भागदौड़ में कमी नहीं,तुम मानो चाहे ना मानो

सुशील कुमार’ नवीन’

एक पुरानी कहानी सुनाने का मन कर रहा है। कहानी पुरानी जरूर है पर संदर्भ नया है। शेर से परेशान होकर जंगल के अन्य जीव-जंतुओं ने एक बार सभा की। सभा में सदियों से राजा के पद पर आसीन शेर की कार्यप्रणाली पर चर्चा की गई। हिरन- खरगोश बोले-ये कैसा राजा है जो प्रजा की रक्षण की जगह भक्षण करता है।  सभा में सबसे बुजुर्ग हाथी दादा ने सुझाव दिया और कहा-हिम्मत हो तो राजा बदल लो। सियार बोला- हिम्मत तो बनाये बनेगी। सब एक हो जाएं तो कुछ भी कर सकते हैं। भालू दादा हंसा और बोला- भई, हम तो हिम्मत कर लेंगे, तेरा तो भरोसा नहीं। तू ही चापलूसी कर उस शेर से फिर जा मिलेगा। सियार ने इस बार पूरा सहयोग का आश्वासन दिया। 

अब बात राजा किसे बनाए पर अटक गई। वफादारी में संदेह पर सियार का नाम पहले ही कट चुका था। हाथी और भालू दादा ने उम्र ज्यादा होने पर जिम्मेदारी निभाने में असमर्थता जता दी। हिरन और खरगोश का कलेजा पहले ही कमजोर था। अब बात लोमड़ी, लंगूर और बन्दर पर आकर ठहर गई। लोमड़ी का चालाक होना उम्मीदवारी में मजबूत दावेदारी जता रहा था, पर वो इस पचड़े में खुद ही नहीं पड़ना चाहती थी। ऐसे में अब लंगूर और बन्दर ही मैदान में रह गए। लंगूर ने भी बड़प्पन दिखाते हुए बन्दर के सिर पर हाथ रख दिया। फौरन बन्दर की ताजपोशी कर उसे कर्तव्यनिष्ठा की शपथ दिलवा दी गई। बन्दर ने भी राजा होने के कर्तव्यपालन में भागदौड़ में किसी भी तरह की कमी न रहने देने का आश्वासन दिया। ‘बन्दर राजा की जय, बन्दर राजा की जय’ से जंगल गूंज उठा। बात जंगल के स्थायी राजा शेर तक भी जा पहुंची। फ़ौरन अपने दूत सियार को तलब किया और वस्तुस्थिति जानी। सियार ने बता दिया कि जीव-जंतुओं ने अब बन्दर को राजा मान लिया है। शेर क्रोधित होकर उन सबको मजा चखाने निकल पड़ा। सियार भी पीछे-पीछे हो लिया। शेर ने जानवरों को डराने के लिए दहाड़ मारी। दहाड़ सुनते ही खरगोश-हिरन के साथ-साथ छोटे जीव-जंतु दुबक गए। भालू,हाथी, लोमड़ी वक्त को भांप दूसरी तरफ निकल गए। शेर ने हिरन को दबोचने में कामयाब हो गया।उसे मुहं में दबाकर वो निकल पड़ा। 

जंगल का राजा बन्दर एक ऊंचे पेड़ पर सोया पड़ा था। जानवरों ने कोलाहल मचाया तो उसकी भी आंख खुल गई। देखा तो जंगल के जानवर उसे ही आवाज लगा रहे थे। मामला जान फौरन वर्किंग मोड़ में आ गया।  एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक छलांग लगाता शेर तक जा पहुंचा। शेर को पेड़ से ही ललकारा और कहा कि वो हिरन को छोड़ दे। अन्य जीव-जंतु इस बात से खुश हुए कि उन्होंने राजा का सही चुनाव किया है। इधर, बन्दर की ललकार का शेर पर कोई असर नहीं हुआ। शेर अपनी गति से चलता रहा। बन्दर ने इस बार पेड़ की एक डाली तोड़ शेर पर दे मारी। शेर पर इसका कोई असर न देखकर इस बार बन्दर ने शेर पर ताबड़तोड़ आम बरसाने शुरू कर दिया। शेर इससे घबराया तो जानवरों को लगा अब तो शायद राजा हिरन को बचाने में कामयाब हो जाएगा। शेर ने अब अपनी गति बढ़ा दी। बन्दर भी उसके पीछे दौड़ता रहा। आखिर में शेर उस हिरन को लेकर अपनी गुफा में ले जाने में कामयाब हो गया। अब हिरन के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। हिरन को न बचा पाने पर जंगल के अन्य जानवर गुस्से में आ गए। बोले-क्या फायदा हुआ तुम्हें राजा बनाकर। तुम शेर से मुकाबला भी नहीं कर पाए। हमें ऐसे राजा की कोई जरूरत नहीं। 

बन्दर ने राजा वाली टोपी सर से उतार फैंकी और बोला-तुम्हारी इस सरदारी के लिए शेर को अपनी जान दे दूं यह तो मैंने नहीं कहा था। मैंने तो तुम्हे अपने कार्य में भागदौड़ में कोई कसर नहीं छोड़े जाने की कही थी। पूरा जंगल गवाह है कि आज मैंने अपने कथन को पूरा करके दिखाया है। ये तो हिरन का वक्त ही खराब चल रहा था। घटना में न मेरा कसूर है , न तुम्हारा। सब बख्त(समय)  का रोला(कसूर) है। अब चाहे तुम राजा मानो या न मानो। जानवर कुछ नहीं बोले और चुपचाप लौट गए। 

(नोट-कहानी मात्र मनोरंजन के लिए है। इसे प्रधानसेवक जी के लाइक-डिसलाइक प्रकरण से जोड़ अपने दिमाग पर ज्यादा जोर देकर उसे परेशान न करें।)

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