भारत के रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने अपना दूसरा रेल बजट प्रस्तुत कर दिया है। इस बजट में नई सुविधाओं व क्षमता वृद्घि से यातायात और आय बढ़ाने पर बल दिया गया है। रेलमंत्री ने इस बात का ध्यान रखा है कि नये रेल बजट से रेलवे के पुनर्गठन, कार्यकुशलता और अनुसंधान को बढ़ावा मिले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने रेलमंत्री के बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि रेलवे के लिए विचारशील बजट प्रस्तुत करने के लिए सुरेश प्रभु को बधाई। इसमें गरीबों की गरिमा, महिलाओं का गौरव, युवाओं का उत्साह एवं मध्यम वर्ग की मुस्कान को बढ़ाने का प्रयास किया गया है।
इस बजट में यात्रियों को सूचना मिलने, उनका मन पसंद स्वादिष्ट भोजन मिलने और प्लेटफार्म पर दवाओं के मिलने की सुविधा प्रदान करने के अतिरिक्त जालसाजी रोकने के लिए टिकट पर बार कोड की व्यवस्था करके बेटिकट लोगों को घुसने न देने का भी ध्यान रखा गया है। ये सारी व्यवस्थाएं रेलवे के लिए बहुत ही आवश्यक थीं। जिन्हें देखकर लगता है कि रेलमंत्री ने बड़ी बारीकी से लोगों की समस्याओं का ध्यान रखा है।
हमारे देश में जितनी लोकल टे्रनें देहात व कस्बों के मध्य से निकलकर आती हैं, उनमें बिना टिकट यात्रा करने वालों की संख्या सबसे अधिक होती है। उनके सामने पुलिस या रेलवे प्रशासन मौन रहने में ही भलाई समझता है। क्योंकि बेटिकट लोगों की संख्या इतनी अधिक होती है कि यदि एकको आपने पकडऩे का प्रयास किया तो सौ उसके लिए शोर मचाने या रेलवे पुलिस प्रशासन से असभ्यता करने पर उतारू हो जाते हैं। इसलिए रेलवे प्रशासन उनके सामने असहाय होकर रह जाता है, और हर कर्मचारी या अधिकारी अपनी जान छुड़ाने के लिए ‘सब चलता है’ कहकर आगे बढ़ जाता है। हमारा अपने रेलमंत्री से विनम्र अनुरोध है कि रेलवे के हर स्टेशन पर ऐसी व्यवस्था तत्काल की जाए जिससे बिना टिकट यात्रा असंभव हो जाए। इससे भी बड़ी मात्रा में रेलवे को राजस्व की प्राप्ति होने लगेगी। इसके अतिरिक्त स्लीपर यात्रियों की और सैकंड क्लास ए.सी. यात्रियों की शिकायत अक्सर रहती है कि उनके कोच में जनरल डिब्बों की सवारियां आ-आकर भर जाती हैं, जो दूर की यात्रा कर रहे यात्रियों के साथ असभ्यता का व्यवहार करते हैं और उनकी सीटों पर बलपूर्वक बैठ जाते हैं। रेलवे के कर्मी या अधिकारी वहां भी कुछ नही कर पाते हैं। इसलिए आवश्यक हो गया है कि रेलवे को और अधिक सुरक्षा बल दिये जाएं। हर कोच में ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे कि कोई भी यात्री उस कोच में तभी बैठे जब उसके पास उसमें प्रवेश करने हेतु टिकट हो।
हमारा देश कृषि प्रधान देश है। यहां की अधिकांश जनता गांव देहात में रहती है। सरकार की यह नीति रहती है कि गांव-देहात के और गरीब लोगों के लिए यात्रा सस्ती रहे। यह एक अच्छी बात है। परंतु हमारा मानना है कि यात्रा को चाहे आप थोड़ा महंगा कर लें, पर यात्री सुविधा पर ध्यान दें। गरीब लोगों के लिए रेलवे में कोई सुविधा नही है। रेल लाइनों के बिछाने और रेलवे नैटवर्क को और फैलाने की ओर भी ध्यान दिया जाना अपेक्षित है। हमारे सुदूर देहाती आंचलों में आज भी ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिन्हें रेल के लिए 100-50 किलोमीटर या इससे भी अधिक दूर तक चलना पड़ता है। इसे हम ऐसा कर सकते हैं कि हर गांव कस्बे से अधिक से अधिक 30 किलोमीटर दूरी पर रेलवे स्टेशन उपलब्ध हो जाएं। इससे सडक़ों का बोझ हल्का होगा। सडक़ दुर्घटनाएं कम होंगी, पेट्रोल डीजल की कम खपत होगी, जिससे पर्यावरण-प्रदूषण के स्तर में भी गिरावट आएगी।
हमारे देश में सरकारों की ओर से चाहे गरीबों की बात की जाती रहे, राजनीतिज्ञ उनका नाम ले-लेकर चाहे कितनी ही नीतियां बनायें, पर सच यह है कि राजनीति व्यावहारिक रूप में अमीरों की दासी बनकर काम करती है। अभी आप महानगरों को देखें, जहां मेट्रो का जाल फैलाया जा रहा है। नित्यप्रति मेट्रो विस्तार ले रही है। उससे किसको लाभ होगा? निश्चित रूप से अमीरों को। हम मेट्रो के विस्तार के विरूद्घ नही हैं, समय की आवश्यकता है, जिसे समझकर उसका विस्तार किया जाना अपेक्षित है। पर हम इतना अवश्य कहना चाहेंगे कि जिस प्रकार मेट्रो का नित्य विस्तार किया जा रहा है, उसी प्रकार साधारण रेल का भी नित्य विस्तार किये जाने की योजना पर कार्य किया जाए। हमारे रेलमंत्री एक बेदाग और चिंतनशील राजनीतिज्ञ हैं, उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह ‘परंपरागत’ चीजों को त्यागकर कुछ नया और ‘लीक’ से हटकर देने का प्रयास करेंगे। देश की क्षमताओं और विशाल जनशक्ति के बल पर यदि देश में रोजाना 50 किलोमीटर रेलवे के विस्तार की योजना भी रखी जाए तो बहुत शीघ्र हमारे देश की यातायात की स्थिति में सुधार आ सकता है। इसके लिए कुछ अतिरिक्त राजस्व एकत्र करने के लिए यात्रा टिकट के मूल्य में वृद्घि की जा सकती है। पहले यह देखा जाए कि 50 किलोमीटर प्रतिदिन रेलवे के विस्तार योजना पर कितना खर्च आता है, फिर उसे हर यात्री पर अपेक्षानुसार डाल दिया जाए। हमें ध्यान रखना चाहिए कि देश सबका है। इसके आर्थिक संसाधनों पर अधिकार भी सबका है, तो इसके विकास में गरीब-अमीर आदि सभी की सहभागिता भी होनी अपेक्षित है। सरकार तो विकास कराने के लिए मात्र एक माध्यम है। इसलिए रेलवे के विस्तार में जनसहयोग अपेक्षित है।
कुछ लोगों ने रेलवे बजट को कुछ प्रदेशों में इस वर्ष होने वाले चुनावों के दृष्टिगत अपेक्षाकृत उदारता के साथ प्रस्तुत करने का आरोप रेलमंत्री पर लगाया है। पर यह बात गलत है। इसे किसी भी प्रकार से ‘चुनावी बजट’ नही कहा जा सकता। इसमें रेलमंत्री ने हरसंभव यह दिखाने का प्रयास किया है कि उन्हें देश के सभी वर्गों की चिंता है। एक संवेदनशील मंत्री से ऐसी ही अपेक्षा की भी जानी चाहिए। वैसे सुरेश प्रभु सुधारों के समर्थक रेलमंत्री हैं और जो व्यक्ति सुधारों का समर्थक होता है वह अधिक से अधिक चिंतनशील होता है, वह जनसमस्याओं पर गहराई से सोचता है, विचारता है और कार्य करता है। पर फिर भी उन्हें इस बात पर ध्यान देना होगा कि रेलवे ने पिछले बजट में किराये और मालभाड़े से जितनी कमाई का आंकलन किया था उसमें 8.50-प्रतिशत की कमी क्यों रह गयी? क्योंकि रेलवे के प्रति लोगों का रूझान कम हो रहा है, और लोग रेल यात्रा को अपनी प्राथमिकता की सूची से क्यों हटाते जा रहे हैं? डी.आर.एफ. का आवंटन 7900 से 5500 करोड़ पर आ गया है, जिसे अच्छा नही कहा जा सकता। पर फिर भी सुरेश प्रभु ने निवेश को सवा लाख करोड़ तक पहुंचाने मेें सफलता प्राप्त की है। रेलवे एक लाख 71 हजार करोड़ रूपये व्यय करने जा रहा है। रेलवे विस्तार की ओर भी सुरेश प्रभु का ध्यान गया है और उन्होंने अकेले उत्तर प्रदेश में 2200 किलोमीटर रेल लाइन बिछाने सहित 1508 किलोमीटर के 17 नये रेलमार्गों के लिए सर्वे कराने की भी घोषणा की है। इस प्रकार रेलमंत्री का यह बजट खास उम्मीदें जगाने वाला है। अब उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी योजनाओं पर शीघ्र कार्यवाही करेंगे और लोगों की यात्रा को आरामदायक बनाएंगे।