धर्म-अध्यात्म

श्री रामचरितमानस पर मची है : महाभारत – एस.ए. अस्थाना

tulsidasदेश से बाहर कौन कहे भारत भूमि पर ही आज सनातन धर्म, सनातन संस्कृति हर दिन, हर क्षण तेजी के साथ पतनोन्मुखी हो रही है और हम ‘किंकर्तव्य विमुढ़’ की स्थिति में खड़े-खड़े देख रहे हैं। इसका शर्मनाक तथ्य तो यह है कि सनातन धर्म-संस्कृति के पतन का जिम्मेदार कोई विदेशी संगठन, विदेशी संस्कृति या कोई अन्य धर्मावलंबी नहीं बल्कि सनातन धर्म के उन बहुरूपियों धर्मध्वजवाहक गेरूआ वस्त्रों में लिपटे स्वयंभू कथित जगत गुरूओं, महामण्डलेश्वरों, मण्डलेश्वरों, आचार्यों, कथावाचकों की फौज ही है जो अपनी मनमोहिनी काया से माया के साम्राज्य का विस्तार करने के लिए अपने ही धर्म को बेचने के लिए बुरी तरह से मचल उठे हैं। शायद इन बहुरूपिये धर्मध्वजावाहकों की निगाह में धर्म, धर्मग्रन्थ की महत्ता, लोगों की अटूट आस्था की अहमियत इनकी विलासिता, इनके वैभव, इनके आर्थिक साम्राज्य के आगे गौड़ है। तभी तो ये खुले मंचों से देश का धर्म का, धर्मग्रन्थों का सौदा करने लगे हैं। यह कहना गलत न होगा कि शायद ऐसे ही धर्म के दुकानदारों के विशय में गोस्वामी जी ने लिखा है –

‘बेचहिं वेद धर्म दुहि लेहीं’।

या फिर…

‘वेद-पुराण अनेक पढ़े-बिसरे सब पेट उपायन में’।

जी हाँ – कुछ ऐसे ही कु-कृत्य को अंजाम देकर धनोपार्जन करने का नायाब तरीका ढूंढ़ा है चित्रकूट स्थित कथित तुलसीपीठ के स्वयंभू पीठाधीश्वर एवं कथावाचक गिरधर मिश्र उर्फ रामभद्राचार्य ने! शर्मनाक तथ्य तो यह है कि इस कथावाचक ने अपनी आर्थिक क्षुधा की तृप्ति के लिए और भी रास्ते अपना रखे हैं मसलन-विश्वविद्यालय की स्थापना आदि पर शायद इनकी क्षुधा जब इससे भी शांत न हो सकी तो इन महाशय ने करोड़ो लोगों की आस्था के धर्मग्रन्थ गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ में तीन हजार अशुध्दियाँ करार देकर स्वयं की प्रकाशित रामचरितमानस को बेच कर धनोपार्जन का रास्ता ढूंढ़ लिया है।

”झूठइ लेना, झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चबेना।

बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खार महा अहि हृदय कठोरा॥”

कथावाचक रामभद्राचार्य के इस कु-कृत्य पर न सिर्फ संत समाज ही उग्र हो उठा है बल्कि पूरे देश में ‘मानस पर महाभारत’ मची हुई है।

प्रस्तुत है – ‘मानस पर मचे महाभारत’ पर बे-बाक रिर्पोट – अयोध्या से एस.ए. अस्थाना।

श्रीरामचरितमानस जैसे लोकहितकारी सदग्रन्थ के प्रति आम जन मानस में किसी भी प्रकार की भ्रान्ति फैलाना या फिर खुद को मानसजी का प्रकाण्ड विद्वान प्रदर्शित करने के लिए इस पर कुतर्क प्रस्तुत करना निश्चित रूप से घोर एवं अक्षम्य अपराध है। क्योंकि इससे मानव एवं मानवता दोनों का ही अहित होता है। किन्तु अपनी-अपनी धर्म की दुकाने चलाने व खुद को मानस का प्रकाण्ड विद्वान साबित करने की अतृप्त लालसा में पूरे मनोयोग के साथ इस कु-कृत्य में न सिर्फ लगे पड़े हैं। बल्कि लोगों की आस्था का दोहन कर धनोपार्जन के खेल में जी-जान से जुटे भी पड़े हैं।

गिरधर मिश्र उर्फ रामभद्राचार्य के इस कुत्सित प्रयास के बारे में यहाँ पर यह ज्ञात रहे कि इस कथावाचक एवं स्वयं-भू जगतगुरू ने मात्र धनोपार्जन करने एवं अपने झूठे पांडित्य का भोंड़ा प्रदर्शन करने के उद्देश्य से ही करोड़ों लोगों की आस्था के धर्म ग्रन्थ ‘श्रीरामचरित मानस जी’ में तीन हजार अशुध्दियाँ होने का दावा करते हुए अपने सम्पादन में एक नये ‘श्रीरामचरितमानस’ का प्रकाशन कर डाला। अपने इस कुत्सित प्रयास से रामभद्राचार्य ने न सिर्फ अस्सी करोड़ हिन्दुओं की प्रखर आस्था पर ही कुठाराघात किया है, बल्कि स्वयं की प्रकाशित ‘श्रीरामचरितमानस’ से लाखों रूपयों को बटोरा भी है। रामभद्राचार्य के इसी कुत्सित और घिनौंने कृत्य को लेकर न सिर्फ देश के समस्त संत समाज में ही अपितु पूरे देश में मानस को लेकर महाभारत मचा हुआ है।

ऐसा नहीं है कि रामभद्राचार्य का यह घिनौंना कृत्य आज ही प्रकाश में आया है या फिर देश के संत समाज (विशेशकर राम की नगरी अयोध्या) की निगाह में अब आया है, जिसके कारण यह प्रकरण अब तूल पकड़ा है। यहाँ हम ‘प्रखर आस्था’ के लाखों पाठकों को स्मरण दिलाना चाहेंगे कि रामभद्राचार्य के इस घिनौने कृत्य पर सबसे पहले ‘प्रखर आस्था’ ने विस्तृत रूप से जून – 2008 के अंक में ‘हिन्दू आस्था पर कुठाराघात-श्रीरामचरितमानस से छेड़छाड़’ शीर्षक से विस्तृत खबर प्रकाशित की गई थी। इस खबर के प्रकाशित होते ही देश के लाखों हिन्दुओं ने देश के कई स्थानों पर न सिर्फ कथित मूर्धन्य विद्वान रामभद्राचार्य का पुतला ही नहीं फँका बल्कि इनकी गिरफ्तारी की भी मांग शुरू हो गई। इसी दौरान भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में भी संतो ने 1 नवम्बर 2008 को प्रेसवार्ता एवं बैठक आयोजित कर रामभद्राचार्य को अयोध्या में न घुसने देने एवं रामभद्राचार्य की गिरफ्तारी की मांग शुरू कर दी थी। लेकिन उस समय यह यह प्रकरण आज की तरह परवान न चढ़ सका था।

उक्त घटना के एक वर्ष बीत जाने के बाद अब रामनगरी अयोध्या से मानस पर मचे महाभारत की शुरूआत का मुख्य कारण है कि कथित मानस मर्मज्ञ रामभद्राचार्य ने एक साल बाद अयोध्या में जाकर 24 नवम्बर-2009 से कथा कहने का ताना – बाना गुपचुप ढंग से बुन डाला। रामभद्राचार्य के अयोध्या आगमन एवं उनके कथाकार्यक्रम की जानकारी जैसे ही 22 नवम्बर 2009 को अयोध्या के संतों में मुख्यत: त्रयअनी अखाड़े के प्रधानमंत्री महंथ माधवदास, निवाण्री अनी अखाड़े के महंथ श्री धर्मदास, दामोदरदास, आचार्य रामदेव शास्त्रीआदि को हुई तो अयोध्या का पूरा संत-समाज रामभ्रदाचार्य के कथा कार्यक्रम को लेकर आक्रोशित हो उठा यत्रअनी अखाड़े के प्रधानमंत्री माधवदास ने संतों की एक तत्काल बैठक आयोजित कर प्रस्ताव पास करा लिया कि ‘जिला प्रशासन अयोध्या के हनुमानबाग में 24 नवम्बर से रामभद्राचार्य की होने वाली रामकथा पर तत्कालिक रूप से प्रतिबंध लगाए तथा अयोध्या में रामभद्राचार्य के घुसने पर रोक लगा दें। इस प्रस्ताव को समवेत स्वर में पारित कर संतों ने प्रस्ताव जिला प्रशासन को प्रस्तुत कर दिया। रामभद्राचार्य एवं उनकी कथित मानस पर संतो में उपजे आक्रोश को देखते हुए प्रशासन ने 24 नवम्बर को अयोध्या में रामभद्राचार्य के प्रवेश पर तत्कालिक रूप से प्रतिबन्ध लगा दिया तथा इस संदर्भ में जिला प्रशासन ने आदेश की प्रति फैक्स के माधयम् से चित्रकूट भी भेज दिया।

संतो के आक्रामक तेवर देख इस बहुरूपिए कथावाचक रामभद्राचार्य ने संतों को मनाने एवं अपना पक्ष रखने के लिए अपने दूत (शिष्य) अथावाचक प्रेमभूषण को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंथ ज्ञानदास के यहाँ भेज दिया। एक बार फिर इस पाखंड़ी धर्मध्वजावाहक रामभद्राचार्य ने फरेब का सहारा लिया महंथ ज्ञानदास के यहाँ पहुंचे प्रेमभूषण ने रामभद्राचार्य द्वारा लिखी गई एक दूसरी रामायण प्रस्तुत कर संतों को गुमराह करने का अथक प्रयास किया लेकिन मौके पर मौजूद महंथ माधवदास एवं आचार्य रामदेव शास्त्री ने प्रेमभूषण द्वारा दिखाए जा रहे रामायण को मानने से ही इंकार कर दिया तथा इस पूरे प्रकरण की सूचना तत्काल ‘प्रखर आस्था’ के सम्पादक ‘एस.ए.अस्थाना’ द्वारा उच्चन्यायालय लखनऊ-खण्डपीठ में मुकदमा दायर कर दिया गया है। अयोध्या में चल रहे इस घटनाक्रम के बीच ही रामायण की वह प्रति एक व्यक्ति लेकर दोपहर करीब 1 बजे अयोधया पहुँचा। पाँच बजे सायं इसी दिन अयोध्या के लगभग सभी संत उस प्रति को लेकर महंथ ज्ञानदास के यहाँ पहुंचे, पहले से ही रामभद्राचार्य के दूत के रूप प्रेमभूषण मौजूद थे। महंथ ज्ञानदास के समक्ष दोनों रामायणें रखने पर महंथ ज्ञानदास ने तुरन्त ही रामभद्राचार्य एवं उनके दूत प्रेमभूषण की जालसाजी को पकड़ लिया। महंथ ज्ञानदास ने प्रेमभूषण के सेल फोन पर रामभद्राचार्य से बात कर यह जानना चाहा कि ‘कैसे आपकों पारायण विधि को, कैसे खुद को ऋषि दर्शा रखा हैं?’ महंथ ज्ञानदास के इस प्रश्न पर रामभद्राचार्य न सिर्फ अचकचा ही गए बल्कि यह कह कर अपना पक्ष रखना चाहा कि ‘अति उत्साह में हमारे शिष्यों ने हमारे लिए ‘ऋषि’ शब्द को प्रयोग कर दिया है।’ अब तक अपने गुरू को भारत भूमि का सबसे बड़ा विद्वान मानने वाले प्रेमभूषण को संभवत: यह माना नहीं था कि उनके कथित विद्वान गुरू इतनी जल्दी अपनी लगती मान लेंगे या फिर पहले ही प्रश्न पर धराशायी हो जाएंगे। महंत ज्ञानदास के यहां से अंतत: चुपचाप खिसक जाना ही प्रेमभूषण ने उपयुक्त समझा। यही वह समय था जब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंथ ज्ञानदास ने यह फरमान जारी कर दिया कि यदि 8 नवम्बर तक रामभद्राचार्य अपने इस कु-कृत्य पर मॉफी नहीं मांगते हैं तो 10 नवम्बर को हरिद्वार में अखाड़ा परिषद रामभद्राचार्य से जगतगुरू की पदवी छीन लेगी। इन्हीं घटनाओं के बीच 30 अक्टूबर को महंथ माघवदास ने अयोध्या के सभी संतों की एक विशाल बैठक आयोजित की जिसमें सभी संतों ने रामभद्राचार्य पर न सिर्फ तीखे प्रहार ही किए बल्कि जीभ भी काट लेने का ऐलान भी हो गया।

इन्ही नाटकीय घटनाक्रम के बीच अचानक 3 नवम्बर को रामभद्राचार्य के विशेश दूत एवं प्रतिनिधि के रूप में अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री एवं कथावाचक प्रेमभूषण रामभद्राचार्य का मॉफीनामा लेकर अयोध्या महंथ ज्ञानदास के यहाँ उपस्थित हो गए। इस मॉफीनामें में रामभद्राचार्य ने स्पष्ट किया है कि मैं अपनी रचित मानस की प्रतियों को बाजार या आम लोगों के बीच नहीं बाटूंगा। (देखे वापस) तथा संत समाज को हुए कष्ट के लिए क्षमा चाहता हूँ।

इस पूरे घटनाक्रम का रोचक पहलू तो यह है कि – एक तरफ जहाँ रामभद्राचार्य संतों से मॉफी मांग कर अपने प्रति उपजे आक्रोश को कम करवाने में कुछ हद तक सफल हो गए हैं वहीं दूसरी तरफ अयोध्या के संत इस ‘माफी नामे’ को लेकर दो गुटों में साफ-साफ दिखाई देने लगे हैं।

अयोध्या से प्राप्त जानकारी के अनुसार अयोध्या के प्रमुख 4-6 संतों में विशेशकर नृत्य गोपाल दास, महंथ ………….. की मौजूदगी में हुए मॉफीनामे से अयोध्या के बाकी संतखुद को न सिर्फ उपेक्षित ही महसूस कर रहे हैं बल्कि उनके बीच इस माफीनामे को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ भी छिड़ी हुई हैं। बहरहाल ‘श्रीरामचरितमानस’ के साथ किए गए छेड़-छाँड़ पर बड़े महंथों से रामभद्राचार्य को जीवनदान तो मिल गया है पर यह तय है कि आम संतों एवं लोगों के बीच मानस पर मचा महाभारत अभी थमने वाला नहीं है।