धमाके होते रहेंगे

लोकेन्‍द्र सिंह राजपूत

मुंबई में बुधवार (१३ जुलाई २०११) को तीन जगह बम विस्फोट हुए। मुंब्रा देवी मंदिर के सामने झवेरी बाजार में। दूसरा ओपेरा हाउस के पास चेंबर प्रसाद में और तीसरा दादर में। तीनों विस्फोट १० मिनट में हुए। इनमें अब ३१ लोगों की मौत हो चुकी है १२० से अधिक गंभीर हालत में अस्पताल में मौत से संघर्ष कर रहे हैं।

भारत में यह आश्चर्यजनक घटना नहीं है। इसलिए चौकने की जरूरत नहीं। शर्मनाक जरूर है। दु:खद है। देशवासियों को ऐसे धमाकों की आदत डाल लेनी होगी, क्योंकि जब तक देश की राजनैतिक इच्छाशक्ति गीदड़ों जैसी रहेगी तब तक धमाके यूं ही होते रहेंगे। हमारे (?) नेता गीदड़ भभकियां फुल सीना फुलाकर देते हैं। करते कुछ नहीं। एक तरफ अन्य देश हैं जो करके दिखाते हैं फिर कहते हैं। अमरीका को ही ले लीजिए। उसने देश के नंबर वन दुश्मन को एड़ीचोटी का जोर लगाकर ढूंढ़ा और उसे उसके बिल में घुसकर मार गिराया। इस घटना के वक्त भी हमारे (?) नेताओं ने आतंकियों को अमरीका अंदाज में मारने की गीदड़ भभकी दी थी। लेकिन, हुआ क्या? मुंबई में ये धमाके। हमारे खुफिया तंत्र को इनकी खबर ही नहीं थी। इसके अलावा देश के शीर्ष विभागों में क्या गजब का तालमेल है यह भी धमाकों के बाद उजागर हो गया। मृतकों की संख्या को लेकर मुंबई पुलिस कमिश्नर कुछ जवाब दे रहे थे, मुख्यमंत्री के पास कुछ दूसरे ही आंकड़े थे और गृहमंत्री अपना ही सुर आलाप रहे थे। किसी के पास कोई ठोस जानकारी नहीं। देश की जनता किसकी बात पर भरोसा करे।

भारत की राजनीति भयंकर दूषित हो चुकी है। वोट बैंक की घृणित राजनीति के चलते देशधर्म दोयम दर्जे पर खिसका दिया गया है। इसी वोट बैंक की राजनीति के चलते भारत की ‘आत्मा’ (संसद) और मुंबई के ‘ताज’ होटल पर हमला करने वाले आतंकियों को अब तक फांसी पर नहीं लटकाया जा सका है। कांग्रेस उन्हें मुस्लिम वोट बैंक के ‘महाप्रबंधक’ के रूप में देखती है। उनकी सुरक्षा व्यवस्था पर सरकार करोड़ों रुपए फूंक रही है। पिछले साल ही उजागर हुआ था कि अफजल और कसाब को जेल में ‘रोटी और बोटी’ की शानदार व्यवस्था है। बम फोड़कर निर्दोष लोगों की हत्या कर उन्हें जिस ‘जन्नत’ के ख्वाब दिखाए गए थे वह उन्हें भारतीय जेलों में ही नसीब हो गई। कितनी शर्मनाक स्थिति है कि देश ही नहीं वरन् मानवता के दो बड़े अपराधी इस देश में वोटों की तराजू पर तोले जाते हैं। नेता उनकी फांसी को ऐन केन प्रकारेण टालने की जुगत भिड़ाते रहते हैं। जहां हत्यारों को इतनी सहूलियत और इज्जत बख्शी जाए वहां कौन मूर्ख बम नहीं फोडऩा चाहेगा। देश के वरिष्ठ नेता मानवता के दुश्मनों की मौत का मातम मनाते हैं। उन्हें ‘जी’ और ‘आप’ लगाकर संबोधित करते हैं। उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर देश के शहीदों का अपमान करते हैं। निरे बेवकूफ हैं जो चेन झपटते हैं, छोटी-मोटी लूट मार कर रहे हैं। उन्हें इस देश में इज्जत और शोहरत चाहिए तो बम फोडऩे होंगे। हो सकता है देश की राजनीति का यही हाल रहा तो देर सबेरे इन्हें अक्ल आ ही जाएगी। फिर ये भी हमारे माथे बम फोड़ेंगे। इसलिए इस देश में बम धमाके होते रहेंगे।

धमाके वाकई रोकने हैं तो दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। आतंकियों के दिलों में खौफ पैदा करने की जरूरत है। आतंकियों और उनके मनसूबों को कुचलना ही है तो वोट बैंक की राजनीति का त्याग करना होगा। राजनीति में देशधर्म और जनता के हित सर्वोपरि रखने होंगे। अब भी यदि आतंकियों से कैसे निपटना है देश के कर्णधारों को नहीं सूझ रहा हो। उनकी बुद्धि पर ताला पड़ गया हो तो ब्रिटेन और अमरीका से सीख ली जा सकती है। जिन्होंने अपने देश में आतंक की एक-दो घटनाओं के बाद उसे फिर सिर नहीं उठाने दिया। कह सकते हैं कि उन्होंने अपनी धरती पर पनप रहे आतंक के भ्रूण की ही हत्या कर दी। उसे सपोला तक नहीं बनने दिया। इजराइल से भी प्रेरणा ली जा सकती है। जो चारों ओर से दुश्मनों से घिरा है। फिर भी मजाल है किसी की, इजराइल की तरफ आंख उठाकर भी देख ले। यहां आतंक इसलिए नहीं फनफना सका, क्योंकि यहां राष्टधर्म और राष्ट्रहित प्राथमिक हैं। यहां वोट बैंक की घृणित राजनीति नहीं। चंद वोटों की खातिर देश को बारूद के मुहाने खड़ा करने की सोच यहां की राजनीति में नहीं है। अपने नागरिकों को बेवजह मरने से बचाने के लिए बिखर रहा ब्रिटेन भी शेर हो गया। नतीजा आज उसके नागरिक बेफिक्र सोते हैं। अमरीका तो एक घटना के बाद से आज तक आतंकियों के पीछे ‘तीर-कमान’ लेकर पड़ गया है। वह अपने देश के नंबर एक दुश्मन का सफाया तो कर ही चुका है, उसके बाद भी शांत नहीं है। आतंक को पस्त करने की उसने ठान रखी है। वह अब भी आतंकियों को ओसामा बिन लादेन के पास भेज रहा है। इसके लिए उसने पाकिस्तान से भी बिगाड़ कर ली है।

ऐसा भी नहीं है कि भारत यह सब करने में समर्थ नहीं है। उसके पास आतंकियों से निपटने के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं है। ये सब है उसके पास। बस नहीं है तो राजनैतिक इच्छाशक्ति। इसी राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव के चलते आतंकियों के हौसले बुलंद हैं। वे बार-बार देश के किसी न किसी हिस्से में धमाके करते रहते हैं। देश की सुरक्षा इंतजामों का हाल तो यह है कि हम मुंबई की सुरक्षा व्यवस्था ही पुख्ता नहीं रख पा रहे हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में यह पहला धमाका नहीं है। मुंबई में पहली बार सिलसिलेबार धमाके १९९३ में हुए थे। उसके बाद २००२, २००३, २००६ और २००८ में भी धमाके होते रहे। १९९३ से अब तक मुंबई में ही करीब ७०० लोगों की जान हम गवां चुके हैं। इसके बाद भी हम सबक लेने को तैयार नहीं। बयानबाजी और वोट बैंक की परवाह छोड़कर हमें कुछ अमरीका और ब्रिटेन की नीति को अपनाना होगा। हमारी सेना में वो कुव्वत है। वे आतंक के सफाए के लिए अपनी मंशा भी जता चुके हैं। देश के कर्णधारों को आतंक को मिटाने के लिए कुछ ठोस नीति बनानी होगी। वरना तो यूं ही धमाके होते रहेंगे और हम अपने प्रियजनों को खोते रहेंगे।

7 COMMENTS

  1. (१)अनिल जी, और विमलेश जी धन्यवाद। अनिल जी की बात ऊपरि स्तर पर सही लगती है, कि, जिसका कुछ फल निकलनेवाला नहीं उसके विषयमें व्यर्थ सुझाव क्यों दिया जाय?
    (२)स्वस्थ शासन के निर्णय निर्धारित निकष (पॉलीसी) के आधार पर हुआ करते हैं।
    सीढियां होती है==>पहले बीज विचार–>उस पर मंथन—>सारासार विवेक —>अंत में कृति।{मेरी टिप्पणी, बीज विचारका सुझाव माना जाए।}
    (३) इस प्रकारके अभियान सामुहिक, शासकीय और बडे परिणामकारी होने के लिए, कूटनैतिक पहलू भी सोचे जाते हैं।
    उदाहरण: जैसे ओबामा ने ओसामा को समाप्त किया।
    (४) प्रवक्ता, वैचारिक पहलूओं का ही प्रतिपादन कर सकता है। और इसी निमित्त से कुछ पाठक भी लाभान्वित हो सकते हैं। यह एक ही कारण मुझे पर्याप्त प्रतीत होता है, ऐसे विचारों को प्रवक्ता पर व्यक्त करने के लिए।
    समय लेकर टिप्पणी करना चाहता था, अतः देर हो गयी। सविनय।

  2. अनिल जी ये तो मधुसूदन जी को जरूर बताना चाहिए

    अगर रास्ता दिखाया है तो कम से कम घर तक तो छोडो .

    वैसे मेरे ख्याल से ये इच्छाशक्ति देश की राजमाता चाहे तो पाकिस्तान से इम्पोर्ट कर सकती है ,
    कमाल की पैदावार है वहा,

    या फिर इटली से क्योकि इस तरह के आइटम वहा से पहले भी मगाए जाचुके है,

  3. श्री मधुसुदन जी के सुझाव तो अच्छे हैं पर इन्हें लागू करने के लिए इच्छाशक्ति कहाँ से आयात की जाये? इन कंग्रेस्सियों को तो अपनी जुबान पर मुस्लिम आतंकवादी शब्द का उच्चारण करने में भी डर लगता है. हालांकि एन डी ऐ की सरकार का भी कोई बहुत उज्जवल कार्य नहीं रहा है.समस्या का समाधान एक ही है. हिन्दुओं को, व यदि देशभक्ति की भावना से कोई गैर हिन्दू भी साथ आना चाहे तो उसे भी साथ लेलें,जबरदस्त जनांदोलन के लिए तैयार किया जाये. भ्रष्टाचार का मुद्दा भी देशभक्ति से जुड़ा है. अतः इन दोनों मुद्दों को लेकर विशाल देशव्यापी संघर्ष छेड़ना जरूरी है. तकल्लुफ से सने हाथ से निकल जायेगा और फिर पछताने का समय भी नहीं मिलेगा.ये निकम्मी सरकार कुछ नहीं करेगी क्योंकि जिसके हाथ में सत्ता की असली चाभी है वो हर प्रकार की जवाबदेही से मुक्त है,.और जिनकी जवाबदेही है वो एक तो नाकारा हैं दुसरे उनके हाथ बंधे हैं. इनको कोई सुझाव देना अपना समय नष्ट करना है. इन्हें सब पता है लेकिन कुछ करना ही नहीं है तो सुझावों का क्या फायेदा.

  4. लोकेन्द्र भाई, जब तक भारत में वर्ण संकर प्रजाति की सरकार है, धमाके होते रहेंगे|
    जब तक भारत में राजनैतिक सत्ताओं पर विदेशियों का बोलबाला लगा रहेगा, धमाके होते रहेंगे|
    जब तक भारत में दूध मूंहे बच्चे प्रधान मंत्री बनने का स्वप्न देखते रहेंगे, धमाके होते रहेंगे|
    जब तक राजनैतिक सताएं तुष्टिकरण की घटिया नीतियाँ अपनाती रहेंगी, धमाके होते रहेंगे|
    कारण बहुत हैं, कितने गिनाऊं?

    आदरणीय मधुसुदन जी की ज्ञान वर्धक टिपण्णी बहुत लाभदायी लगी|

  5. मधुसूदन जी गलती की और ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद… बस कुछ दिन से थोडा व्यस्त था इसलिए नहीं चाह कर भी कुछ नहीं लिख सका….

  6. देश के कर्णधारों को आतंक को मिटाने के लिए कुछ ठोस नीति बनानी होगी।लेकिन कब ?

  7. (१) इजराइल से, और अमरिका से परामर्श करें।
    इजराइल हमें साथ देने तत्पर बैठा है। आज अमरिका का भी लाभ इसी में है।
    (२) इज्राएल बिना विलम्ब तुरन्त विमानों को आसमान में उडाकर सारे आतंकी अड्डों के छत्तों पर बम मारी करता है। कहता है, उन्हें पता चले कि कीमत चुकायी जा रही है।
    अर्थात यह कूट नैतिक तर्क से ही, सारा आगा पीछा, सोचकर, और वोट बॅन्क को भूलकर किया जाए।
    (३) लेखक का ध्यान चाहूंगा।==>मुम्बई का नाम जिस मन्दिर के कारण पडा है, वह है मुम्बा आई (देवी) का मन्दिर। इसी मुम्बा+आई का उच्चारण मुम्बाई और फिर मुम्बई हुआ है। आपने “मुम्ब्रा देवी” लिखा है।आई मराठी का शब्द है। अर्थ है माता। वास्तव में वह भी आर्ये का ही प्राकृत रूप है।
    (४)लोकेन्द्र जी, लेख के लिए धन्यवाद। बहुत समय से आप का लेख नहीं दिखा था।

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