राजनीति

आम आदमी पार्टी का भारतीय राजनीति में नया प्रयोग

-नरेन्द्र कुमार सिंह-arvind

अन्ना आन्दोलन के दिनों में अरविन्द केजरीवाल का नाम अचानक सुर्खियों में आया था । उस समय लगता था कि एक महत्वाकांक्षी युवा देश की सत्ता अपने हाथों मे लेने के लिए संघर्ष कर रहा है । जब वे अन्ना का पक्ष लेकर बोलते थे तो लगता था कोई व्यक्ति अधिनायक बनने की तैयारी कर
रहा है । आन्दोलन में मंच से और ख़ासकर केजरीवालों की ओर से जिस प्रकार की भाषा और हाव भाव का प्रदर्शन होता था, उससे अंदेशा होता था कि वर्तमान व्यवस्था को ध्वस्त करके अधिनायकवादी व्यवस्था के लिये जनमत तैयार किया जा रहा है ।  उस आंदोलन में अरविन्द केजरीवाल अपनी टीम को जनता का
स्वघोषित प्रतिनिधि बता रहे थे और अन्ना को संविधान से उपर स्थापित कर रहे थे । जिस प्रकार देश के संविधान , राजनैतिक व्यवस्था और राजनैतिक नेतृत्व को जन विरोधी बताया जा रहा था ,उसी से आभास होने लगा था कि अरविन्द केजरीवाल की निगाह कहीं और है । अरविन्द केजरीवाल के इस प्रयास को कांग्रेस की गिरती हुई साख से बल मिल रहा था । कांग्रेस ने अपने लम्बे शासनकाल में देश की राजनैतिक व्यवस्था, संविधानिक प्रावधानों और यहां तक कि लोकतांत्रिक प्रणाली की साख को कम किया था । नेताओं के भ्रष्ट आचारण और भाई भतीजावाद के कारण आम जनता का स्थापित व्यवस्था से ही विश्वास हटने लगा था । कांग्रेस के इस पाप से व्याप्त शून्य में से ही अरविन्द केजरीवाल का जन्म हुआ । सोनिया कांग्रेस के पास अपना कोई चरित्र बल बचा नहीं था । केवल महात्मा गाधी के नाम को बेचकर और पूर्वकाल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा विदेशी सत्ता के खिलाफ किये गये संघर्ष की हुण्डी के बलबूते सत्ता पर काबिज होकर कमा खा रही थी । अरविन्द केजरीवाल के लिए अपनी योजना को आगे बढाने के लिये यह बिल्कुल सही समय था ।
भारतीय जनता पार्टी की बात की जाये तो वह भी अपने लम्बे सफर में कहीं न कहीं जड़ता को प्राप्त होने की ओर जा रही है । एक ओर जड़ता दूसरी ओर नेतृत्व में सामूहिक निर्णय लेने की लोकतांत्रिक प्रणाली को दर किनार कर व्यक्तिगत पसन्द नापसन्द के आधार पर तथाकथित हाईकमांड की अवधारणा को स्थापित किया गया । जनाधार वाले नेताओं को लंगड़ी मार , मैनजमैंट से पार्टी को हांकने की नई शैली विकसित हुई । यही कारण था कि कांग्रेस ने कम साख होने के बावजूद 2009 का लोकसभा चुनाव जीतकर सरकार बना ली थी । एक प्रकार से राजनैतिक पटल पर देश की जनता के मन में निराशा थी । ऐसे में अरविन्द केजरीवाल ने बड़ी चालाकी से अन्ना के आन्दोलन से स्वयं को अलग कर एक राजनैतिक दल बना लिया था जिसका नाम रखा आम आदमी पार्टी । इसे संयोग ही कहना चाहिये की आम आदमी को चुनाव चिन्ह झाडू मिला , जिसका केजरीवाल ने भरपूर उपयोग किया । अरविन्द केजरीवाल दिनरात प्रयास करके दिल्ली के चुनाव में लोगों को समझाने लगे कि अन्य पार्टियों मे जो लोग चुनाव लङ रहे हैं वे नेता हैं और हम लोग आम आदमीं हैं । कांग्रेस जहां आम आदमीं से पहले ही दूर हो चुकी थी और बीजेपी कांग्रेस का प्रतिरूप बनती जा रही थी । वहीं आम आदमी पार्टी ने लोगों को एक विश्वास जगाया कि आम आदमी पार्टी आम लोगों की पार्टी है । यह एक बहुत ही क्रांतिकारी परिवर्तन था । लोगों को लगने लगा कि आम आदमी पार्टी उनकी पार्टी है । इसका कारण था कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता जनता के बीच में रहकर उनकी समस्याओं के समाधान का प्रयास कर रहे थे । एक ओर जहां कांग्रेस और बीजेपी के नेता अपने महलों और आलीशान गाङियों से निकलने के लिए तैयार नहीं थे वहीं आम आदमीं पार्टी के कार्यकर्ता सर्वसुलभ थे । अरविन्द केजरीवाल ने अपनी
टोली को कुशल नेतृत्व दिया और चुनाव को जनआंदोलन मे बदल दिया । आम आदमीं पार्टी की ताकत का कोई भी विशेषज्ञ सही-सही आकलन नहीं कर सका । शुरु में राजनीति विशारद आम आदमी पार्टी को पांच से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थे । शायद अरविन्द केजरीवाल भी परिणाम आने से पूर्व इतनी सीटों की उम्मीद न रख रहे हों । लेकिन जैसे ही दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम आया , लोगों की नब्ज पर सदा हाथ रखने का दावा करने वाले भी सकते में आ गये। बड़े-बड़े नाम वाले मंत्री बेनाम प्रतिद्वंदियों से चुनाव हार चुके थे । दिल्ली चुनाव परिणाम ने निश्चित रुप से बता दिया है कि सदा ही जाति, वर्ग और क्षेत्र के आधार पर चुनाव नहीं जीता जा सकता है । वी आई पी की राजनैतिक संस्कृति अब जनता में वितृष्णा पैदा करती है  । देर से ही सही लेकिन देश की जनता निश्चित मन बना चुकी है कि देश का भविष्य और चरित्र बदलना है । यह भारत के लिए अच्छा संकेत है । अरविंद केजरीवाल की आम आदमीं पार्टी का भविष्य क्या होता है , यह तो समय ही बतायेगा। लेकिन एक बात तय है कि आने वाले समय में देश का नेतृत्व खास लोगों से हटकर आम आदमीं के पास जाने वाला है । अब भारत सही अर्थों में लोकतन्त्र की ओर बढ़ रहा है ।
( लेखक अरुणाचल प्रदेश के रहने वाले सामाजिक सन्दर्भों पर जाने माने टिप्पणीकार हैं)