चीटा है यह

प्रभुदयाल श्रीवास्तव



 चीटा है यह चीटा है
 कब से रोता बैठा है।
 चार चींटियों ने मिलकर,
 कसकर इसको पीटा है।

     घर की छोटी चींटी से,
     इसने की छेड़ा खानी।
     नाक पकड़कर खींची है,
     फिर उसकी चोटी तानी।
     टाँग पकड़कर कमरे में,
     उसको खूब घसीटा है।

 घर की चार चींटियाँ तब,
 इसको यहाँ खींच लाई।
 एक बड़ी रस्सी लेकर,
 इसकी टाँगें बंधवाई।
 बड़े -बड़े डंडे लेकर,
 धुन- धुन करके पीटा है।

       कान पकड़कर रो रोकर,
       माँग रहा है अब माफी।
       इतना मत मारो मुझको,
       क्या अब भी नाकाफी है,
       टूट गई है टाँग मेरी,
       सिर भी मेरा फूटा है।
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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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