जाते जाते कुछ कह गए सुशांत, सुशांत होकर करा अपने को शान्त। था तनाव में करी क्यो खुदकशी ? मन में नहीं थी शायद कोई खुशी।।
दुख है हमे तुम अपने शौक पूरे न कर पाए। अपनी आखरी मंजिल तक न पहुंच पाए।। सूना सूना सा लगता है ये सारा फिल्मी संसार। रो रहे सभी आज तुम्हारे फिल्मी नाते रिश्तेदार ।।
अल्प अवस्था में क्यो तुमने मृत्यु से नाता जोड़ा ? अभी तो बहुत करना था क्यो फिल्मों से नाता तोड़ा ? एक चमकता सितारा क्यो गगन से लुप्त हो गया । फिल्मी जीवन से इतनी जल्दी क्यों मुक्त हो गया।।
तुम थे पक्के राजपूत और मां के सच्चे सपूत। करनी पड़ी क्यो तुमको ऐसी कच्ची करतूत ? लगाया क्यो मौत को गले ऐसे तुमने ? बहुत कार्य करने थे फिल्म जगत में तुमने।।
प्रश्नों पर प्रश्न उलझते अब जा रहे कोई भी प्रश्न न सुलझते जा रहे। जानना चाहता यह सब कुछ ये जमाना, शायद आधी हकीकत है आधा फ़साना।
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था|
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