प्रभुदयाल श्रीवास्तव

चीटा है यह चीटा है
कब से रोता बैठा है।
चार चींटियों ने मिलकर,
कसकर इसको पीटा है।
घर की छोटी चींटी से,
इसने की छेड़ा खानी।
नाक पकड़कर खींची है,
फिर उसकी चोटी तानी।
टाँग पकड़कर कमरे में,
उसको खूब घसीटा है।
घर की चार चींटियाँ तब,
इसको यहाँ खींच लाई।
एक बड़ी रस्सी लेकर,
इसकी टाँगें बंधवाई।
बड़े -बड़े डंडे लेकर,
धुन- धुन करके पीटा है।
कान पकड़कर रो रोकर,
माँग रहा है अब माफी।
इतना मत मारो मुझको,
क्या अब भी नाकाफी है,
टूट गई है टाँग मेरी,
सिर भी मेरा फूटा है।