दुनिया को नहीं चाहिए हिज़ाब तो भारत में क्यों विवाद?

The world does not want hijab, so why dispute in India?

(डॉ राघवेंद्र शर्मा )

ईरान से शुरू हुआ हिजाब का विवाद अब क्या एशिया और क्या यूरोप, सारी दुनिया को अपनी चपेट में लेता जा रहा है। हालत यह हैं कि जिन मुस्लिम महिलाओं को दकियानूसी परंपराओं में बांधने के पारंपरिक प्रयास किए जा रहे थे, जिन्हें केवल और केवल मजहबी रीति-रिवाजों का पालन मात्र करने वाला वर्ग कहा जा रहा था, वही महिलाएं अब हिजाब तो हिजाब अपनी चुन्नियां और दुपट्टे भी हवा में उछाल रही हैं। इन सब का एक ही ऐलान है कि हमें हिजाब नहीं कल्पनाओं में विकास के रंग भरने के लिए खुला आसमान चाहिए। यह बात और है कि कट्टरपंथी नेताओं को उनकी यह मांग रास नहीं आ रही है। लेकिन हिजाब के विरोध में जिस तीव्र गति से आंदोलन बढ़ रहे हैं, उनसे एक बात स्पष्ट हो चली है कि अब मुस्लिम महिलाओं ने भी अपने अधिकार जान लिए हैं और स्वयं को इस लायक समझने लगी हैं कि अपने दायित्वों को अब हमें खुद तय करना है‌। इन का निर्धारण कोई दूसरा व्यक्ति नहीं कर सकता। भविष्य के प्रति खुलेपन का भरोसा इसलिए भी आशाओं की नई उजास पैदा कर रहा है, क्योंकि अब इस आंदोलन को मुस्लिमों के अलावा दुनिया भर की सभी वर्गों की महिलाओं का समर्थन मिलना शुरू हो गया है। फल स्वरूप उस ईरान के हाकिम भी असमंजस में हैं जिनकी बेफिजूल जिद के चलते महिलाओं को अपने अधिकारों को प्राप्त करने और जबरदस्ती थोपी गई पर्दा प्रथा को ठुकराने के लिए सामने आकर मोर्चा लेना पड़ गया। जिद पर अड़े शासन ने जब जोर आजमाइश का रास्ता अपनाया तो महिलाएं और लड़कियां अपने अधिकारों के लिए जान दांव पर लगाने को तैयार हो गईं। इसके बावजूद महिलाओं की भावनाओं की अनदेखी करते हुए जब उनकी जान से खेलने के प्रयास आम हुए तो फिर मानो फूस को आग ही मिल गई। अब नतीजा यह है कि दुनिया भर की मुस्लिम लड़कियां और महिलाएं हिजाब फेंककर बाजारों और चौराहों पर आ गई हैं। भारतीय परिवेश को लेकर बात की जाए तो हिजाब का मुद्दा यहां कुछ अलग स्वरूप लिए हुए नजर आता है। हमने हाल ही में देखा कि दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में हिजाब को मुद्दा बनाने के बेहद आक्रामक प्रयास हुए। प्रायोजित आंदोलनों के माध्यम से ऐसा प्रदर्शित किया गया मानो मुस्लिम समाज की बहन बेटियां खुद खुले में सांस लेना नहीं चाहतीं। इसी प्रोपेगंडा के तहत उनसे विभिन्न विरोध प्रदर्शन कराए गए और इस देश के संविधान पर मजहबी रीति रिवाज थोपने के कुत्सित प्रयास किए गए। एक प्रकार से देखा जाए तो भारत में हिजाब पहनने का अधिकार प्रदान किए जाने संबंधी आंदोलन की आवश्यकता थी ही नहीं। क्योंकि हमारे संविधान में हिजाब ना पहना जाए, इस आशय का कोई कानून अस्तित्व में है ही नहीं। किंतु शत्रु देशों की शह पर कुछ मुस्लिम स्कॉलर सदैव ही भारत को वैश्विक स्तर पर अधिकतम विवाद में बनाए रखना चाहते हैं। इनका एक ही एजेंडा होता है कि येन केन प्रकारेण हमारे देश की छवि दुनिया की नजरों में खराब होनी चाहिए। बस इसी बद नीयति के चलते कभी धरना प्रदर्शन तो कभी आगजनी और हत्याकांड जैसे षड़यंत्रों को अंजाम दिए जाने का दौर अस्तित्व में बना रहता है। इन कृत्यों की जितनी निंदा की जाए कम है। क्योंकि लोकतांत्रिक देश में जोर जबरदस्ती और कानून व्यवस्था को चुनौती दिए जाने संबंधी हरकतों को कभी भी मान्यता नहीं दी जा सकती। यहां सभी जातियों संप्रदायों को अपने रीति रिवाज अनुसार रहने, पहनने और पूजा पद्धति अपनाए जाने की खुली छूट संविधान से मिली हुई है। हिजाब का पहनना अथवा नहीं पहना जाना भी भारतीय संविधान के तहत विवादों से परे ही है। जहां तक विभिन्न संस्थाओं और संस्थानों की बात है तो उनके परिसरों में वही कानून कायदे मानने होंगे जो उन्हें संविधान अंतर्गत प्रदत किए गए हैं, यह परंपरा लंबे समय से स्वस्फूर्त होकर सभी के द्वारा लंबे समय से निभाई भी जा रही है। किंतु पीएफआई जैसे संगठनों को देश में अमन चैन की सूरत कांटों की तरह चुभती है। जिसके चलते यह और इनके जैसे कई संगठन केवल और केवल झगड़ा फसाद खड़ा करने की फिराक में बने रहते हैं। हिजाब मामला भी उन्हीं में से एक है। वरना क्या कारण है कि मुस्लिम देशों में भी महिलाओं और लड़कियों द्वारा हिजाब का खुलकर विरोध किया जा रहा है। यहां तक कि अपनी जान दांव पर लगाकर भी महिलाएं हिजाब विरोधी प्रदर्शनों की सफलता सुनिश्चित करने में प्राणपन से लगी हुई हैं। इस नजरिए से देखा जाए तो भारत की मुस्लिम महिलाएं और लड़कियां भी अलग थोड़े ही हैं। उनका भी मन करता है कि अब खुले वातावरण में सांस ली जाए। हम भी दकियानूसी परंपराओं को त्याग कर देश के विकास में सहभागी बनें। उच्च शिक्षा प्राप्त कर ऊंचे ओहदों तक पहुंच बनाई जाए। अन्य धर्मों, संप्रदायों की महिलाओं व लड़कियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भारतीय तरक्की को नई उड़ान दी जाए। बस, यही बात मुस्लिम समाज के नेतृत्व कर्ताओं और विद्वानों को समझने की आवश्यकता है। जिस दिन इस वर्ग को मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों की भावनाएं ठीक तरह से समझ में आ जाएंगी, वह दिन भारतीय मुसलमानों के लिए भी विकास के खुले आसमान में ऊंची उड़ान भरने का ही होगा।

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