यह ना खालिस्तानी गुंडों की जीत है और ना मास्टर स्ट्रोक

0
245

जरा हट कर सोचेंगे तो –
यह ना खालिस्तानी गुंडों की जीत है, ना उन गुंडों के आगे सरकार का समर्पण है। ना ही यह कोई चुनावी स्टंट है। ना ही कोई मास्टर स्ट्रोक है।
हम सब जानते है कि 11 महिने पहले सुप्रीम कोर्ट में 12 जनवरी को किसान कानूनों पट स्टे लगा दिया था। एक कमेटी बना दी थी। इसके 14 दिन बाद लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीय अस्मिता की सरेआम धज्जियां उड़ाई गयी। लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट खामोश रहा जो मोदी सरकार के 7 वर्ष के शासनकाल में स्वतः संज्ञान लेने का वर्ल्डरिकॉर्ड बना चुका है।
किसान आंदोलन के नाम पर खालिस्तानी गुंडों के कैंपों में हत्या भी हुई, बलात्कार भी हुआ, आत्महत्या भी हुई लेकिन सुप्रीमकोर्ट खामोश रहा।
किसान आंदोलन के नाम पर कुछ सौ या कुछ हजार गुंडे लगभग साल भर से लाखों नागरिकों का रास्ता रोक कर उनका जीना हराम करते रहे लेकिन लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट खामोश रहा जो एक आतंकी याकूब मेमन की फांसी रुकवाने की सुनवाई रात भर करता रहा। दर्जनों ऐसे उदाहरण हैं। लेकिन किसान कानूनों पर सुनवाई की फुर्सत कोर्ट को नहीं मिली। उसने एक कमेटी बना दी, वो कमेटी क्या कर रही है। पिछले 10-11 महीनों में उस कमेटी ने क्या किया.? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सम्भवतः अब वह समय आ गया था जब इस खेल का पर्दा उठने वाला था। उपरोक्त घटनाक्रम यह संकेत दे रहा था कि किसान कानून का भी वही हश्र होने वाला है जो हश्र संसद द्वारा पूर्ण बहुमत से पारित जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम की समाप्ति के कानून का किया गया था। ऐसा होने पर सरकार को बहुत अधिक शर्मिंदगी अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ता। वह स्थिति अब भी हुई है। लेकिन उतनी अधिक नहीं हुई है।
अतः मेरा मानना है कि सरकार को, विशेषकर प्रधानमंत्री को इस पूरे खेल का आभास हो गया था। या यूं कहूं कि सूचना मिल गयी थी कि क्या खेल होने जा रहा है। चार राज्यों के चुनावों से पहले होने जा रहा है। अतः उसने सर्वाधिक सुरक्षित मार्ग को चुना है।
जो प्रधानमंत्री नोटबंदी सरीखे ऐतिहासिक साहसिक फैसले से पीछे नहीं हटा। जो प्रधानमंत्री 370 की समाप्ति सरीखे ऐतिहासिक साहसिक फैसले से पीछे नहीं हटा। जो प्रधानमंत्री एक नहीं 2 बार पाकिस्तान की सीमा में घुसकर उसके जबड़े तोड़ने के फैसले से पीछे नहीं हटा। जिस प्रधानमंत्री के शौर्य का उल्लेख पाकिस्तानी संसद में इस जिक्र के साथ हुआ हो कि उसके डर से पाकिस्तानी आर्मी चीफ और विदेश मंत्री की टांगे कांप रहीं थी। वह प्रधानमंत्री कुछ सौ या कुछ हजार खालिस्तानी गुंडों और उनके गुर्गों के आंदोलन से डर गया। यह सोच कुछ कायर कुटिल धूर्तों की हो सकती है। मैं ऐसा नहीं सोचता। कॉलेजियम सिस्टम की समाप्ति वाले कानून का हश्र देख चुके प्रधानमंत्री ने सही निर्णय लिया है। इस सरकार, उसके समर्थकों के खिलाफ देश में कैसा लीगल ज़िहाद चल रहा है। यह नजारा अभी 15 दिन पहले दीपावली पर हम सब ने देखा है। अतः ज्ञान उपदेश प्रवचन नहीं दीजिए। इस कठिन समय समय में देश के प्रधानमंत्री का खुलकर समर्थन करिए। प्रचंड समर्थन करिए। हम भी यही कर रहे हैं , आप भी कीजिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

15,469 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress