कविता

उन्हें तो पाकिस्तान के नौनिहालों का भी लहू चाहिए।

जिसने  कहा था ‘हम  लड़ेंगे हिंदुस्तान से-

एक हजार साल तक’

जो -भारत पाकिस्तान को लड़ाकर ,

पाकिस्तान के दो टुकड़े करवाकर ,

लाखों बंगला देशियों  को मरवाकर ,

लाखों  पाकिस्तानियों को सरेंडर करवाकर ,

भारत -पाकिस्तान  में दुनिया के हथियार खपवाकर ,

हो  गया जो जन्नत नशीन ,

वो जुल्फिकार अली भुट्टो  भी उतना जाहिल नहीं था।

जितने ये वहशी दरिंदे हमलावर ,

धर्मान्धता की चुटकी भर अफीम खाकर ,

कारगिल -कश्मीर में छिपकर ,

अपने आकाओं के पेशाब से –

जला रहे हैं चिराग ‘जेहाद’ के।

ये  आदमखोर  जाहिल – जिन्न  हैं ,

इन्हें  हर बक्त काम   चाहिए ,

उनकी घटिया शर्त है कि उस काम में लहू होना चाहिए।

कभी  मुंबई ,कभी बेंगलुरु ,कभी  कोलकाता ,

कभी कराची ,लाहौर बाघा सीमा पर ,

कभी स्वात घाटी -पाकिस्तान में ,

मलाला का सर चाहिए।

उन्हें -कभी क्रिकेटरों के ,कभी पत्रकारों के ,

कभी मानव अधिकार कार्यकर्तोंओं  के ,

कभी सीमाओं  पर भारतीय जवानों के शीश चाहिए।

अमन के इन नापाक  विध्वंशकों  को ,

इंसानियत के दुश्मनों को ,

केवल भारत की बर्बादी से संतोष नहीं ,

उन्हें  तो पाकिस्तान के नौनिहालों का  भी लहू चाहिए।

श्रीराम तिवारी