0
135


-अनिल अनूप
25 साल पहले वो 5 अप्रैल 1993 की रात थी जब ख़बर आई थी कि अभिनेत्री दिव्या भारती पाँचवें फ़्लोर पर अपने घर की बालकनी से गिर गईं हैं.
आज तक उनकी मौत एक रहस्य बनी हुई है. तब हर अख़बार में ये सुर्ख़ी थी कि मुंबई में दिव्या भारती को कूपर अस्पताल ले जाया गया था जहाँ उनकी मौत हो गई.

मुंबई से अंजान होते हुए भी तभी से कूपर अस्पताल का नाम दिमाग़ में कहीं छप सा गया था.अभी कुछ दिन पहले ख़बर आई कि हिंदी फ़िल्मों में विलेन का रोल करने वाले 57 साल के अभिनेता महेश आनंद की लाश उनके घर से मिली जो डि-कंपोज़ हालत में थी.

घर में जब पुलिस आई तो टीवी चल रहा था और खाने की प्लेट साइड में रखी थी.

शव मिलने से कुछ दिन पहले मौत हो चुकी थी. पोर्सटमॉर्टम के लिए शव को उसी ‘कूपर अस्पताल’ ले जाया गया जहाँ दिव्या भारती को ले जाया गया था.
हिंदी फ़िल्मों में शोहरत और ग्लैमर के बीच, एक लंबी फ़ेहरिस्त है जहाँ कई कलाकार या तो ग़ुमनामी में मर गए, या तन्हाई में, बहुत ग़रीबी में या रहस्यमय हालात में- जैसे जिया खान, प्रत्युशा बैनर्जी, परवीन बॉबी, गुरु दत्त, नलीनी जयवंत, अचला सचदेव.
महेश आनंद की ही बात करें तो 80 के दशक और 90 में भी हर दूसरी फिल्म में महेश बतौर वीलेन या वीलेन के ‘राइट हैंड मैन’ के तौर पर होते थे.
कहते हैं कि फ़िल्म में विलेन और हीरो के सामने खड़े गुंडे जीतने दमदार हों, हीरो की हीरोगिरी उतनी ही निखर कर आती हैं. और महेश आनंद ने ये काम बख़ूबी किया.

अमिताभ बच्चन के साथ उन्होंने अकेला, इंद्रजीत, शहंशाह, गंगा जमुना सरस्वती समेत कोई सात फ़िल्में की. 6 फ़ुट 2 इंच लंबे, अच्छी डील डौल और मॉडल जैसे दिखने वाले महेश आनंद की ठीक-ठाक पहचान थी.
लेकिन साल 2000 के बाद से उन्हें फ़िल्मों में काम मिलना लभभग बंद हो गया और लोगों की नज़रों से वे ग़ायब हो गए. नई पीढ़ी को शायद ही उनके बारे में मालूम हो.
अजब इत्तेफ़ाक़ है कि करीब 18 साल बाद महेश आनंद ने इस जनवरी फ़िल्मों में वापसी की थी- गोविंदा और पहलाज निहलानी की पिछले महीने रिलीज़ हुई फ़िल्म रंगीला राजा में वो छोटे से रोल में दिखे.
ये एक अजीब सा एहसास होता है कि जिसे जीते जी भुला दिया गया उस कलाकार के जाने के बाद गूगल सर्च में वो शख़्स ट्रेंड करने लगता है या अचानक से लोग उनके बारे में और जानना चाहते हैं.

परवीन बॉबी

पीछे मुड़ कर देखें तो 2005 में मौत के बाद भी परवीन बाबी के बारे में जानने की लोगों की जिज्ञासा कम नहीं हुई है.
उन्होंने अपनी बिंदास इमेज, ग्लैमर और ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीने की अदा के चलते ख़ास जगह बनाई. ख़ूब पैसा और नाम कमाया. उनके कई रिश्ते बने और टूटे.
फिर स्किज़ोफ़्रीनिया ने उनकी ज़िंदगी को ऐसे अंधेरे में धकेला जहाँ से एक दिन उनकी मरने की ही ख़बर आई.
जब कई दिनों तक घर के बाहर से अख़बार और दूध के पैकेट किसी ने नहीं हटाए तो पुलिस ने दरवाज़ा तोड़ लाश निकाली. कुछ वैसे ही जैसे महेश आनंद का शव निकाला गया.

गुरू दत्त

अपने अभिनय और निर्देशन दोनों के लिए गुरु दत्त का बहुत नाम और इज़्ज़त थी. लेकिन निजी ज़िंदगी में पत्नी गीता दत्त से उनका रिश्ता बिल्कुल बिखर चुका था और अक्सर झगड़ा होता था. वे बच्चों और पत्नी से अलग अकेले रहते थे.
9 अक्तूबर 1964 को ऐसे ही एक झगड़े के बाद उनके दोस्त अबरार अलवी मिलने पहुँचे तो गुरु दत्त शराब पी रहे थे.रात दोनों ने खाना खाया और अबरार अपने घर चले गए. अगले दिन अबरार अल्वी आए तो उन्होंने देखा कि गुरु दत्त की मेज़ पर एक गिलास रखा हुआ था जिसमें एक गुलाबी रंग का तरल पदार्थ बचा हुआ था. और गुरु दत्त की मौत हो चुकी थी.
ये ख़ुदकुशी थी या ओवरडोज़ ये बहस आज भी जारी है लेकिन उस दिन एक चमकता सितारा हमेशा के लिए बुझ गया.
मनमोहन देसाई

अमिताभ बच्चन को अमर अकबर एंथनी, कुली, मर्द, नसीब जैसी फ़िल्में देकर सुपरस्टार बनाने वाली निर्देशक मनमोहन देसाई की मौत का राज़ भी कभी पूरी तरह साफ़ नहीं हुआ.
1994 में जब उनकी मौत हुई तो वो पीठ के दर्द से परेशान थे. बॉलीवुड के बादशह रहे मनमोहन देसाई की फ़िल्में चलना बंद हो चुकी थी.
ऐसे में बालकनी से गिरकर हुई उनकी मौत हमेशा सवालों के घेरे में रही.
भगवान दादा

अपने ज़माने के मशहूर डांसिंग और एक्शन स्टर रहे भगवान दादा भी अपने आख़िरी दौर में इंडस्ट्री से दूर और अकेले पड़ गए थे. अमतिभ बच्चन से लेकर गोविंदा तक में उनके डांस की छाप देखने को मिलती है. 40 और 50 के दशक में भगवान दादा के पास बंगला, कई गाड़ियाँ और ख़ूब पैसा था, वे सबसे अमीर एक्टरों में से थे.
1951 में राज कपूर की आवारा और भगवान दादा की अलबेला एक ही दिन रिलीज़ हुई औरो दोनों सुपरहिट थी.
मुंबई में ग़रीबी में एक चॉल में पैदा हुए भगवान दादा के पास फ़िल्मों में आने के बाद पैसे की कमी नहीं थी.
लेकिन फ़िल्मी करियर ने ऐसी करवट बदली कि जिस गरीब बस्ती से उठकर वो आए थे, अपना बंगला बेच उन्हें वहीं वापस लौटना पड़ा.

उनके बारे में किस्सा मशहूर है कि गणेश चतुर्थी के दौरान भीड़ उनके चॉल के आगे ज़ाकर रुक जाती थी और जब वे अपने मशहूर गाने शोला जो भड़का पर डांस करते तभी वहाँ से लोग जाते. लेकिन 2002 में मौत के वक़्त फ़िल्मी दुनिया उन्हें भुला चुकी थी.
अगर नई पीढ़ी के लोगों को उन्हें पहचनाने में दिक्कत हो तो सलमान खान और भाग्यश्री का गाना ‘हाँ मैंने प्यार किया प्यार किया’ रिवाइंड करके देखें तो सलमान के पीछे लाल पगड़ी में डांस करने वाले भगवान दादा ही हैं जिनकी कभी इंडस्ट्री में तूती बोलती थी.
नलिनी जयवंत

तन्हाई की कुछ ऐसी ही कहानी रही नलिनी जयवंत की. देव आनंद से लेकर दिलीप कुमार उनके हीरो हुआ करते थे और उनके काम के कायल थे, वे काजोल और नूतन के ख़ानदान से तालुल्क रखती थी.
84 साल की उम्र वो अपने आख़िरी समय में बिल्कुल अकेली थीं. उनकी मौत भी एक रहस्य ही थी.
एक से एक हिट फ़िल्में देने वाली नलिनी ने ख़ुद को दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग कर लिया था. उनकी मौत पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ये हेडलाइन ही सब कुछ बता देती है- ‘नलिनी जयवंत डाइज़ ए लोनली डेथ.

प्रत्युशा बनर्जी

हाल के सालों की बात करें तो टीवी पर एक अभिनेत्री बहुत छाईं- नाम था प्रत्युशा बनर्जी और टीवी सिरीयल था बालिका वधू.

आनंदी के किरदार में प्रत्युशा घर घर में छा गईं थीं. लेकिन महज़ 24 साल की उम्र में वो फाँसी पर लटकी पाई गई थीं.
अभिनेत्री जिया ख़ान की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. सिर्फ़ 25 साल की उम्र में जिया खान मृत पाई गईं. ‘निशब्द’ जैसी अपनी पहली ही फ़िल्म में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने वाली जिया अपने सपनों के ख़ातिर लंदन से भारत आईं.
लंदन में अंग्रेज़ी साहित्य, शेक्सपियर और अभिनय के बारे में पढ़ाई की. वो ऑपरा गायक थीं और पियानो भी बजाती थीं. साल्सा, जैज़, कत्थक, बैले, रेगी और बेली डांस जैसी नृत्य शैलियां जानती थीं. जीवन से भरी ऐसी लड़की ने 25 साल में ज़िंदगी को अलविदा कह दिया.

इसी तरह सिल्क स्मिथा ने भी 1996 में ख़ुदकुशी की थी. जिसे पूरी दुनिया सेक्स सायरन के नाम से पुकारती थी वो असल ज़िंदगी में अकेलेपन, पैसी की कमी और फ़िल्मों की विफलता से जूझ रही थी.
सोनाली बेंद्रे जहाँ कैंसर से लड़ रही हैं वहीं उनकी फ़िल्म दिल ही दिल में के हीरो कुनाल सिंह रहस्यमय हालात में मृत पाए गए.
अगर वापस महेश आनंद की बात करें तो ग़ुमनामी के दौर में भी अपने फ़ेसबुक पेज पर वो अकसर अपने करियर के बारे में लिखते थे कि कैसे 1997 में एक शूटिंग के दौरान वो घायल हो गए थे और उसके बाद से उनका एक ही फेफड़ा था और कई सालों तक बीमार रहे. हालांकि निजी ज़िंदगी के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं चलता.

आख़िर वो कौन से निजी या प्रोफ़ेशनल वजह होती होगी जो 24-25 साल की लड़की को मौत की दहलीज़ तक धकेल सकती है?
या गुरु दत्त जैसे मशहूर फ़िल्मकार को मौत के मुहाने पर पहुँचा देती है? क्यों कभी लाखों दिलों पर राज करने वाली अभिनेत्री या हीरो करियर ढलने के बाद अपने आप को ग़ुमनामी के अंधेरे में क़ैद करना बेहतर समझते हैं?
क्यों कभी पैसों में खेलने वाली फ़िल्मी हस्तियाँ ग़रीबी के दलदल में फँस कर रह जाती हैं?

सवाल कई हैं पर जवाब मुश्किल. शायद कड़ी होड़ के बीच शीर्ष पर पहुँचना और वहाँ बने रहना अकेलेपन और अवसाद से भरा सफ़र होता होगा.
ऐसी इंडस्ट्री जहाँ हर शुक्रवार किस्मत बनती और बिगड़ती है, ऐसे में इस अस्थाईत्व को बर्दाश्त कर पाना उतना आसान नहीं होता होगा.
करियर के एक दौर में अचानक और भर-भर के आई दौलत को समेट कर रख पाना शायद उतना आसान नहीं होता होगा. बनती-बिगड़ती किस्मत के साथ सामंजस्य बनाना शायद मुश्किल होता होगा.
जहाँ चढ़ते सूरज को सलाम होता है, वहाँ दोस्त और हमसफ़र बनाए रखना शायद मुश्किल होता होगा. ऐसे बहुत सारे ‘शायद’ के बीचों-बीच महेश आनंद जैसी कई ज़िंगदियाँ यूँ ही गुज़र जाती हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,719 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress