“अविद्या से रहित तथा विद्यायुक्त एकमात्र ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश”

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मनमोहन कुमार आर्य

महाभारत काल के बाद से पूरे विश्व के अध्यात्म एवं सामाजिक जगत में घोर अविद्या फैली हुई है। मनुष्य को अपनी आत्मा सहित ईश्वर के सत्यस्वरूप का ज्ञान नहीं है। उसे अपने परिवार व समाज के प्रति भी अपने कर्तव्यों का ज्ञान नहीं है और न उसे यह पता है किससे क्या व कैसा व्यवहार करना है। अविद्या व इससे उत्पन्न काम, क्रोध व लोभ आदि के कारण वह जो अनुचित आचरण व व्यवहार आदि करता है उसके दुष्परिणामों का भी उसे ज्ञान नहीं है।  इन सबका कारण अविद्या है। इसे दूर करने का सरल उपाय सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन व उससे प्राप्त होने वाला ज्ञान है। सत्यार्थप्रकाश के अध्ययन से मनुष्य की अविद्या व इससे उत्पन्न अज्ञान, अन्धविश्वास व कुरीतियां आदि दूर होकर ईश्वर सहित आत्मा के स्वरूप का ज्ञान होता है। इसके साथ ही मनुष्यों को अपने जीवन के उद्देश्य व उसकी प्राप्ति के उपायों का ज्ञान भी सत्यार्थप्रकाश कराता है। सभी मत-मतान्तर अविद्या पर आधारित हैं। उनकी अविद्या का दिग्दर्शन भी सत्यार्थप्रकाश के अध्ययन से प्राप्त होता है। अतः सत्यार्थ प्रकाश के विश्व के जन-जन में प्रचार किये जाने की महती आवश्यकता है। बिना इसके मत-मतान्तरों सहित आध्यात्मिक व सामाजिक जगत की अविद्या दूर नहीं हो सकती है।

 

संसार में ज्ञान से महत्वपूर्ण पदार्थ अन्य कोई नहीं है। ज्ञानी मनुष्य सबका आदरणीय व पूज्य होता है और अज्ञानी मनुष्यों की सभ्य समाज में कोई महत्ता नहीं होती। विद्वान सर्वत्र पूज्यते की कहावत् सर्वत्र लागू होती है और आज यह पहले से भी अधिक प्रासंगिक है। ज्ञानहीन मनुष्य एक श्रमिक के कार्य योग्य ही समझा जाता है। यद्यपि शिक्षा मानव का मूलभूत अधिकार है परन्तु इस देश में शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है। सरकारीतन्त्र शिक्षा की व्यवस्था करने में असमर्थ है। वैसे भी सरकारी स्कूल में लोग अपने बच्चों को पढ़ाना पसन्द नहीं करते। हमने देखा है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के अपने बच्चे निजी स्कूलों में जाते हैं। निर्बल व निर्धन लोग अपनी सन्तानों को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के निजी या सरकारी स्कूलों में नहीं भेज सकते। शिक्षा से भी पहले मनुष्य को अपनी क्षुधा शान्त करने के लिए भोजन तथा शरीर ढकने के लिये वस्त्र चाहिये। हमारे देश के निर्धन व निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों को भरपेट स्वास्थ्यप्रद भोजन व वस्त्र इन दोनों को प्राप्त करने में सारा जीवन लग जाता है। देश के करोड़ों लोगों अथवा लगभग देश की आधी जनसंख्या को दो समय का स्वास्थ्यप्रद भोजन सुलभ नहीं है। अतः स्कूली शिक्षा प्राप्त करना इन लोगों के वश में नहीं है। इनको ज्ञानी बनाने का एक ही उपाय है और वह यह है कि इन्हे देवनागरी लिपि के अक्षरों, शब्दों व वाक्यों का ज्ञान दे दिया जाये जिससे यह हिन्दी पढ़ सकें। इसके बाद यह घर पर या आर्यसमाज जाकर सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन कर सकते हैं और विद्वान हो सकते हैं। सत्यार्थप्रकाश पढ़ा हुआ व्यक्ति पुराण पढ़े व्यक्ति से ज्ञान की दृष्टि से कहीं अधिक बुद्धिमान व समझदार होता है एवं उसका जीवन सफल होता है। इस ज्ञान को प्राप्त करने के बाद वह दूसरे लोगों द्वारा शोषण से बच जाता है। वह अपना व्यवसाय आदि भी कर सकता है और उसकी भावी पीढ़ियों का सुधार होना भी निश्चित हो जाता है। अतः सत्यार्थप्रकाश का प्रचार करना आर्यसमाज का तो मुख्य कर्तव्य है ही, इसके साथ ही सभी सुधीजनों को भी सत्यार्थप्रकाश का प्रचार व प्रसार करना चाहिये। आज दिल्ली में आयोजित अन्तराष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्वामी रामदेव जी ने अपने व्याख्यान में सत्यार्थप्रकाश की भूरि भूरि प्रशंसा की और कहा कि वह आगामी दो वर्षों में सत्यार्थ प्रकाश का विश्व की सभी भाषाओं में अनुवाद का काम पूरा करके इसका प्रकाशन भी करायेंगे और विश्व के सभी देशों के पुस्तकालयों में उन-उन देशों की भाषाओं का सत्यार्थप्रकाश उनके सभी पुस्तकालयों में पहुंचायेंगे जो मत-मतान्तरों की अविद्या को दूर करने में मील का पत्थर सिद्ध होगा।

 

सत्यार्थप्रकाश को पढ़ने पर मनुष्य के सभी मूल-भूत प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है जो मत-मतान्तरों के ग्रन्थों को पढ़ने से नहीं मिलता अपितु मत-मतान्तरों से मनुष्य अन्धविश्वासों में फंस कर अपना जीवन निरर्थक करता है। मैं कौन हूं, ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण, ईश्वर का स्वरूप, ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव, ईश्वर के कार्य, ईश्वरीय ज्ञान, ईश्वर की प्राप्ति के उपाय और साधन, ईश्वर की उपासना का सत्य स्वरूप व विधि, मनुष्य आदि प्राणियों के जन्म व मरण का कारण व इससे होने वाले दुःखों से बचने के उपाय, मोक्ष का स्वरूप, महत्व व इसकी प्राप्ति के उपाय व साधन आदि सभी प्रकार के प्रश्नों का ठीक ठीक उत्तर सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन करने पर अध्येता को मिल जाता है। सत्यार्थप्रकाश की एक विशेषता हमें यह भी लगती है कि यह ग्रन्थ हिन्दी में है जिसे आजकल पांचवी कक्षा उत्तीर्ण व्यक्ति भी पढ़ व समझ सकता है। सत्यार्थप्रकाश में वेद, दर्शन, उपनिषद, मनुस्मृति, गीता आदि के भी प्रमाण दिये गये हैं। सत्यार्थप्रकाश पढ़े हुए व्यक्ति पर सामाजिक अन्धविश्वासों का प्रभाव नहीं होता। वह भूत-प्रेत, फलित ज्योतिष, मृतक श्राद्ध, अवतारवाद आदि के मिथ्यात्व को जानकर इनसे होने वाली हानियों से भी बच जाता है। उसे किसी व्रत व उपवास, जैसा हमारे पौराणिक बन्धु आदि रखते हैं, आवश्यकता ही अनुभव नहीं करती। सत्यार्थप्रकाश के ज्ञान से युक्त व्यक्ति की आत्मा की उन्नति होने से वह मरने के बाद परजन्म में अन्यों की तरह पशु-पक्षी आदि नीच योनियों में जन्म लेने से बच जाता है। ईश्वर व आत्मा का स्वरूप जानकर एवं ऋषि दयानन्द लिखित पंचमहायज्ञविधि पद्धति से सन्ध्योपासना करने से उसकी आत्मा के दोष दूर होकर वह सद्गुणों से युक्त होता है। अग्निहोत्र आदि करके वायु आदि की शुद्धि करके वह पुण्य व स्वर्ग प्राप्ति का पात्र बनता है। अतः सत्यार्थप्रकाश आध्यात्मिक एवं सामाजिक रोगों की सबसे सस्ती एवं कारगर महौषधि है जिससे इन रोगों को दूर करने में निश्चय ही पूर्ण सहायता प्राप्त होती है।

 

आज हम अपने कार्यालय में अपने एक मित्र के साथ भोजन कर रहे थे। हमारे साथ एक परिचित वरिष्ठ वैज्ञानिक महोदया भी बैठी थी। आध्यात्मिक एवं सामाजिक विषयों की छोटी सी चर्चा हुई। पुराणों का भी उल्लेख आया तो उन्होंने बताया कि मेरे परिवार में माता जी की मृत्यु होने पर गरुण पुराण का पाठ रखा गया था। उसमें बहुत सी अश्लील बातें उन्हें सुनने को मिली। इसकी उन पर यह प्रतिक्रिया हुई कि उन्होंने अपने पति व बच्चों को कहा कि उनकी मृत्यु होने पर गरुण पुराण का पाठ कदापि न करायें। हमें एक उच्च शिक्षित एवं वरिष्ठ पद पर पदासीन पौराणिक बहिन के यह विचार सुनकर आश्चर्य भी हुआ और प्रसन्नता भी हुई। उन्होंने जो कहा वह वास्तविकता है। पुराणों में अनेक अश्लील बातें हैं। हमने भी ब्रह्मवैवर्त्त पुराण पढ़ा तो उसमें भी इस तथ्य की पुष्टि हुई। पं. मनसा राम वैदिकतोप जी के दो प्रमुख ग्रन्थ हैं पौराणिक पोल प्रकाश एवं पौराणिक पोप पर वैदिक तोप। इन दोनों ग्रन्थों में पुराणों की अश्लील व मिथ्या बातों का दिग्दर्शन कराया गया है। इसके विपरीत सत्यार्थप्रकाश की सभी बातें ज्ञान व विज्ञान से युक्त होने के कारण अन्धविश्वास व कुरीतियों की निवारक एवं समाज से सभी प्रकार की बुराईयों को दूर करने में सर्वाधिक सहायक हैं।

 

सत्यार्थप्रकाश को पढ़ने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। अतः संसार के प्रत्येक व्यक्ति को सत्य ज्ञान से युक्त ईश्वर, जीवात्मा, प्रकृति के ज्ञान सहित मनुष्य जीवन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों का सत्य, यथार्थ उत्तर व समाधान सत्यार्थ प्रकाश से प्राप्त होता है। सभी मनुष्यों को सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन अवश्य ही करना चाहिये। इस ग्रन्थ को व्यक्ति जितनी बार पढ़ेगा, उसे उतना ही लाभ होगा। इसी के साथ इस चर्चा को विराम देते हैं।

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