अजीब है न लोकतंत्र का ई त्यौहार

0
294

अंकित कुंवर

लोकतंत्र का बरसों पुराना त्यौहार नजदीक आ रहा है। यह त्यौहार सियासत के गलियारे में शामिल होने के लिए है। एक मौका है जिसपर चौका लगाना सबकी चाहत। अब तो समझो हम का कहना चाह रहें हैं। ई त्यौहार का नामकरण सोच समझकर फिक्स हुआ है। ‘चुनाव’ नाम है इसका। इस नाम का प्रकोप देखो कि ई नाम सुनते ही कुछ खुश हो जाते हैं तो कुछ घोर चिंतित। इतना ही नहीं कई तो ऐसे हैं जो इस त्यौहार को लूट का संबोधन देते हैं। चुनाव वाला बरसों पुराना त्यौहार हर पांच साल बाद नये रूप में आ जाता है। ई त्यौहार के दो-तीन महीने पहले विजिटिंग और ग्रिटींग का डोर टू डोर कैंपेन चलता है, सिर्फ यही नहीं तेजी से प्रचार-प्रसार करने वाला सोशल मीडिया भी लोकतंत्र के इस त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाता है। काहे न मनाये..जब पैसा का प्रॉब्लम नहीं है तो सोशल मीडिया के पेज को स्पोनसर्ड करने में हमारे नेता जी का क्या जाता है? लोकतंत्र का त्यौहार हो और नारेबाजी न हो तो ई त्यौहार का मज़ा नहीं। रंग बिरंगे कागज पर नेताजी की मुस्कुराते हुए तस्वीर और हाथ जोड़कर नमस्ते कहना जनता को लुभाने का काम करती है। खासतौर पर आजकल चुनाव में रंग बिरंगे कागज लोकल प्रिंटिंग प्रेस से नहीं किसी नामी गिरामी प्रिंटिंग प्रेस से छपता है। एक बात और है जिसका ख्याल नेताजी और उनकी पार्टी बखूबी रखती है वो है- जनता को मस्का लगाना। अरे! हमारे नेताजी ने तो पीएचडी कर रखी है मस्का लगाने में। चुनाव में परचम लहराने का जो हथियार है। कौन भूलना चाहे ई हथियार को? जो भूला समझो उसका पत्ता कट गया। नोटिस कीजिएगा कि मस्का लगाने का कारगर तरीका है चुनाव के पहले वाला नेताजी का भाषण। बड़े-बड़े वादों वाला भाषण, जिसके न पूरे होने की उम्मीद है और न ही कोई गारंटी। विजय का परचम लहराना नेताजी को खूब भावे और विकास के नाम पर झूठमूठ का गीत गावे। 2019 के चुनावी त्यौहार के लिए फिर से नेताजी का भाषण, रंग-बिरंगे कागज़ पर नेताजी की फोटो, कागज़ के दूसरी तरफ़ वादों की लंबी लिस्ट और विकास का गीत गाना शुभारंभ हो चुका है। इस बार लोकतंत्र की क्लास में नेताजी और जनता दोनों की परीक्षा है। खासकर जनता लोकतंत्र के त्यौहार में सच्चे मन और सरकार के कामकाज को देखकर वोट दे तो कई सारे नेताजी की कुर्सी से छुट्टी तय है। क्या हो सकता है? कौन है जो ई चुनावी त्यौहार में विजयी होगा? क्या समझदार जनता झूठे वादे करने वाले नेताजी को फिर से आलिशान कुर्सी पर पांच साल तक बैठा देगी। का ई विपक्ष थोड़ा कमज़ोर है? ई सब सवाल-जवाब का अभी अनौपचारिक तौर पर मूल्यांकन फेसबुक और वाट्सअप कर रहे हैं। औपचारिक रिजल्ट आने तक सस्पेंस बरकरार है और जब आएगा तब आपको पता चल ही जाएगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here