इस्लाम का चिंतन

भारत प्राचीन राष्ट्र है। सभी राष्ट्र उसके निवासियों के सह अस्तित्व से ही शक्‍ति पाते हैं। राष्ट्र से भिन्‍न सारी अस्मिताएं राष्ट्र को कमजोर करती है। भारत में जाति अलग अस्मिता है। मजहबी अस्मिता की समस्या से ही भारत का विभाजन हुआ था। गांधीजी हिन्‍दू-मुस्लिम की साझा आस्था बना रहे थे। आस्थाएं तर्कशील और वैज्ञानिक नहीं होतीं। यों हिन्‍दू समाज की आस्थाएं विभाजित हैं। यहां जातियां हैं, आस्तिक हैं, दार्शनिक हैं, ढेर सारी आस्थाएं हैं। प्रत्येक हिन्‍दू ने अपना निज धर्म बनाया है, अपनी अलग आस्थाएं भी गढ़ी हैं लेकिन इस्लाम की आस्था संगठित है। सभ्य समाज में प्रत्येक व्‍यक्ति को अपनी आस्था और विवेक के अनुसार जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए। विज्ञान और दर्शन आस्थाएं ढहाते हैं लेकिन दुनिया के अनेक दार्शनिक और वैज्ञानिक भी आस्थावादी है। आस्थावादी अपनी मान्‍यताओं को ठीक और दूसरे की मान्‍यता को गलत बताते हैं। आस्था के टकराव राष्ट्र की शक्‍ति घटाते हैं। गांधीजी ने इसीलिए हिन्‍दू मुस्लिम एकता के लिए आजीवन काम किया। वे चाहते थे कि सब अपनी आस्था के अनुसार जीयें, देश को सर्वोपरि मानें। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उन्‍होंने अंततः हार मानी और समस्या जस की तस है। लेकिन इस लक्ष्य को असंभव मानकर खारिज नहीं किया जा सकता।

‘दि एम्बीशन’ (महात्वाकांक्षा) भारतीय प्रशासनिक सेवा, प्रांतीय सिविल सेवा के परीक्षार्थियों के लिए उ0प्र0 की राजधानी से प्रकाशित अनूठी मासिक पत्रिका है। पत्रिका सामयिक घटनाओं को जस का तस प्रस्तुत करती है। सत्य की अपनी शक्‍ति होती है, तथ्य की अपनी तासीर होती है। सत्य तथ्य के असर से बचना नामुमकिन होता है। लेकिन बात इतनी ही नहीं है। इस पत्रिका के प्रकाशक प्रधान संपादक अंशुमान द्विवेदी व संपादक आरिफ फजल खान उत्कृष्ट श्रेणी के इतिहासवेत्ता हैं। हड़प्पा सभ्यता पर अंशुमान की लिखी पुस्तक हजारों शोधार्थियों के बीच लोकप्रिय हुई है। आरिफ भारत सरकार की आकाशवाणी सेवा में रहे हैं। योग्य भाषा विज्ञानी हैं। बावजूद इसके दोनों संपादक आस्थावादी हैं। अंशुमान शिवभक्‍त हैं, तीर्थाटन करते हैं, नियमित पूजा करते हैं। आरिफ सच्चे मुसलमान हैं, नियत व्रत पर नमाज पढ़ते हैं। दोनों एक साथ एक कमरे में ही रहते हैं। नमाज और आयतों से अंशुमान को दिक्‍कत नहीं होती। मंत्रों की ध्वनि और पूजा की घंटी से आरिफ को तकलीफ नहीं होती। पत्रिका के इस भवन में कई बड़े कमरे हैं तो भी दोनों की इबादत एक ही कमरे में चलती है। दोनों साथ-साथ खाना खाते हैं। आस्थाओं में बुनियादी अंतर है लेकिन जीवन के छंद, रस, प्रीति, प्यार की वीणा एक है। सुर एक जैसे हैं। ऐसा अक्‍सर नहीं होता। लेकिन ऐसा इन्‍हीं दिनों लखनऊ में हो रहा है। अंशुमान के पढ़ाए कई आई.ए.एस. मुसलमान हैं, वे उन्‍हें प्रणाम करते हैं, आरिफ के पढ़ाए तमाम हिन्‍दू हैं, वे उन्‍हें नमस्कार (आदाब) करते हैं। यह एक खूबसूरत जोड़ी है। गांधी ऐसा ही समाज चाहते थे लेकिन कट्टरपंथी अंध आस्थावादी ऐसा समाज नहीं चाहते। डॉ. जाकिर नायक इस्लामी आग्रहों के नये प्रवक्‍ता हैं। ‘म?तबा नूर’ अमीनाबाद लखनऊ, से प्रकाशित उनकी प्यारी किताब आधुनिक विज्ञान कुरान के अनुकूल या प्रतिकूल काफी दिलचस्प हैं। डॉ. नायक के अनुसार कुरान पूर्णतः ईशववाणी है। (पृ-9) वे लिखते हैं, कुरान की यह आयतें मानव जाति के लिए एक चैलेंज है। इसके बाद सूरा 2 से 23 व 24 क्रमांक की आयतों का अरबी में उल्लेख है। फिर उनका अनुवाद है हमने जो कुछ अपने बंदे पर उतारा है उसमें अगर तुम्हें शक हो और तुम सच्चे हो तो तुम उस जैसी एक सूरह तो बना लाओ। तुम्हें अख्तियार है कि अल्लाह ताला के सिवा और अपने मददगारों को भी बुला लो। पर अगर तुमने न किया और तुम हरगिज़ नहीं कर सकते तो उसे सच्चा मानकर उस आग से बचो जिसका ईधन इंसान हैं और पत्थर, जो काफिरों के लिये तैयार की गई है। यहां इंकार करने वाले-काफिरों के लिए आग और पत्थर हैं। डॉ. जाकिर काफिर, आग और पत्थर की व्‍याख्या नहीं करते। सृष्टि के रहस्य अनंत हैं। वैज्ञानिक सृष्टि रहस्यों की परतें उघाड़ रहे हैं। डॉ. जाकिर ने अध्याय-3 में अंतरिक्ष विज्ञान शीर्षक से ब्रह्मांड की रचना को कुरान की रोशनी में देखा है। उन्‍होंने ‘बिगबैंग’ का आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांत भी उध्दृत किया है। उन्‍होंने यहां पवित्र कुरान से सूरा 30 की 21वीं आयत अरबी में उध्दृत की है। इसी आयत का उनका अनुवाद गौरतलब है क्‍या काफिर लोगों ने यह नहीं देखा कि आसमान व जमीन मुंह बंद मिले-जुले थे। फिर हमने उन्‍हें खोलकर जुदा किया। (वही पृ-12) कुरान के मुताबिक धरती-आकाश को अलग करने का काम ईश्वर ने किया है। ईश्वर को मानने वाली सारी आस्थाएं यही एक काम नहीं दुनिया की सारी घटनाओं को ईश्वर की ही कृपा मानती हैं। खोजी वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के लिए ईश्वर एक समस्या है। डॉ. जाकिर ने कुरान (41.11) की आयत का अरबी उद्धरण भी दिया है और उसे बिगबैंक सिद्धांत के अनुरूप बताया है। लिखा है, वैज्ञानिकों का कहना है कि आकाश गंगाओं के वजूद में आने से पूर्व यह ब्रह्मांड का मूल तत्व गैस में था। इसे स्पष्ट करने के लिए धुवे शब्‍द का प्रयोग किया जाय तो मुनासिब होगा। फिर मूल आयत का अनुवाद है, फिर आसमान की तरफ मुतवज्जह हुआ और वह धुवां सा था उससे और जमीन से फरमाया कि तुम दोनों खुशी से आओ या जबर्दस्ती। दोनों ने अरज किया हम बखुशी हाजिर हैं। (वही पृ-13) कुरान ईश्वरीय आस्था है।

कुरान के अनुसार धरती आकाश मिलेजुले थे, उन्‍हें ईश्वर ने जुदा किया। दुनिया के प्राचीनतम ज्ञान रिकार्ड ऋग्वेद में भी यही स्थापना है लेकिन बुनियादी अंतर है – धरती आकाश पहले एक थे। उन्‍हें वायु ने अलग किया। दोनों का संवर्द्धन भी किया। (ऋ0 1.85.1)ऋग्वेद की इस स्थापना में ईश्वर नहीं है। वायु-मरु?ण ही धरती आकाश के मध्य आते हैं। वायु प्रत्यक्ष भौतिक तत्व है। ऋग्वेद में यहां इस बात को न मानने वालों को काफिर वगैरह नहीं कहा गया। वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले लोग अपने तथ्य को माने जाने का आग्रह नहीं करते। वे विपरीत दृष्टिकोण का स्वागत भी करते हैं। अब सृष्टि विज्ञान को लीजिए। डॉ. जाकिर ने पवित्र कुरान की कई आयतों को वैज्ञानिक सिद्ध करने की हसरत में अच्छी खासी कसरत की है। उन्‍हें आस्था और विज्ञान को आमने-सामने नहीं खड़ा करना चाहिए। इस कसरत में ‘ईश्वर’ बार-बार बाधा बनता है। वैज्ञानिकों ने फिलहाल ईश्वर को सिद्ध नहीं किया है। ऋग्वेद में सृष्टि रचना संबंधी कई सूत्र हैं लेकिन पहले मंडल के सूत्र 129 व दसवे मंडल के सूत्र 72, 121, 129, 190 काफी दिलचस्प हैं। इन सूत्रों में ईश्वर कोई काम नहीं करता। ऋग्वेद में प्रकृति की शक्‍तियों की कार्यवाही का विवेचन है। कुरान की रोशनी में डॉ. जाकिर के आकाशीय धुवें वाले ईश्वरीय विवेचन के संबंध में ऋग्वेद (10.72.2) में कहते हैं देवों के पहले – देवानां पूर्वे युगे, असत् से सत् उत्पन्‍न हुआ। यहां सृष्टि के विकास का क्रम है। आदिमकाल में मनुष्य ने देवता नहीं पहचाने (नहीं गढ़े) थे। आगे कहते हैं, आदि प्रवाह (सूक्ष्म ऊर्जा) से उपरिगामी सूक्ष्म ऊर्जा कण बने। आदि सत्ता – अदिति से सृजन प्रारंभ हुआ, दक्ष (सर्जन शक्‍ति) उत्पन्‍न हुए। सूर्य उत्पन्‍न हुए। सर्जन चलता रहा। दिव्‍य शक्‍तियों के नर्तन से तेज गतिशील ऊर्जा कण प्रकट हुए। (वही, 4-6) इन देवशक्‍तियों के लिए ऋग्वेद में सुसंर?धा (आपस में संयुक्‍त) शब्‍द प्रयुक्‍त हुआ है। इन्‍हीं के नृत्य से आकाश में धुंध बनी। कुरान की स्थापना वाला धुवां ऐसा ही है। मार्क्‍सवादी चिंतक डॉ. रामविलास शर्मा ने ग्रिथ का अनुवाद दिया है – धूलि का घना बादल ऊपर उठा। वालिस के अनुसार देवों के नृत्य से अणुओं पर हुए पदाघात से धरती बनी। ऋग्वेद का?यात्मक है। ऋग्वेद में प्रकृति सृष्टि के विकास में ईश्वर कोई करिश्मा नहीं करता। यूरोप के तत्ववेत्ता और वैज्ञानिक कोई 17वीं सदी तक प्रकृति के विकासवादी सिद्धांत से अपरिचित रहे हैं। भारत में वैदिक काल में ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो चुका था। ऋग्वेद तमाम जिज्ञासाओं से भरापूरा है। भारत छोड़ समूचे यूरोप और एशिया की भी बुनियादी समस्या आस्था है। भारत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्क-प्रतितर्क आधारित दर्शन का विकास पहले हुआ। आस्था बाद में आई। बाकी जगह आस्था पहले आई, विज्ञान बाद में आया। आस्था और विज्ञान का तालमेल बिठाना आसान नहीं होता। आस्था को लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण वालों को ‘चैलेंज’ देना सामान्‍य शिष्टाचार के विरुद्ध होता है लेकिन डॉ. जाकिर ने लिखा है ‘कुरान की आयतें मानव जाति के लिए चैलेंज’ हैं। कुरान दुनिया की बहुत बड़े जनसमुदाय की आस्था है। आस्था पर बहस नहीं होती, होनी भी नहीं चाहिए। बहस से आस्थावानों की भावनाओं को चोट पहुंचती है। कुरान के सूरा (अध्याय) अलबकरा 2 का उद्धरण जाकिर भाई ने दिया है। मौलाना मुहम्मद फारूख खां ने इस सूरा की 68 व 7वीं आयत का अनुवाद किया है जिन लोगों ने इंकार किया, उनके लिए बराबर है चाहे तुमने उन्‍हें सचेत किया हो या सचेत न किया हो। वे ईमान नहीं लाएंगे। अल्लाह ने उनके दिलों पर और उनके कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आंखों पर परदा पड़ा है और उनके लिए बड़ी यातना है। ऐसे में डॉ. जाकिर के चैलेंज के जवाब में बहस की गुंजाइश कहां हैं? कुरान बाईबिल और सारे आस्था ग्रंथ सबके लिए आदरणीय होने चाहिए। उनको बहस में न लाइए। भारत को विवेकशील, तार्किक, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही विकसित कीजिए। चैलेंज का उत्तर विनयशीलता ही हो सकता है।

– हृदयनारायण दीक्षित

6 COMMENTS

  1. सभी धर्म अपने हिसाब से अपना मान्यताओं को मानें इसमे कोई समस्या नहीं है समस्या जब खड़ी हुयी जब इस्लाम ने धर्मान्तरण की प्रक्रिया शुरू की हिन्दू धर्म मैं कभी धर्मान्तरण का कोई उल्लेख नहीं है न ही हमने देखा कभी लेकिन काग्रेस द्वारा अपने वोट बैंक के लिए लम्बे समय से धर्मांतरण का पूरा माहोल बनाया जा रहा है और बड़े पैमाने पर किया गया है हिन्दू इस से बहुत ज्यादा आहत हुआ है. लेकिन अब वो जाग गया है और इसके लिए जिम्मेदार काग्रेस को धूल मैं मिलाने की लिए कमर क़स चुका है. हमारी फ़िल्में जो की विदेशी पैसों से प्रायोजित हैं पूरी तरह से धर्मान्तरण मैं सहयोग कर रही हैं. कई टी वी चैनल (आप ऐसे चेनलो को सिर्फ एक हफ्ते तक उनकी खबर को बारीकी से देख कर पहचान सकते हैं ) जो अपने प्रसारण से इस काम मैं कांग्रेस की मदद कर रहे हैं. वो शायद समझ नहीं पा रहे की वो ऐसी आग को हवा दे रहे हैं जो एक क्षण मैं उनके अस्तित्व को ख़तम कर देगी. लेकिन इन चेनलों के मालिक ऐसी स्थिति मैं शायद विदेशों की शरण ले लेंगे. बेचारे कर्मचारियों को शायद इसकी कीमत चुकाना पड़े.

  2. HAM DHARMKE KALI ANDHI ME BAH CHUKE HAI !
    AUR IS ANDHERESE BAHAR NIKALNE KA KAM SCIENST KAR RAHE HAI ! PAHALE KISIBHI BIMARIKE LIYE BHAGWAN KA PRASAD, DUVA KA PANI, MANDIR ME CHHADHAVA, DUVA,MANNAT
    MANGI JATI THI LEKIN AJKAL ISPAR KOI VISWAS NAHI KARTA ! KOI BIMARI HO JATI HAI TO PAHALE DOCTOR KE PAS BHAGKAR AJTE HAI !
    IS DHARMIK ANDHE KUVESE HAME SCIENCE HI BAHAR NIKAL SAKTA HAI !!

  3. DUNIYAME JIVOKA JANM HI BAHUT- BAHUT DURLABH BAT HAI !PRASIDH VAIDNYANIK DR. NARLIKAR KAHATE HAI KI SAMAJHO EK KARKHANE ME VIMAN KE KUCH PART BIKHARE PADE HAI AUR ANDHI AA JATI HAI AUR SARE PART APASME JUDH JATE HAI AUR AEROPLANE TAIYAR HO JATA HAI ! ITNA HI DURLABH HAI DUNIYAME PAHLA JIV KA JANM HONA !!! SARE PARTICLE, AMINO AML,EK SATH MILKAR EK PESHI JIV KA JANM HUVA ! YE SAB KUDARATI HAI ! NA KOI BHAGWAN NA KOI GOD SIRF NATURAL POWER !!!!!

  4. DR. JAKIR BHAI KURANKO ADHUNIK SCIENCE KE SATH BITHANE CHAHATE HAI LEKIN MUSLIM VARGKE LOG TO SIRF DHARMIK BATONME HI LAGE RAHATE HAI UNKA ADHUNIK DUNIYASE VASTA HI KIDHAR RAHATA HAI ! KATTAR DHARMIK LOG SAMZATE HAI KI ADHUNIK SHIKHSASE BACHHE DHARMIKTA BHUL JAYENGE ! DHARMKE NAMPAR ITANI MAR-KAT HOTI HAI FIR HAME DHARM KI JARURAT HI KYA HAI ! SABSE BADA DHARM HAI MANVATA ! YE SIRF SACHHAI DIKHAYEGA ! KOI SWARG YA NARAK KI JHUTHI BATE NAHI BATAYEGA !
    SCIENCE 3 KAROD PRAKASHVARSH TAK DURBINSE DEKH SAKTA HAI ! FIR KAHAN HAI SWARG ? SWARG-NARAK CHUPAKAR RAKHNE KE LIYE KYA BHAGWAN KO KISIKA DAR HAI ?
    YE ANDH-VISHWASKI VAJAH HAM SAB PICHADE HUYE HAI !DHARM BHUL JAVO AUR APASME BHAI-BHAI JAISE MILO TO DUNIYAKI SARI MUSIBAT KA HAL HO JAYEGA !!

  5. SABHI DHARM GRANTH ME VASTV SE DUR KI BATE LIKHI GAI HAI ! PAHAD KO UNGLI PAR UTHANA ! YESHU MARKAR BHI VAPAS JINDA HONA ! KURBANI KE BAD LADKE KA JINDA HONA ! BAHUT SI ANHONI BATO SE BHARE PADE HAI HAMARE DHARM GRANTH ! JO AAJ KE JAMANE ME BUDHHI-JIVI NAHI MANATE ! SIRF VASTVIK BATOPAR BHAROSA RAKHNA SAHI HAI !
    PURANE RITI RIVAZ AUR PURANI BATONKO SIRF KITABOHI RAHANE DO TO ACHHA HAI ! JABSE DUNIYAME DHARMO KA JANM HUVA HAI TABSE INSAN INSAN KA DUSHMAN HUVA HAI AUR ISKE LIYA-DHARMKE NAMPAR LAKHO LOGONI BALI
    JA CHUKI HAI !

  6. DUNIYA KI SABSE PURANI SABHYTA BHARATVARSH HAI, ISLIYE JO BHI KURAN ME VARNIT HAI VO VED-PURAN KA NAKAL HAI, TABHI TO PURAN KO TOR-MADODKAR KURAN BANAYA GAYA.
    ॐ (ALL RELIGION COPY BY HINDU RELIGION. HINDU RELIGION IS THE GOD FATHER OF OTHER RELIGIONS.)
    (Note:- Those who have not believe this, please refer and Read VED-PURAN MANU Theory then see in Bible the same theory called NUH.)
    IIपुजारी को पादरी बनाया, संत महात्मा को सैंटा (SANTA), शिवा को येहोवा बनाया, महर्षि को मसीह बनाया, कृष्ण को क्राइस्ट (CHRIST), और वेद -पुराण पढके बाईबल (BIBLE) में मनु को नुह(NUH) बनाया / ॐ से अल्लाह बनाया, नमः से नमाज, मंदिर से मस्जिद, पुराण को कुराण, राम को रहीम, महादेव को परवरदिगार II
    isliye ye kehna galat hai ki kuran scientific hai-jo bhi hai hamara nakal hai. LOGO KO SAHI-SAHI JANKARI DE.

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