खेल जगत

यह देश है, ‘गरीब जनता और धनी सरकार’ का

दिखावे में जुटी सरकार, भूली जनता के अधिकार

दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स सरकार के लिए मील का पत्थर साबित होगा। लेकिन यही गेम्स आम जनता के लिए जी का जनजाल बन गया है। दुनिया भर के देश भारत में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स का जायजा लेने के लिए हिन्दुस्तान की ओर अपना रूख कर रहे हैं। वहीं भारत सरकार उनके स्वागत में कोई कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहती। दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। हर तरफ फ्लाई ओवर, ब्रिज, पार्क, रोड लाईटस् इत्यादि से महानगर को सुन्दरता से सरावोर किया जा रहा है। ये सारी सुविधाएं दुनिया को दिखाने के लिए की जा रही है, उनके लिए जो देश में चंद दिनों के मेहमान बनने आ रहे हैं। लेकिन इनके पीछे अगर सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना उठाना पड़ रहा है, तो राजधानीवासियों को।

दिल्ली की जनता पिछले एक साल से कॉमनवेल्थ गेम्स नाम के वबंडर का सामना कर रही है। जब से भारत में राष्ट्रमण्डल खेलों के होने की घोषणा की गई, तभी से यहां की सरकार अपनी सूरत को चमकाने में जुट गई। ऐसा नहीं है कि हम राष्ट्रमण्डल खेलों का विरोध कर रहे है। ऐसा भी नहीं है कि दिल्ली की तरक्की से हमें एतराज है। बल्कि हमे तो इस दिखावेपन से एतराज है। जो कि साफ झलक रहा है।

दिल्ली को साफ-सुथरा बनाने के लिए यूपी और बिहार के मजदूरों को काम करते हुए पूरी दिल्ली में देखा जा सकता है। लेकिन अफसोस की बात तो यह है कि जिन हाथों ने राजधानी को चमकाने का काम किया है। उन्ही लोगों को कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने से पहले राजधानी से दूर जाने की हिदायत दी गई हैं। यह बात साफ किसी सूचना के माध्यम से तो नहीं दी गई लेकिन इतना जरूर जाहिर किया जा रहा है कि कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान राजधानी क्षेत्र में प्राईवेट बसे बंद कर दी जाएंगी। सड़क पर लगने वाले खोखा पट्टी वालों को दूर भगाया जायेगा।

कहने का मतलब केवल इतना है कि भारत सरकार अपनी छवि दुनिया के सामने साफ सुथरी बनाना चाहती है। अपने दिल में छुपे तमाम दागों को छुपा कर एक उजला मुखौटा औड़ना चाहती है। इस उजले मुखौटे के पीछे कितने दाग है ये वो परदेशी शायद कभी न समझ पायेंगे। देश में फैली बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार, ऐसे बदनुमा दाग हैं जिन्हें साफ नहीं किया जा सकता।

राष्ट्र मण्डल खेलों के नाम पर बड़े-बड़े अधिकारियों ने करोड़ों रूपये से अपना बैंक बैलेंस बना कर रख लिया। उनकी सोच भी शायद सही है कि 80 साल में कॉमनवेल्थ गेम्स हिन्दुस्तान में हो रहे है ना जाने फिर दुवारा ऐसा मौका मिला या ना मिला, तो ? इसलिए उन्होंने अपनी आने वाली एक पीढ़ी तक का बंदोबस्त कर लिया है। कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर करोड़ाें रूपये के घोटालों की चर्चा शायद दुनिया वालों के सामने न की जाय। हो सकता है कि राजधानी की उजली सूरत दुनिया को पसन्द आये। लेकिन हम भारतीय है जो दिल से सोचते हैं। यहां भी हम सोच रहे है उन बेवस, गरीब, लाचार वर्ग के बारे में जो अपना घर-परिवार छोड़ कर दिल्ली में रोजगार की तलाश में आते हैं। वो दिन रात मेहनत मजदूरी कर सड़कों पर ही अपना जीवन बिता देते हैं। उनके हाथों में क्या हांसिल होता है ? वो तो दो जून की रोटी भी नहीं कमा पाते। वहीं खेलों के नाम पर सरकार उन गरीबों का हक मार रही है।

हमारा मानना है कि जितना पैसा इन खेलों के नाम पर खर्च किया जा रहा है उसका दसवां हिस्सा भी कभी इन गरीब लोगों पर किया गया है। अगर किया गया होता तो वो अपना घर-परिवार छोड़कर इन सड़को पर जीवन बिताने क्यों आते ? चलों खैर रोजगार के लिए अपना घर छोड़ भी दिया तो क्या ? आखिर अब इनका क्या होगा ? राष्ट्रमण्डल खेलों के कारण पूरी दिल्ली में आम जनता का जीवन भी अस्त व्यस्त हो गया है। जहां तहां खुदाई, निर्माण्ा, सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। इन सबको झेलने का काम तो जनता का है और करोड़ों के घोटाले हमारे राजनेताओं का हक है ? वाह री हमारी सरकार !

अक्टूबर माह में दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमण्डल खेलों के बजह से प्राइवेट बसों को बंद रखा जाएगा। प्राईवेट वाहनों के रूट बदल दिये जाएंगे। जहां पूरी दुनिया भारत की राजधानी में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स को देखने के लिए यहां का रूख कर रही है। वहीं यहां के गरीब, मजदूर व खोखा पट्टी वाले लोग अपने अपने गांव वापस जाने की तैयारी कर रहे है। एक माह तक दिल्ली में गरीब और गरीबी का कोई काम नहीं है। सड़कों पर केवल दिल्ली सरकार की हरी और लाल वातनूकुलित बसें ही नजर आएंगी। ये सब इसलिए की सरकार दुनिया की नजरों में देश को सम्पन्न व खुशहाल दिखाना चाहती है। लेकिन सही बात तो यह है कि यह देश है ‘गरीब जनता और धनी सरकार का।’

व्यथा कॉमनवेल्थ गेम्स की

राष्ट्रमण्डल खेलों का शुभारम्भ सन् 1930 से हुआ। इन खेलों का विचारधारक रिवरेंट एल्श्री कूपर को माना जाता है। आगे चलकर इन खेलों को प्रत्येक चार वर्ष में करने का फैंसला लिया गया। पहला कॉमनवेल्थ गेम्स कनाडा के हेमिल्टन शहर में आयोजित किया गया जिसमें दुनिया भर के 11 देशों की भागीदारी रही। इसके बाद प्रत्येक चार वर्ष के अन्तराल में दुनिया के भिन्न-भिन्न शहरों में इनका आयोजन क्रमवध्द तरीके से किया जाने लगा। केवल सन् 1942 और 1946 में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स को द्वितीय विश्व युध्द के कारण रद् कर दिया गया था। उसके बाद 1950 में कॉमनवेल्थ गेम्स न्यूजीलैण्ड के ऑकलैण्ड शहर में आयोजित किए गये। धीरे-धीरे कॉमनवेल्थ गेम्स का महत्व बढ़ता जा रहा था। जहां पहले कॉमनवेल्थ गेम्स में 11 देशों ने भाग लिया था वहीं अब भारत में होने वाले 19वें राष्ट्रमण्डल खेलों में दुनिया भर के 83 देश भाग लेने जा रहे हैं।