से एक सुनियोजित साज़िश के तहत पूरी दुनिया को ठेगा दिखाकर बसा रहा है क्या कश्मीरी पंडितों पर वह मिसाल लागू करने का कोई समान आधार है कश्मीरी पंडित कश्मीर के मूल निवासी हैं और उनको पाकिस्तान और कश्मीर के अलगाववादी तत्वों ने घाटी को मुस्लिम आबादी तक सीमित करने के लिये बाकायदा आतंकी अभियान चलाकर वहां से बेदख़ल किया है।
अगर ऐसा करने वालों को यह खुशफ़हमी है कि वे अपनी ताक़त के बल पर ऐसा करने में सफल रहे हैं और अब वे नहीं चाहेंगे तो कश्मीरी पंडित घाटी में अपने घर कभी वापस नहीं लौट सकेंगे तो उनको सरकार भी सेना की तैनाती बढ़ाकर कश्मीरी पंडितों की उनके पुराने घरों या संभव न हो तो नई टाउनशिप में वापसी कराकर यह अहसास करा सकती है कि भारत सरकार और कश्मीर सरकार अलगाववादियों आतंकवादियों और उनके आक़ा पाकिस्तान को जब चाहे तब उनकी औक़ात और हैसियत बता सकती है। अगर इस योजना पर अमल में मुफ़ती सरकार बाधा डालती है या अपने वायदे से मुकरती है तो भाजपा को चाहिये कि वह गठबंधन सरकार गिराकर और राज्यपाल शासन लगाकर सेना की मदद से हर कीमत पर कश्मीरी पंडितों की घाटी मे समय रहते वापसी कराये क्योंकि पंडितों ने कभी कानून हाथ में नहीं लिया है।
भाजपा को यह भी याद रखना होगा कि अगर वह कश्मीरी पंडितों की घाटी में सुरक्षित वापसी जैसे अहम इरादे को भी पूरा करने से गुरेज़ करती है तो उसको सत्ता का भूखा माना जायेगा। पीडीपी जैसी अलगावादी और उग्रवादी समर्थक पार्टी के साथ गठबंधन करने को लेकर भाजपा की पहले ही काफी फ़ज़ीहत हो चुकी है। अब भाजपा के पास यह बचाव का हथियार भी नहीं है कि कश्मीर में अपना एजेंडा लागू करने में वह केंद्र में अपनी सरकार न होने की वजह से असहाय है।
धारा 370 हटाने की बात एक बार फिर ठंडे बस्ते में डालने से भाजपा की हालत सत्ता और विपक्ष में अलग अलग बात बोलने से पहले ही चाल चरित्र और चेहरे पर उंगली उठने से पतली हो रही है अब कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी पर भाजपा को किसी कीमत पर नहीं झुकना चाहिये वर्ना हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत उस पर लागू होने में देर नहीं लगेगी क्योंकि कालाधन वापस लाने और भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर वह पहले ही दबाव में है।
कैसे आसमां में सुराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

–.इक़बाल हिंदुस्तानी

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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  1. जिस प्रकार आम पाकिस्तानी आतंकवादी वातावरण से डरा हुआ है उसी प्रकार कश्मीर में जनता डरी हुई है. कश्मीर के नेता आतंकवदियों से डरते हैं. फारूक अब्दुल्ला का तो रिकॉर्ड देखिये जब वे सत्ता में थे तो कितनी बार इंग्लैंड जाये? पाकिस्तान के एक मामूली गायक ने संगीत मात्र इसलिए छोड़ दिया की धर्म में इसकी इज़ाज़त नहीं जब की अभी अभी काशी के संकट मोचन मंदीर में प्रसिद्द ग़ज़ल गायक गुलाम अली साहेब ने ग़ज़ल गाई थी. असल में दुनिया के महान धर्म इस्लाम को कुछ लोगों ने अपने हिसाब से परिभाषित करने की ठान रखी है. एक स्थान है इराक या अफगानिस्तान के आस्पास.उसका नाम है ”बामणियां”इस स्थान पर किसी समय पर ब्राह्मण रहा करते थे ,इस्लाम के नाम पर जो नेता शहीद हुए थे उनके शव सुरक्षा और सम्मान पूर्वक रहें इसलिए उन ब्राह्मणो ने रात भर विरोधी सेना का मुकाबला किया. और शवों को हाथ नहीं लगाने दिया, उन्ही ब्राह्मणो को ”हुसैनी”ब्रह्मण कहा जाता है. और इनके यहाँ दस दिन तक देवघर में ”मोहर्रम”की प्रतिकृति पूजार्थ राखी जाती है. काशमीरी पंडितों की समस्या विद्वान मुस्लिम धर्मोपदेशकों के द्वारा और नहीं तो सेना के द्वारा ही होगी मुफ़्ती साहेब और मोदी साहेब से नही. सनातन और इस्लाम दुनिया के महान धर्म हैं.

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